Essay on Feminism in Hindi

essay on feminism in hindi

Here is an essay on ‘Feminism’ in Hindi language!

वर्तमान समाज के निर्माण में महिलाओं के योगदान का आंकलन एक महत्वपूर्ण विषय है । महिला सशक्तीकरण आज का सच है । यह समय की माँग है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि कोई भी राष्ट्र महिलाओं के योगदान को महत्व दिए बना अपने आपको बनाए नहीं रख सकता । विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक कार्यों के विकास उनके सहयोग के बिना सम्भव नहीं है ।

पुरुष प्रधान समाज में महिला वर्ग की अनदेखी की जाती है । समाज से यदि गरीबी को मिटाना है, असमानता को समाज करना है तो आवश्यक है कि नारियों के योगदान की अवहेलना न की जाए । बल्कि इस तथ्य को स्वीकार किया जाए कि नारी के सहयोग के बिना पुरुष अपने-अपने कार्य क्षेत्र में कुशलता से कार्य नहीं कर सकता ।

भारत जैसे देश में जहाँ की अर्थव्यवस्था में कृषि आज भी प्रधानता रखती है, महिलाओं के योगदान को नकारा सकता । आज भी महिला को उपभोक्ता के रूप में देखा जाता है । विश्व का कोई भी देश चाहे वह विकसित हो या अविकसित, महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपना रचनात्मक योगदान दे रही हैं । आज कोई भी कार्य उनके सहयोग के बिना अधूरा है, चाहे वह प्राथमिक व्यवसाय को क्षेत्र हो, या द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों का ।

उदाहरणत: घान की खेती में महिलाओं की भूमिका अत्यन्त प्रभावी है, वह पौधों का पुन: रोपण करने में पुरुष से कहीं अधिक कुशल है । धान प्रधान क्षेत्रों का भूगोल उनके सहयोग की अनदेखी करके नहीं लिखा जा सकता । नारी को मात्र पुरुषों को आराम प्रदान करने, घर के वातावरण को सुखमय बनाने, उनको सहायक के रूप में मानने का प्रतीक नहीं माना जा सकता ।

ADVERTISEMENTS:

आज की नारी उपभोक्ता नहीं उत्पादक है । नारीत्व भूगोल नारी को इसी दृष्टि से देखता है । वह प्रादेशिक असमानताओं को मिटाने, गरीबी, भुखभरी जैसी समस्याओं को हल करने, पर्यावरण का संतुलित विकास करने, संसाधनों का समुचित दोहन एवं वितरण में नारी की भूमिका को उतना ही महत्व देने लगा है, जितना कि पुरुषों को दिया जाता है ।

यद्यपि आज भी प्रत्येक भौगोलिक वर्णन से पुरुष प्रधान समाज की बू आती है । मानव शब्द का प्रयोग भूगोल में पुरुष के संदर्भ में होता रहा है । आदि मानव से लेकर वर्तमान मानव तक के कार्यों में महिलाओं की भूमिका को या तो नकारा गया है, या फिर उसे गौण माना गया है ।

आदि मानव द्वारा पशुओं का शिकार करना को, पुरुष प्रधान कार्य कहा गया, लेकिन उसके अस्त्र-शस्त्र बनाना, शिकार से प्राप्त मांस को भक्षण योग्य बनाना, महिलाओं का ही कार्य रहा । आज भी आदिम जनजातियाँ, चाहें वह पिग्मी हों, या बुशमैन, भारतीय नागा ही या थारूं, सभी में महिलाएं आर्थिक कार्यों में बराबर की जिम्मेदारी निभाती हैं ।

आज का कृषि व्यवसाय उनके सहयोग ही नहीं, बल्कि उनके कार्यों की गुणवत्ता के बिना अधूरा है । उनको सस्ते श्रम का पर्याय माना जाता है । घर की अर्थव्यवस्था को चलाने में सहायक माना जाता हैं । चाय, धान, जूट, कहवा, फसलों के उत्पादन में उनकी विशिष्ट भूमिका है ।

वनों से विभिन्न वस्तुओं का संग्रह करके उनसे अनेक उत्पाद तैयार करना जैसे बान, टोकरे बनाना, चटाई बुनना, बीड़ी तैयार करना, आदि कार्य उन्हीं के द्वारा सम्पादित किये जाते हैं । पशुपालन उद्योग में भी उनकी अहार भूमिका है । पुरुष तो पशुओं से प्राप्त उत्पाद का विक्रय करने में अपने आपको व्यस्त रखते है, वहीं नारी पशुओं की देखभाल, दूध दुहना आदि कार्यों को करती है । अत: नारी के महत्व को झुठलाया नहीं जा सकता ।

औद्योगिक व्यवसाय तो नारी व पुरुष के कार्यों में कोई विभक्तीकरण नहीं करता । वहाँ नारियाँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सभी प्रकार के कार्यों को कुशलता से अंजाम देती है । अनेक उद्योग ऐसे हैं, जिनमें वह प्रभावी भूमिका निभाती है जैसे वस्त्र उद्योग, रंगाई, छपाई, डिजाइनिंग, कढ़ाई, ऐसे कार्य है, जिनके लिए उनकी विशेष पहचान है । स्पष्ट है वस्त्र उद्योग पुरुष एवं नारी दोनों के सम्मिलन एवं सहयोग का परिणाम है ।

आज प्रत्येक कार्य क्षेत्र नारी की भूमिका को पहचानने लगा है । प्रशासकीय, शैक्षिक, व्यापार, परिवहन, संचार अंतरिक्ष, आदि क्षेत्रों में उसकी भूमिका प्रभावी होती जा रही है । वह नये-नये परिदृश्यों का निर्माण कर रही हैं । वर्तमान में भौगोलिक दृश्य। की संरचना में उनकी विशेष भूमिका है ।

भूगोल में जबसे मानववादी विचारधारा का पदार्पण हुआ है, तब से मानव समाज में असमानताओं को मिटाने में नारी की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाने लगा है । नारी का योगदान आज शोध का विषय बन चुका है । वह सीमांत कार्यकर्ता नहीं है, बल्कि पूर्णकालिक कार्यकर्ता है ।

नारीवाद भूगोल महिलाओं की कुशलता व विशेषज्ञता को पहचानने पर जोर देता है । वह उनको विकास का नाभि केन्द्र (Nodal Centre) मानता है । वह उनको हाशिए (Periphery) पर रखकर नहीं देखता । वह नारी की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर प्रादेशिक विकास को योजनाएँ प्रस्तुत करता है ।

साक्षरता व उसके स्तर में वृद्धि, मातृत्व कल्याण की योजनाएँ, शिशु मृत्यु दर को कम करना, महिलाओं के स्वास्थय एवं चिकित्सा पर ध्यान देना आदि ऐसे कार्य है, जिन पर ध्यान दिए बिना प्रदेश का विकास संभव नहीं है । ग्रामीण समन्वित विकास, संपोषित विकास (Sustainable Development) के विचार की कल्पना उनकी सामाजिक आर्थिक दशा में सुधार के बिना अधूरी है ।

उपरोक्त चिन्तन के समय के साथ प्रभावी होते हुए भी आज भी भूगोल पुरुष प्रधान (Masculinist) दिखाई पड़ता है । प्रत्येक भौगोलिक दृश्य को पुरुष की सोच व समझ का प्रतीक माना जाता है । उसमें महिला से सम्बन्धित सोच की उपेक्षा है । लिंग के आधार पर भेदभाव मानव की सोच का परिणाम है । वह पुरुषों को ही वर्तमान परिदृश्य को विकसित करने का श्रेय देता है ।

समाज का प्रभावशाली वर्ग उनकी आज भी उपेक्षा करता है । लेकिन इतना स्पष्ट है प्रदेश के भौगोलिक विकास की संतुलित अवस्था को उनके सहयोग के बिना नहीं पाया जा सकता । मानव शरीर का यदि दाँया हाथ पुरुष है तो बाँया हाथ नारी, और दोनों का एक-दूसरे से मिले बिना कार्य करना संभव नहीं है ।

आज भूगोल में नारी के अध्ययन से सम्बन्धित शोध कार्यों को बढ़ावा मिलने लगा है । भूगोल की विशेषत: मानव भूगोल की नवीन शाखाओं जैसे अति सुधारवाद भूगोल, आचरण भूगोल, का विकास समाज में उनके महत्व को स्वीकार कराने की दिशा में एक मील का पत्थर प्रतीत सिद्ध हो रहा है ।

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पर्यावरण और स्त्री के गहरे संबंध को दर्शाता ‘ईको फेमिनिज़म’

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दुनिया में इस वक़्त सबसे अधिक चर्चित मुद्दों के बारे में कहें तो वे या तो महिलाओं के मुद्दे हैं या फिर प्राकृतिक दोहन के मुद्दे जिनपर कई अंतरराष्ट्रीय संगठन रिपोर्ट भी जारी करते हैं ताकि दुनिया का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जा सके। इन दोनों में एक शब्द की समानता पाई जाती है वह शब्द है ‘शोषण’ क्योंकि प्रकृति और महिलाएं दोनों ही शोषण का सामना कर रहे हैं। इस बात को ज़ाहिर करने के लिए 1970 के दशक में ही दार्शनिकों ने नारीवादी विचारधारा में नई परिकल्पना को जोड़ा जिसे ईको फेमिनिज़म यानी पारिस्थितिक नारीवाद के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश अकादमिक मैरी मेलर ईको फेमिनिज़म को एक आंदोलन के रूप में परिभाषित करती है जो प्राकृतिक दुनिया के शोषण और गिरावट और महिलाओं के अधीनता और उत्पीड़न के बीच संबंध देखता है।

ईको फेमिनिज़म नारीवाद की ही एक शाखा है जिसमें प्रकृति और महिलाओं के संबंध में समानता स्थापित करते हुए उनकी परेशानियों को उजागर किया जाता है। ईको फेमिनिज़म संस्कृति, धर्म, साहित्य में महिलाओं और प्रकृति के बीच संबंधों की खोज करता है और प्रकृति के उत्पीड़न और महिलाओं के उत्पीड़न के बीच समानता को दर्शाता है। यह महिलाओं और प्रकृति को संपत्ति के रूप में देखने तक सीमित नहीं है। ईको फेमिनिज़म में इस बात पर जोर दिया गया है कि महिलाओं और प्रकृति दोनों का सम्मान किया जाना चाहिए। ईको-फेमिनिस्ट एक्टिविज़म 1980 के दशक के दौरान महिलाओं के बीच न्यूक्लियर, पर्यावरणीय और लेस्बियन-नारीवादी आंदोलनों से बढ़ा। एमहर्स्ट (1980) में आयोजित “महिला और पृथ्वी पर जीवन: पारिस्थितिकतावाद” सम्मेलन (1980) ईको-फेमिनिस्ट सम्मेलनों के संदर्भ में पहली बार आयोजित किया गया था। पारिस्थितिक नारीवाद के अनुसार यह समाज स्त्री और प्रकृति को हमेशा उपभोग की दृष्टि से ही देखता है जिस कारण ये दोनों ही आज विनाश के कगार पर हैं। ईको फेमिनिज़म को गढ़ने का श्रेय फ्रेंच नारीवादी चिंतक फ्रांस्वा द यूबोन को जाता है जिन्होंने साल 1974 में प्रकाशित ”ले फेमनिज़म ओ ला मॉर्ट ” में इसका उल्लेख किया था। उनके अनुसार वर्तमान के पारिस्थितिक संकट की समस्या पुरुष केंद्रित है।

और पढ़ें : कोलकायिल देवकी अम्मा : अपने आंगन में उगाया ‘एक जंगल’ आज सबसे अधिक चिंता का विषय पर्यावरण और स्त्री शोषण है इसलिए आज के समय में इसकी प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है। प्राचीन समय में खेती करने का अधिकार स्त्री वर्ग के पास था लेकिन बाद में इस अधिकार का हस्तांतरण पुरुषों को कर दिया गया और महिलाओं को परिवार संभालने का काम या यूं कहें की जिम्मेदारी दे दी गई। इस पर नारीवादी यह तर्क देते हैं कि पुरुषों को खेती करने का अधिकार देना ही वह समय था जब पर्यावरण का नाश होना शुरू हुआ। फिर चिपको आंदोलनों जैसे उदाहरण भी तो इस बात का साफ़ संकेत देते हैं कि महिलाएं हमेशा पर्यावरण के सरंक्षण के पक्ष में रही हैं। चिपको आंदोलन पूरी तरह महिलाओं से जुड़ा हुआ रहा और इस आंदोलन ने यह साबित किया कि जो काम पुरुष नहीं कर सकते, उसे महिलाएं कर सकती हैं। ‘नर्मदा बचाओ’ आंदोलन को लेकर मेधा पाटकर भी काफी चर्चित रही हैं। इन्हें इस आंदोलन के कारण कई बार जेल तक जाना पड़ा। पर्यावरण संरक्षण में इनकी सक्रिय भूमिका को देखते हुए ही इन्हें अंतरराष्ट्रीय ‘ग्रीन रिबन’ पर्यावरण पुरस्कार से नवाज़ा गया है, जो नोबेल पुरस्कार के बराबर है।

और पढ़ें : ‘पर्यावरण संरक्षण आंदोलन’ में भारतीय महिलाओं की सक्रिय भागीदार

स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग का भी उदाहरण भी लिया जा सकता है जिसने पर्यावरण को बचाने के लिए सभी देशों से इसके सरंक्षण की अपील की थी ताकि जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटा जा सके। वहीं, दूसरी तरफ भारत में आज भी महिलाएं व्रत-त्यौहार के मौके पर या रोज़मर्रा के अपने जीवन में अनेक वृक्षों -पीपल, तुलसी, आंवला, अशोक, बेल, शमी, नीम, आम जैसे पेड़ पौधों को शामिल करती नज़र आती है।

यही नहीं जल-स्रोतों के प्रति भी संरक्षण की भावना महिलाओं में प्राचीन काल से ही चली आ रही है। संपूर्ण पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने के लिए महिलाएं हमेशा से ही अग्रणी रही हैं। हमारे देश में भी महिलाओं में प्रकृति-संरक्षण और पर्यावरण-संरक्षण की यह भावना पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आई है और आज भी देखने को मिलती है। इस तरह से ईको फेमिनिज़म की प्रासंगिकता को पहचाना जा सकता है और कहा जा सकता है कि आज के समय में इसका कितना अधिक महत्व है क्योंकि यह विषय ही ज्वलंत है जिनको नकारना शायद बड़ी प्राकृतिक आपदा और सामाजिक समस्या को जन्म देना है।

और पढ़ें : बेहतर भविष्य के लिए लड़नेवाली 5 भारतीय महिला पर्यावरणविद

तस्वीर : सुश्रीता भट्टाचार्जी

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पंजाब केसरी दिल्ली समूह के साथ कार्यरत श्वेता गार्गी कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स में ग्रेजुएट है तथा जर्नलिज्म में पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी हैं। घर और समाज में मौजूद विभेद के चलते उनका समावेशी नारीवाद की ओर झुकाव अधिक है। साथ ही उन्हें सामाजिक – आर्थिक – राजनैतिक और लैंगिक समानता से जुड़े विषयों पर लिखना बेहद पसंद है।

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Mahadevi Varma: Political Essays on Women, Culture, and Nation by Anita Anantharam

This volume of translations of Mahadevi Varma’s feminist political essays is the first of its kind. While there is ample work on Varma in Hindi, scholars of feminism (and students of Hindi who are in the nascent stages of language acquisition) have nowhere to turn for a comprehensive sampling of her work. This book now helps fill the void with contributions from some of the highly regarded experts in the world of Hindi today.

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  • Hardcover ISBN 9781604976717
  • Paperback ISBN 9781638572985
  • Date July 2010
  • Size 6 x 9 in or 229 x 152 mm

This edited volume of translations covers the major political essays of India's first feminist Hindi poet. A devout follower and advocate of Gandhi, Mahadevi Varma is a household name in India and is a major woman of letters in the modern Hindi world. The essays collected in this volume represent some of Mahadevi Varma’s most famous writings on the “woman question” in India. The collection also includes an introduction to her life, with biographical notes, an analysis of her importance in the field of Hindi letters, as well as a selection of her poems – these latter because Mahadevi Varma made her mark in the world of Hindi literature through her poetry, and a volume of translations would be incomplete without a sampling of them.

The introduction to the translated volume sketches Mahadevi Varma's life and work and her significance to both the development of modern standard Hindi as well as to the nascent women's movement underway in the 1920s in India. Little scholarly attention has been given in the academy outside of India to Varma’s numerous contributions to women’s education, to the development of modern standard Hindi, and to political thought during the Independence movement in late-colonial India. This volume of translations engages themes like language and nationalism, women’s roles as artists, the politics of motherhood and marriage—themes that continue to be relevant to women’s lives in contemporary India and to movements for women’s rights outside India as well.

This volume of translations of Mahadevi Varma’s feminist political essays is the first of its kind. While some of these essays, especially those from Mahadevi Varma’s Hamari Shrinkhala Ki Kariyan collection have been translated by Neera K. Sohoni and published under the title Links in the Chain (Katha, 2003), there is no sustained treatment of Varma’s political thinking in one, accessible volume. While there is ample work on Varma in Hindi, scholars of feminism (and students of Hindi who are in the nascent stages of language acquisition) have nowhere to turn for a comprehensive sampling of her work.

Mahadevi Varma is also one of the most difficult writers to access even for trained scholars of Hindi language and literature. Her highly Sanskritized diction and her stylized prose sketches make her work a pleasure to read in the original but daunting to translate into English. This volume has contributions from some of the most highly regarded Hindi experts.

In the editor’s introduction to the volume of translations a brief biographical sketch followed by an analysis of the political climate of Northern India has been provided so that the reader unfamiliar with India of the 1920s-1940s will have the necessary historical context to place her work. The introduction to the volume also raises the issue of why she gave up writing poetry and turned solely to writing prose when she became involved with the movements for women’s rights and national independence. Finally, the volume provides feminist cultural historians a rich archive of how Indian women like Mahadevi Varma were actively negotiating their lives as women, activists, artists, teachers, and married women.

This work will be of use to scholars of Hindi language and literature in the US/European academy and should be of interest to cultural and feminist historians of modern India. This volume will introduce Mahadevi Varma’s literary scope to an English-speaking audience, and will serve as a reference for feminist historians of the nationalist period in the Indian subcontinent.

Anita Anantharam is an assistant professor in the Center for Women’s Studies and Gender Research at the University of Florida. She holds a PhD from the University of California, Berkeley; an MA from the University of Wisconsin, Madison; and a BA from Columbia University. Dr. Anantharam is also the author of Bodies that Remember: Women’s Indigenous Knowledge and Cosmopolitanism in South Asian Poetry (Syracuse University Press) and has published articles in Feminist Media Studies , the Journal of International Women’s Studies , and Gender and Language .

Acknowledgments

Editor’s introduction, mahadevi varma: poems, my childhood days, the home and the world, the curse of womanhood, the links in our chain, introduction to adhunik kavi, the question of women’s economic independence, the condition of hindu wives, the art of living, war and woman, women’s position in the new decade, our country and our national language, bibliography, notes on contributors.

  • 2024 Cambria Press

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महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Women Empowerment Essay in Hindi)

महिला सशक्तिकरण

‘महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।

महिला सशक्तिकरण पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Women Empowerment in Hindi, Mahila Sashaktikaran par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – महिलाओं को सशक्त बनाना जरुरी क्यों है.

पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा कहा गया मशहूर वाक्य “लोगों को जगाने के लिये”, महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।

महिला सशक्तिकरण जरुरी क्यों है

लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये। लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारितकरना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो।

लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारितकरना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है।

महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है।

सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है।

निबंध 2 (400 शब्द) – महिला सशक्तिकरण: लैंगिक समानता की ओर एक कदम

लैंगिक असमानता भारत में मुख्य सामाजिक मुद्दा है जिसमें महिलाएँ पुरुषवादी प्रभुत्व देश में पिछड़ती जा रही है। पुरुष और महिला को बराबरी पर लाने के लिये महिला सशक्तिकरण में तेजी लाने की जरुरत है। सभी क्षेत्रों में महिलाओं का उत्थान राष्ट्र की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिये। महिला और पुरुष के बीच की असमानता कई समस्याओं को जन्म देती है जो राष्ट्र के विकास में बड़ी बाधा के रुप में सामने आ सकती है। ये महिलाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है कि उन्हें समाज में पुरुषों के बराबर महत्व मिले। वास्तव में सशक्तिकरण को लाने के लिये महिलाओं को अपने अधिकारों से अवगत होना चाहिये। न केवल घरेलू और पारिवारिक जिम्मेदारियों बल्कि महिलाओं को हर क्षेत्रों में सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिये। उन्हें अपने आस-पास और देश में होने वाली घटनाओं को भी जानना चाहिये।

महिला सशक्तिकरण में ये ताकत है कि वो समाज और देश में बहुत कुछ बदल सकें। वो समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढ़ंग से निपट सकती है। वो देश और परिवार के लिये अधिक जनसंख्या के नुकसान को अच्छी तरह से समझ सकती है। अच्छे पारिवारिक योजना से वो देश और परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करने में पूरी तरह से सक्षम है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ किसी भी प्रभावकारी हिंसा को संभालने में सक्षम है चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक।

महिला सशक्तिकरण के द्वारा ये संभव है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के महिला-पुरुष समानता वाले वाले देश को पुरुषवादी प्रभाव वाले देश से बदला जा सकता है। महिला सशक्तिकरण की मदद से बिना अधिक प्रयास किये परिवार के हर सदस्य का विकास आसानी से हो सकता है। एक महिला परिवार में सभी चीजों के लिये बेहद जिम्मेदार मानी जाती है अत: वो सभी समस्याओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकती है। महिलाओं के सशक्त होने से पूरा समाज अपने आप सशक्त हो जायेगा।

मनुष्य, आर्थिक या पर्यावरण से संबंधित कोई भी छोटी या बड़ी समस्या का बेहतर उपाय महिला सशक्तिकरण है। पिछले कुछ वर्षों में हमें महिला सशक्तिकरण का फायदा मिल रहा है। महिलाएँ अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी, तथा परिवार, देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहती है। वो हर क्षेत्र में प्रमुखता से भाग लेती है और अपनी रुचि प्रदर्शित करती है। अंतत: कई वर्षों के संघर्ष के बाद सही राह पर चलने के लिये उन्हें उनका अधिकार मिल रहा है।

निबंध  3 (500 शब्द): भारत में महिला सशक्तिकरण की जरुरत

महिला सशक्तिकरण क्या है ?

महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है।

भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरुरत है ?

महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में ढ़ाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी।

भारत एक प्रसिद्ध देश है जिसने ‘विविधता में एकता’ के मुहावरे को साबित किया है, जहाँ भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते है। महिलाओं को हर धर्म में एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढ़के हुए बड़े पर्दे के रुप में और कई वर्षों से आदर्श के रुप में महिलाओं के खिलाफ कई सारे गलत कार्यों (शारीरिक और मानसिक) को जारी रखने में मदद कर रहा है। प्राचीन भारतीय समाज दूसरी भेदभावपूर्ण दस्तूरों के साथ सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा थी। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है।

पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान भारतीय लोगों द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के लिये अपनी आवाज उठायी। राजा राम मोहन रॉय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म करने के लिये अंग्रेज मजबूर हुए। बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों (ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोभा भावे, स्वामी विवेकानंद आदि) ने भी महिला उत्थान के लिये अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया। भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई।

पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये है। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है – एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक (नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013।

भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।

Women Empowerment Essay

निबंध – 4 (600 शब्द): महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं

आज के समय में महिला सशक्तिकरण एक चर्चा का विषय है, खासतौर से पिछड़े और प्रगतिशील देशों में क्योंकि उन्हें इस बात का काफी बाद में ज्ञान हुआ कि बिना महिलाओं तरक्की और सशक्तिकरण के देश की तरक्की संभव नही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को उंचा कर सकती है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं

1) सामाजिक मापदंड

पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएं खुद को पुरुषों से कमतर समझने लगती है और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती है।

2) कार्यक्षेत्र में शारीरिक शोषण

कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादे प्रभावित होते है। यह समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और भी समस्याएं उत्पन्न करता है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।

3) लैंगिग भेदभाव

भारत में अभी भी कार्यस्थलों महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैलसे लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है। इस प्रकार के भेदभावों के कारण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और इसके साथ ही यह महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बुरे तरह से प्रभावित करता है।

4) भुगतान में असमानता

भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादे दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है। समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है।

महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएं भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएं है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़किया शिक्षा के मामले में लड़को के बराबर है पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियां जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती है।

6) बाल विवाह

हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गये प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक  तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती है।

7) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध

भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं। यहां तक कि कामकाजी महिलाएं भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें।

8) कन्या भ्रूणहत्या

कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्तें में आने वाले सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे जबतक हम कन्या भ्रूण हत्या के समस्या को मिटा नही पायेंगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका

भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती है। महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जा रही है। इन्हीं में से कुछ मुख्य योजनाओं के विषय में नीचे बताया गया है।

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना

2) महिला हेल्पलाइन योजना

3) उज्जवला योजना

4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप)

5) महिला शक्ति केंद्र

6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण

जिस तरह से भारत सबसे तेजी आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हमें महिला सशक्तिकरण के इस कार्य को समझने की आवश्यकता है क्योंकि इसी के द्वारा ही देश में लैंगिग समानता और आर्थिक तरक्की को प्राप्त किया जा सकता है।

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महिला सशक्तिकरण पर स्लोगन

महिला सशक्तिकरण पर भाषण

FAQs: Frequently Asked Questions on Women Empowerment (महिला सशक्तिकरण पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

उत्तर- पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध के बिना खुद का निर्णय लेना महिला सशक्तिकरण कहलाता है।

उत्तर- शिक्षा, महिला सशक्तिकरण का सबसे मुख्य स्रोत है।

उत्तर- डेनमार्क

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Women Empowerment Essay in Hindi : महिला सशक्तिकरण पर छात्र ऐसे लिख सकते हैं निबंध, यहाँ देखें सैंपल

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  • Updated on  
  • मार्च 4, 2024

Women Empowerment Essay in Hindi

“लोगों को जगाने के लिए, महिलाओं का जागृत होना जरूरी है” पण्डित जवाहर लाल नेहरू द्वारा कही गयी यह लाइन महिला सशक्तिकरण के महत्व को दर्शाती है। बता दें कि महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर सशक्त बनाना है। महिला सशक्तिकरण देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो वे समाज के हर क्षेत्र में योगदान दे सकती हैं। इस बीच भारत सरकार भी महिला सशक्तिकरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कदम उठा रही है। ऐसे में विद्यार्थियों को भी महिला सशक्तिकरण के बारे में बताने के लिए पर निबंध तैयार करने को दिया जाता है। आईये इस लेख के माध्यम से जानते हैं महिला सशक्तिकरण पर एक सूचनात्मक निबंध कैसे लिखें। इस ब्लॉग में आपको 100, 200 और 500 शब्दों में Women Empowerment Essay in Hindi के कुछ सैम्पल्स दिए गए हैं। आईये पढ़ते हैं विस्तार से। 

This Blog Includes:

महिला सशक्तिकरण के बारे में , महिला सशक्तिकरण पर 100 शब्दों में निबंध , महिला सशक्तिकरण पर 200 शब्दों में निबंध, महिला सशक्तिकरण क्यों महत्वपूर्ण है, महिलाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका, महिला सशक्तिकरण पर 10 लाइन्स.

‘महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ क्या है। तो आईये आपको बता देते हैं कि ‘सशक्तिकरण’ का अर्थ किसी व्यक्ति या समूह को अपनी क्षमता पहचानने, विकसित करने और उपयोग करने में सक्षम बनाना है। ताकि वह अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। 

अब समझते हैं कि महिला सशक्तिकरण क्या है। महिला सशक्तिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो महिलाओं को उनकी क्षमता तक पहुंचने और समाज में समान भागीदारी करने में मदद करता है। 

आज महिलायें विकासशील भारत को विकसित बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है परंतु फिर भी उन्हें कई बार अलग-अलग रूपों में प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे में महिला सशक्तिकरण मुख्य रूप से महिलाओं को स्वतंत्र बनाने की प्रथा को संदर्भित करता है, ताकि वह स्वयं निर्णय ले सकें और साथ ही बिना किसी पारिवारिक या सामाजिक प्रतिबंध के अपने जीवन को संभाल सकें। सरल शब्दों में कहे तो, यह महिलाओं को अपने स्वयं के व्यक्तिगत विकास की जिम्मेदारी लेने का अधिकार देता है। 

100 शब्दों में Women Empowerment Essay in Hindi इस प्रकार है:

महिला सशक्तिकरण, एक सशक्त समाज की नींव है जो महिलाओं को उनकी क्षमता तक पहुंचने और समाज में समान भागीदारी करने में सक्षम बनता है। महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य है महिलाओं को पुरुषों के साथ समान रूप से खड़े होने में मदद करना। यह देश के साथ-साथ एक परिवार की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए एक मूलभूत कदम है। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से, महिलाएं रूढ़िवादिता को चुनौती देने, बाधाओं को कम करने और अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए सशक्त बनती हैं। जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो वे परिवार कल्याण, सामुदायिक विकास और राष्ट्रीय समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

यह भी पढ़ें : मदर टेरेसा पर निबंध

200 शब्दों में Women Empowerment Essay in Hindi इस प्रकार है: 

महिला सशक्तिकरण, एक सतत प्रक्रिया है जो महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाती है। यह महिलाओं को जीवन में समान अधिकार प्राप्त करने में सहायता करता है, उनको अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। एक सशक्त नारी अपने इच्छानुसार पढ़ने और काम करने सफल होती है। वे अधिक आत्मविश्वासी होती हैं। इसके साथ ही वह एक खुशहाल परिवारों के पोषण और सामाजिक और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

लोगों के द्वारा लगाए गए अवरोध अक्सर महिला सशक्तीकरण में बाधा डालते हैं। कई बार उन्हें घरेलू भूमिकाओं तक सीमित कर देते हैं। इस मानसिकता के परिणामस्वरूप लड़कियों को शिक्षा से वंचित किया जाता है। नारियों को सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की सुरक्षा के बारे में चिंताएँ उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण बाधाएँ पैदा करती हैं। फिर भी, महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यता साबित की है, रूढ़िवादिता को दूर किया है और अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने के प्रयासों में बाल विवाह को समाप्त करने और दहेज प्रथा को खत्म करने जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। और इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और नागरिक समाज के बीच सहयोग का होना भी महत्वपूर्ण है।

महिला सशक्तिकरण पर 500 शब्दों में निबंध

500 शब्दों में Women Empowerment Essay in Hindi इस प्रकार है: 

यह भी पढ़ें : विश्व हिंदी दिवस पर निबंध

विश्व स्तर पर अपनी संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध, भारत विविध संस्कृतियों से भरा हुआ देश है। लेकिन भारतीय समाज हमेशा से एक पुरुष प्रधान देश रहा है, यही वजह है कि महिलाओं को शिक्षा और समानता जैसे बुनियादी मानवाधिकारों से लगातार वंचित रखा गया है। महिला सशक्तिकरण आज के समय में एक विशेष चर्चा का विषय है। इसका अर्थ केवल महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देना नहीं है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाना भी है। आज भी भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए कई चुनौतियां हैं। इनमें दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता आदि शामिल हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

महिलाओं के सशक्त होने से समाज भी मजबूत होता है। जब महिलायें सशक्त होती है तो वे सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाती हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाती है। भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता के बहुत से कारण सामने आते हैं। जिनमें से कुछ निम्नलिखित है :  

  • न्याय और समानता
  • आर्थिक विकास
  • सामाजिक विकास
  • स्वास्थ्य और शिक्षा

बदलते समय के साथ, आज की नारी पढ़-लिख कर स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है और चारदीवारी से बाहर निकलकर देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वे अब देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर बड़े से बड़े कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। शिक्षा से लेकर राजनीति तक महिलाएं सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं और इन क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर एक मजबूत और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करने में मदद कर रही है। सही समर्थन मिलने पर महिलाओं ने हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है। भारत में भी, हमने महिलाओं को विविध भूमिकाओं को संभालते देखा है, चाहे वह एक प्रधान मंत्री, अंतरिक्ष यात्री, उद्यमी, बैंकर और बहुत कुछ हो। 

आज भारत दुनिया के सबसे तेजी से विकसित हो रहे देशों में शुमार है। इस आर्थिक प्रगति के साथ-साथ, महिला सशक्तिकरण को प्राप्त करना भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति पुरानी सोच में बदलाव लाना अत्यंत आवश्यक है। हालाँकि यह सच है कि लोगों की सोच बदल रही है, लेकिन हमें इस दिशा में और भी प्रयास करने की आवश्यकता है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसरों, राजनीतिक भागीदारी और सामाजिक जीवन में समान अधिकार और अवसर प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। महिला सशक्तिकरण केवल महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। हमें सभी को मिलकर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए प्रयास करने चाहिए।

यह भी पढ़ें : विश्व जल दिवस पर निबंध 

Women Empowerment Essay in Hindi में आप महिला सशक्तिकरण को यहाँ दिए गए 10 लाइन्स में आसानी से समझ सकते हैं-

  • महिला सशक्तिकरण का अर्थ है समाज में महिलाओं की हिस्सेदारी को पुरुषों के बराबर बनाना। 
  • महिला सशक्तिकरण महिलाओं को अपने निर्णय स्वयं लेने की आजादी देता है और उन्हें अधिक आत्मनिर्भर बनाता है।
  • महिला सशक्तिकरण, किसी भी देश की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • महिला सशक्तिकरण से महिलाएं आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र बनती है।
  • महिला के सशक्त होने एक सुखी और समृद्ध विश्व की स्थापना में मदद मिलेगी।  
  • महिला सशक्तिकरण का मुख्य उद्देश्य है सभी महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करना।
  • सशक्त महिलाएँ समाज में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकती हैं।
  • महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव मिटाने के लिए महिला सशक्तिकरण आवश्यक है। 
  • महिला सशक्तिकरण, सभी महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  • महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

लातविया दुनिया का ऐसा देश है जहाँ महिलाओं की जनसँख्या ज्यादा है। बता दें कि इस देश में महिलाओं की कुल जनसँख्या की 54.10% है।

महिला सशक्तिकरण की मदद से समाज में नारी को वह स्थान मिलता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है। महिला सशक्तिकरण की मदद से महिलायें, बन्धनों से मुक्त होकर अपने निर्णय खुद ले सकती हैं। 

राष्ट्र निर्माण गतिविधियों में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष घोषित किया था और महिलाओं को स्वशक्ति प्रदान करने की राष्ट्रीय नीति अपनायी थी।

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Nupur Chatterjee is a passionate content writer working with the Hindi content team. She writes blogs in a comprehensive manner that engages with the readers. She has a strong command over both Hindi and English language, which helps her build a strong hold over multiple niches. In her leisure, you can find her doodling with crayons or binge-watching Netflix.

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Essay on Feminism

500 words essay on feminism.

Feminism is a social and political movement that advocates for the rights of women on the grounds of equality of sexes. It does not deny the biological differences between the sexes but demands equality in opportunities. It covers everything from social and political to economic arenas. In fact, feminist campaigns have been a crucial part of history in women empowerment. The feminist campaigns of the twentieth century made the right to vote, public property, work and education possible. Thus, an essay on feminism will discuss its importance and impact.

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Importance of Feminism

Feminism is not just important for women but for every sex, gender, caste, creed and more. It empowers the people and society as a whole. A very common misconception is that only women can be feminists.

It is absolutely wrong but feminism does not just benefit women. It strives for equality of the sexes, not the superiority of women. Feminism takes the gender roles which have been around for many years and tries to deconstruct them.

This allows people to live freely and empower lives without getting tied down by traditional restrictions. In other words, it benefits women as well as men. For instance, while it advocates that women must be free to earn it also advocates that why should men be the sole breadwinner of the family? It tries to give freedom to all.

Most importantly, it is essential for young people to get involved in the feminist movement. This way, we can achieve faster results. It is no less than a dream to live in a world full of equality.

Thus, we must all look at our own cultures and communities for making this dream a reality. We have not yet reached the result but we are on the journey, so we must continue on this mission to achieve successful results.

Impact of Feminism

Feminism has had a life-changing impact on everyone, especially women. If we look at history, we see that it is what gave women the right to vote. It was no small feat but was achieved successfully by women.

Further, if we look at modern feminism, we see how feminism involves in life-altering campaigns. For instance, campaigns that support the abortion of unwanted pregnancy and reproductive rights allow women to have freedom of choice.

Moreover, feminism constantly questions patriarchy and strives to renounce gender roles. It allows men to be whoever they wish to be without getting judged. It is not taboo for men to cry anymore because they must be allowed to express themselves freely.

Similarly, it also helps the LGBTQ community greatly as it advocates for their right too. Feminism gives a place for everyone and it is best to practice intersectional feminism to understand everyone’s struggle.

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Conclusion of the Essay on Feminism

The key message of feminism must be to highlight the choice in bringing personal meaning to feminism. It is to recognize other’s right for doing the same thing. The sad part is that despite feminism being a strong movement, there are still parts of the world where inequality and exploitation of women take places. Thus, we must all try to practice intersectional feminism.

FAQ of Essay on Feminism

Question 1: What are feminist beliefs?

Answer 1: Feminist beliefs are the desire for equality between the sexes. It is the belief that men and women must have equal rights and opportunities. Thus, it covers everything from social and political to economic equality.

Question 2: What started feminism?

Answer 2: The first wave of feminism occurred in the late nineteenth and early twentieth centuries. It emerged out of an environment of urban industrialism and liberal, socialist politics. This wave aimed to open up new doors for women with a focus on suffrage.

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    Here is an essay on 'Feminism' in Hindi language! वर्तमान समाज के निर्माण में महिलाओं के योगदान का आंकलन एक महत्वपूर्ण विषय है । महिला सशक्तीकरण आज का सच है । यह ...

  4. What is Feminism?

    नारीवाद (feminism in Hindi) लिंग, लिंग अभिव्यक्ति, लिंग पहचान, लिंग और कामुकता के आधार पर समानता और समानता के मुद्दों पर एक अंतःविषय दृष्टिकोण है जैसा कि सामाजिक ...

  5. नारीवाद पर निबंध (Essay on Feminism in Hindi)

    Essay (Hindi) Short essay (Hindi) 10 Lines Essay in Hindi; Essay (English) Other Categories. Fact; नारीवाद पर निबंध (Essay on Feminism in Hindi) August 5, 2023.

  6. फेमिनिज़म इन इंडिया

    The Feminist Archive. View full playlist » ... Email: [email protected]. FII के बारे में ...

  7. Mahadevi Varma : Political Essays on Women, Culture, and Nation

    Mahadevi Varma. : Mahādevī Varmā. Cambria Press, 2010 - Foreign Language Study - 206 pages. This edited volume of translations covers the major political essays of India's first feminist Hindi poet. A devout follower and advocate of Gandhi, Mahadevi Varma is a household name in India and is a major woman of letters in the modern Hindi world.

  8. पर्यावरण और स्त्री के गहरे संबंध को दर्शाता 'ईको फेमिनिज़म'

    स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग का भी उदाहरण भी लिया जा सकता है जिसने पर्यावरण को बचाने के लिए सभी देशों से इसके सरंक्षण की अपील की थी ताकि ...

  9. Anamika's Reshaping Of The Hindi Canon: The 2020 ...

    Anamika is a poet, writer, critic (literary and social), who has been honored with many awards including the 2020 Sahitya Akademi Hindi poetry award. She is the author of eight collections of poetry, which include Anushtup, Doob-dhaan, Khurdari Hatheliyaan, Tokri mein Digant, and Paani ko Sab Yaad thaa.Tokri mein Digant is the collection of poetry for which she has been given the Sahitya ...

  10. Mahadevi Varma: Political Essays on Women, Culture, and Nation By Anita

    This edited volume of translations covers the major political essays of India's first feminist Hindi poet. A devout follower and advocate of Gandhi, Mahadevi Varma is a household name in India and is a major woman of letters in the modern Hindi world. The essays collected in this volume represent some of Mahadevi Varma's most famous writings ...

  11. Feminism and Gender Issues in International Politics

    ADVERTISEMENTS: Here is an essay on 'Feminism and Gender Issues in International Politics' especially written for school and college students in Hindi language ...

  12. महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Women Empowerment Essay in Hindi)

    महिला सशक्तिकरण पर निबंध (Women Empowerment Essay in Hindi) By मीनू पाण्डेय / January 13, 2017. 'महिला सशक्तिकरण' के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि ...

  13. महिला सशक्तिकरण पर निबंध

    Essay on Women Empowerment in Hindi is Important for 5,6,7,8,9,10,11 and 12th Class. महिला सशक्तिकरण' के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम 'सशक्तिकरण'से क्या समझते है ...

  14. नारीवाद पर निबंध, महत्व ,भारत में नारीवाद || essay on feminism in Hindi

    नारीवाद पर निबंध, महत्व ,भारत में नारीवाद essay on feminism in Hindi 500 words for studentsनारीवाद पर 500 ...

  15. Women Empowerment Essay in Hindi

    Women Empowerment Essay in Hindi : महिला सशक्तिकरण पर छात्र ऐसे लिख सकते हैं निबंध, यहाँ देखें सैंपल। अधिक जानने के लिए क्लिक करें।

  16. Feminism in India

    Feminism in India is a set of movements aimed at defining, establishing, and defending equal political, economic, and social rights and opportunities for women in India. It is the pursuit of women's rights within the society of India. Like their feminist counterparts all over the world, feminists in India seek gender equality: the right to work ...

  17. Feminist Poetry: Contemporary Woman Poets Who ...

    These poets' work resound profoundly within the feminist discourse, while also being distant from the usual elite leanings associated with academia. The first poem is Makhi by Kishwar Naheed. Born in 1940, Kishwar Naheed is a feminist Urdu poet from Pakistan. She has written several poetry books.

  18. Homvati Devi: A Forgotten Hindi Feminist Writer

    Homvati Devi's early life. Born in Meerut in 1906, Homvati was an only child. As a young girl, literature and poetry held the most appeal to her, and the more she read, the more she was inspired to write as well. Yet she didn't pursue this seriously until much later, after the demise of her husband, Chiranjilal.

  19. Films and Feminism: Essays in Indian Cinema

    Films and Feminism: Films and Feminism. : Jasbir Jain, Sudha Rai. Rawat Publications, 2002 - Performing Arts - 280 pages. "The book explores both mainstream and parallel cinema for an analysis of the woman image, the idea of romance, the imposition and defiance of patriarchal order and a woman's journey towards self-definition.

  20. PDF Feminism in Indian Literature

    Feminism in Indian literature, as it is typically understood, is a much more majestic and over-the-top idea that is addressed most discreetly in specific contexts. But as time has gone on, feminism has gained acceptance in India, partially displacing patriarchal dominance. Aside from the political and social crusaders and activists, Indian

  21. Feminism

    Feminism, the belief in social, economic, and political equality of the sexes. Although largely originating in the West, feminism is manifested worldwide and is represented by various institutions committed to activity on behalf of women's rights and interests. Learn more about feminism.

  22. Feminism Essay: Impact and Importance of Feminism in 500+ Words

    Read this complete Essay on Feminism to know and write about the various nuances of Feminism. Download the complete Feminism Essay PDF. Feminism Essay: History of Feminism. In the 21st century, the stereotype women face in society is a concern for debate. However, the outburst of equality for women can be traced back to the late nineteenth century.

  23. Essay On Feminism in English for Students

    500 Words Essay On Feminism. Feminism is a social and political movement that advocates for the rights of women on the grounds of equality of sexes. It does not deny the biological differences between the sexes but demands equality in opportunities. It covers everything from social and political to economic arenas.