अर्थशास्त्र किसे कहते हैं? | अर्थशास्त्र का अर्थ, परिभाषा व अर्थशास्त्र के प्रकार

|| अर्थशास्त्र क्या है? | Arthashastra kya hai | What is economic in Hindi | Economic in Hindi | अर्थशास्त्र को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? | Arthashastra ka mahatva ||

Arthashastra kya hai :- आज हम बात करेंगे बहुत ही वृहद विषय अर्थशास्त्र के ऊपर। अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है जिस पर यह दुनिया चलती है और काम करती है। साथ ही इस विषय के बारे में हर किसी ने पढ़ा होता है। अब आप कहेंगे कि आपने तो किसी अन्य विषय में पढ़ाई की है या बारहवीं तक ही पढ़े हैं या कुछ और तो हम आपको बता दें कि अर्थशास्त्र विषय के जो सिद्धांत हैं वह हम अपने दैनिक जीवन में हमेशा इस्तेमाल करते (Economic in Hindi) हैं।

ऐसे में यह अर्थशास्त्र है क्या चीज़ और किस तरह से हमारे जीवन को प्रभावित करता है या फिर किस तरह से यह देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। ऐसी ही सभी तरह की बातों का उत्तर आपको इस लेख में जानने को मिलेगा जहाँ हम आपको अर्थशास्त्र के बारे में छोटी से छोटी जानकारी देंगे। अब जो लोग अर्थशास्त्र में ही पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें तो इसके बारे में बहुत जानकारी होगी और इसके लिए मोटी मोटी पुस्तकें भी होती (Arthashastra ka arth) है।

अब जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि अर्थशास्त्र एक बहुत ही बड़ा विषय है और इसे एक अलग सब्जेक्ट या डिग्री के तौर पर पढ़ाया जाता है। ऐसे में इसे एक लेख में समेटना मुश्किल होता है किन्तु फिर भी हम आपको अर्थशास्त्र के बारे में सभी जरुरी कॉन्सेप्ट तथा रूपरेखा बता देंगे ताकि आप इसका अर्थ समझ सकें। आइये जाने अर्थशास्त्र के बारे में हरेक (Arthashastra meaning) जानकरी।

अर्थशास्त्र क्या है? (Arthashastra kya hai)

भारतीय इतिहास में बहुत पहले से ही अर्थशास्त्र के बारे में बात की गयी है और इसके बारे में विस्तृत वर्णन हमारे वेदों में भी मिलता है। सनातन धर्म में चार वेद हैं और वही सनातन धर्म के आधार स्तंभ भी हैं। इसमें जो सबसे आखिरी वेद है जिसे हम अथर्ववेद के नाम से जानते हैं उसमें अर्थशास्त्र के बारे में विस्तृत चर्चा की गयी है और इसके सिद्धांतो को बताया गया है। इसी के साथ ही हम आचार्य चाणक्य का भी उदाहरण ले सकते हैं जिन्हें अर्थशास्त्र का जनक माना जाता है। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाये रखने के आदर्श सिद्धांत प्रस्तुत किये (What is economic in Hindi) थे।

अर्थशास्त्र किसे कहते हैं अर्थशास्त्र का अर्थ, परिभाषा व अर्थशास्त्र के प्रकार

अब हम बात करते हैं इस अर्थशास्त्र के बारे में और जानते हैं कि आखिरकार यह है क्या चीज़। तो अर्थशास्त्र जो है वह दो शब्दों के मेल से बना है। अर्थशास्त्र संस्कृत भाषा का शब्द है जिसमें अर्थ का अर्थ पैसों या धन से होता है और शास्त्र का अर्थ उसके नियोजन, प्रबंधन या अध्ययन से। इस तरह से अर्थशास्त्र का अर्थ होता है धन या पैसों का प्रबंधन या अध्ययन किया जाना। मूल रूप से इसे धन का अध्ययन किया जाना कहा जाएगा। यही अ र्थशास्त्र की परिभाषा कही जा सकती (Arthashastra kya hai in Hindi) है।

तो एक तरह से अर्थशास्त्र का अर्थ होता है किसी भी देश या व्यक्ति विशेष के लिए उसके धन का अध्ययन कर उसके बारे में एक रिपोर्ट तैयार की जानी। अब कोई देश किस तरह से अपने यहाँ उपलब्ध संसाधनों व धन का अध्ययन कर उनका नियोजन करता है, उसका किस तरह से उपयोग करता है और किस तरह से आगे उनसे काम लेता है, उससे उसे क्या मिलता है, यह सब अर्थशास्त्र का ही हिस्सा होता है, आइये इसे और भी अच्छे से समझते (Economic kya hai) हैं।

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अर्थशास्त्र की परिभाषा (Arthshastra ki paribhasha)

आपने अर्थशास्त्र के बारे में तो जाना लेकिन अभी भी आपको इसके बारे में सही से पता नहीं चला होगा। ऐसे में हम आपके लिए सरल भाषा में अर्थशास्त्र की परिभाषा रखेंगे ताकि आप इसके अर्थ को सही से समझ (Economic kya hoti hai) सकें। इसके लिए हम अर्थशास्त्र की परिभाषा को तीन टुकडो में बांटने का काम करेंगे और फिर आपको समझायेंगे कि आखिरकार यह अर्थशास्त्र होती क्या चीज़ है, आइये जाने।

अब ईश्वर ने हमें मनुष्य रुपी शरीर तो दे दिया है लेकिन हम केवल अपने शरीर से ही तो काम नहीं चला सकते हैं ना। ना ही हम केवल प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रह सकते हैं जैसा कि पहले आदिवासी किया करते थे। अब इसी चीज़ के लिए ही धर्म की स्थापना हुई थी जिसमें जीवन जीने की एक प्रकृति बनायी गयी थी। इसी धर्म के साथ ही अर्थशास्त्र का कॉन्सेप्ट भी आया जिसमें प्राकृतिक चीज़ों के माध्यम से किसी चीज़ का उत्पादन करना शामिल था ताकि वह मनुष्य के काम में आ (Economic kya hota hai in Hindi) सके।

अब हम अपने आसपास जो भी चीज़ देखते हैं, वह प्राकृतिक तो होती नहीं है और उसे किसी ना किसी चीज़ का इस्तेमाल करके बनाया गया होता है। कहने का अर्थ यह हुआ कि किसी ना किसी फैक्ट्री, कारखाने इत्यादि में वह वस्तु निर्मित हुई होगी और तभी वह उपयोग के लायक हुई होगी।

अब जो वस्तु या उत्पाद का उत्पादन किया जा रहा है या उसका निर्माण किया जा रहा है, उसका वितरण करना भी तो जरुरी हो जाता है। इसमें आती है उस चीज़ को बेचे जाने की क्रिया अर्थात उसे बाजार में लोगों के लिए उपलब्ध करवाना। इस तरह से जिस चीज़ का निर्माण जिस भी उद्देश्य के तहत हो रहा है, अब उसे लोगों तक उपलब्ध करवाने की (Economic kya hai in Hindi) प्रक्रिया।

इसमें इस नियम का ध्यान देना होता है कि वह वस्तु किसके लिए बनायी गयी है, क्यों बनायी गयी है और उसे किन किन क्षेत्रों में वितरित करना होगा और किस मूल्य में वितरित करना होगा। उस वस्तु के क्या कुछ प्रकार हैं और वह किस व्यक्ति के क्या काम आ सकती है इत्यादि।

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अब किसी उत्पाद या वस्तु का निर्माण हो गया और वह वितरित भी हो गयी तो अर्थशास्त्र के अंतिम चरण में जो चीज आती है वह होती है उस वस्तु या उत्पाद का उपभोग किया जाना या उसका उचित उपयोग किया जाना। अब जिस चीज़ के लिए इतना परिश्रम हुआ और वह वस्तु बनायी गयी तो वह किसी ना किसी काम के लिए ही बनाई गयी होगी।

उदाहरण के तौर पर पेड़ों से लड़की को काट कर यदि किसी टेबल का निर्माण किया गया है तो वह लोगों के लिए काम करने या अन्य किसी उपभोग के लिए ही बनायी गयी होगी। ऐसे में जहाँ भी या जिस भी व्यक्ति को उस टेबल की आवश्यकता है, वहां पर उसका वितरण कर उपभोग किया जाना ही अर्थशास्त्र का हिस्सा होता है।

अब इस तरह से आपको अर्थशास्त्र की परिभाषा बहुत हद्द तक समझ में आ गयी होगी और यह भी समझ में आ गया होगा कि हम आपको क्या कहना चाह रहे हैं। एक तरह से ईश्वर ने जो हमें संसाधन दिए हैं, उनका उचित उपयोग किया जाना ही अर्थशास्त्र का हिस्सा होता है। अब ऊपर वाले पॉइंट में एक पॉइंट रह गया है जो वितरण से भिन्न है लेकिन अंत में उसका उपभोग ही होना होता है, आइये जाने उसके बारे में भी।

अब जिस भी उत्पाद का इस्तेमाल करना है तो उसका उत्पादन तो करना ही होगा और अंत में उसका उपभोग भी होगा। ऐसे में अर्थशास्त्र के दो प्रकार उत्पादन और उपभोग तो स्थायी रहते हैं लेकिन वितरण की जगह बहुत जगह विनिमय का भी इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में इस विनिमय का अर्थ होता है चीज़ों की अदला बदली की जाना। अब वितरण में तो आपको कोई चीज़ लेने के बदले में धन देना होता है लेकिन विनिमय में आपको अपनी कोई वस्तु देनी होती है।

उदाहरण के तौर पर आपको किसी से टेबल लेनी है और बदले में आपके यहाँ एक्स्ट्रा कुर्सी है जिसका मूल्य बराबर ही है तो आप दोनों एक दूसरे से टेबल व कुर्सी का लेनदेन कर सकते हैं। विनिमय तभी होता है जब आप दोनों को ही एक दूसरे की वस्तु की आवश्यकता होती है।

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अर्थशास्त्र को अंग्रेजी में क्या कहते हैं? (Arthashastra meaning in English)

आपको अर्थशास्त्र का अंग्रेजी शब्द भी पता होना चाहिए क्योंकि दुनियाभर में इसी शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको बता दें कि अर्थशास्त्र को अंग्रेजी में इकोनॉमिक्स कहा जाता है और आपने अवश्य ही इसका नाम सुन रखा होगा। वह इसलिए क्योंकि इस विषय में तो लोग अपने स्कूल में भी सब्जेक्ट पढ़ते हैं और आगे जाकर इसमें डिग्री भी ली जाती (Arthashastra in English) है। यहाँ तक कि कई तरह की डिग्री में इकोनॉमिक्स को पढ़ना जरुरी होता है जैसे कि बीकॉम, सीए, सीएस इत्यादि। ऐसे में यह बहुत ही ज़रूरी विषय होता है।

अर्थशास्त्र के प्रकार (Arthashastra ke prakar)

अब जब आपने अर्थशास्त्र की परिभाषा के बारे में जान लिया है तो अब बारी आती है अर्थशास्त्र के प्रकारों के बारे में जानने की। ऐसे में अर्थशास्त्र को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित करके अध्ययन किया जाता है और आज हम आपको उन्हीं दोनों प्रकारों के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले (Arthashastra ke prakar bataiye) हैं।

व्यष्टि अर्थशास्त्र या माइक्रो इकोनॉमिक्स (Vyasti arthashastra in Hindi)

इस तरह का अर्थशास्त्र सूक्षम अर्थशास्त्र भी कहा जा सकता है क्योंकि इसका आंकलन व्यक्ति विशेष के आधार पर ही किया जाता है। अब जो अर्थशास्त्र होता है वह एक व्यक्ति से लेकर पूरे समाज, देश व दुनिया को प्रभावित करता है क्योंकि सभी इसी पर ही टिके हुए होते हैं। हर जगह काम हो रहा होता है और उस काम को हम लोग ही कर रहे होते हैं। अब कोई देश है तो उसमे उसकी जनसँख्या तथा उपलब्ध संसाधनों के आधार पर ही काम होता (Vyasti arthashastra kya hai) है।

ऐसे में उस व्यक्ति के काम से उस व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित होता है तो वहीं उसका देश व दुनिया की अर्थशास्त्र भी प्रभावित होती है। ऐसे में उस व्यक्ति के बारे में या उसकी अर्थशास्त्र का अध्ययन करना, उसका काम देखना, उसके द्वारा चीज़ों को खरीदा जाना, उसका उपभोग किया जाना इत्यादि सभी कुछ व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही एक हिस्सा होते हैं। इसे हम अंग्रेजी भाषा में माइक्रो इकोनॉमिक्स भी कह सकते (What is micro economics in Hindi) हैं।

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समष्टि अर्थशास्त्र या मैक्रो इकोनॉमिक्स (Samashti arthashastra ki paribhasha)

अब हमने ऊपर व्यक्ति विशेष के अर्थशास्त्र की तो बात कर ली लेकिन इसे वृहद् स्तर पर भी देखा जाना बहुत जरुरी हो जाता है क्योंकि किसी भी देश के लिए या दुनिया के लिए वही मायने रखता है। अब व्यक्ति तो बदले जा सकते हैं या उन्हें बाध्य किया जा सकता है या उनका शोषण किया जा सकता है या नीतियों में परिवर्तन लाया जा सकता है या कुछ और। ऐसे में जिन नीतियों या अर्थशास्त्र के जिस रूप के द्वारा उस देश को चलाया जा रहा है, वह बहुत ही मायने रखता (Samashti arthashastra kya hai) है।

ऐसे में वह देश या समाज किस तरह से कार्य कर रहा है, वहां कौन किस क्षेत्र में काम कर रहा है, वहां किस किस तरह के संसाधन हैं और उनका किस तरह से उपयोग किया जा रहा है, वहां पर प्रति व्यक्ति आय क्या है, उस देश की मुद्रा का क्या मुल्य है, वहां की आर्थिक विकास दर क्या है इत्यादि सभी आंकड़े या अध्ययन इसी समष्टि अर्थशास्त्र या मैक्रो इकोनॉमिक्स के अंतर्गत गिने जाते हैं। इसी कारण इसका नाम समष्टि अर्थशास्त्र रखा गया है अर्थात जिस अर्थशास्त्र में सभी का प्रवेश हो (What is macro economics in Hindi) जाए।

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व्यष्टि अर्थशास्त्र व समष्टि अर्थशास्त्र के बीच का अंतर (Difference between micro and macro economics in Hindi)

अब आपको दोनों तरह के अर्थशास्त्र के बीच का अंतर भी जान लेना चाहिए ताकि आप इसे बेहतर तरीके से समझ सकें। तो एक ओर जहाँ व्यष्टि अर्थशास्त्र किसी व्यक्ति के द्वारा किसी चीज़ में निवेश किये जाने और उसके उपभोग से संबंधित होता है तो वहीं समष्टि अर्थशास्त्र को देश के नीति निर्धारण के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। अब व्यष्टि अर्थशास्त्र के द्वारा यह देखा जाता है कि किस तरह के व्यक्ति के लिए किस तरह के उत्पाद का निर्माण किया जाना या किस तरह की सेवा दी जानी उचित (Vyasi aur samashti me antar) रहेगी।

उदाहरण के तौर पर आप कई तरह के शैम्पू को बाजार में देखते होंगे। अब इसमें से कोई लिंग आधारित होता है तो कोई किसी बीमारी के लिए तो किसी की कोई अन्य विशेषता होती है। अब इसमें बाल टूटने से बचाने, रूखे बालों के लिए इत्यादि चीज़ों के लिए होते हैं। ऐसे में यदि बाजार में किसी तरह के शैम्पू की ज्यादा माँग है तो कंपनी क्यों किसी अन्य शैम्पू का निर्माण करेगी। ऐसे में व्यक्ति विशेष की माँग को समझना ही व्यष्टि अर्थशास्त्र का हिस्सा होता है।

वहीं दूसरी ओर समष्टि अर्थशास्त्र में समूचे राष्ट्र का अध्ययन किया जाता है। इसके तहत केंद्र सरकार योजनाएं बनाती है ताकि राष्ट्र की उन्नति करवायी जा सके। इसके लिए अलग अलग योजना, स्कीम, नीति इत्यादि बनायी जाती है और उनमे नियम जोड़े जाते हैं। इसके अनुसार देश को चलाने का कार्य होता है और उसी से ही देश की राष्ट्रीय आय व अन्य आंकड़े निकल कर सामने आते हैं। यही समष्टि अर्थशास्त्र होता है।

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अर्थशास्त्र की विशेषता (Arthashastra ki visheshta)

अब आपको यह भी जान लेना चाहिए कि आखिरकार इस अर्थशास्त्र की क्या कुछ विशेषताएं होती हैं अर्थात इससे क्या कुछ निकल कर सामने आता है। अब अर्थशास्त्र को किसी एक पैमाने पर नहीं आँका जाता है और ना ही यह हमें एक तरह का आंकड़ा देती है। आज भी अर्थशास्त्र एक अध्ययन का विषय है और इस पर छात्रों को पढ़ाया जाता है ताकि वे अपने देश को एक बेहतर अर्थशास्त्र प्रदान करने में अपना योगदान दे (Arthashastra ki visheshta bataiye) सकें।

इसके लिए सबसे उत्तम पुस्तक महान अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य के द्वारा लिखी गयी थी जिन्हें हम कौटिल्य के नाम से भी जानते हैं। किन्तु यह देश का दुर्भाग्य ही है कि 800 वर्षों की गुलामी में से जो 600 वर्षों की बर्बर व क्रूरतम इस्लामिक गुलामी हमारे देश ने सही, उस दौरान मुगल आक्रांताओं के द्वारा देश का लगभग साहित्य व खोज नष्ट कर दी (Economic specialty in Hindi) गयी। यह केवल हमारे देश के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के लिए एक अपूर्णीय क्षति थी। फिर भी आज हम अर्थशास्त्र के बारे में कुछ विशेषताएं आपके सामने रखने जा रहे हैं।

  • अर्थशास्त्र के द्वारा ही किसी देश की जीडीपी का आंकलन किया जाता है जिसे हम सकल घरेलू उत्पाद के नाम से जानते हैं।
  • इसी के द्वारा ही राष्ट्रीय आय का भी आंकलन किया जाता है और किसी देश को किस वित्तीय वर्ष में कितनी आय हुई और उसमे से कितना भुगतान हुआ, यह देखा जाता है।
  • अर्थशास्त्र के द्वारा ही यह देखा जाता है कि अगले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार की क्या रणनीति होगी या किन किन क्षेत्रों में कितना तक का निवेश किया जाएगा।
  • किसी देश की अर्थशास्त्र ही यह निर्धारित करती है कि वहां पर किस किस तरह की योजनाएं चलायी जाएँगी और देश कल्याण के क्या कुछ कार्य होंगे।
  • अर्थशास्त्र ही बताती है कि उस देश में बाजार भाव क्या रहेगा अर्थात किसी चीज़ का मूल्य कितना रहेगा और कितना नहीं।
  • इसी के द्वारा ही यह देखा जाता है कि विभिन्न वस्तुओं पर सरकार के द्वारा कितने प्रतिशत का कर या टैक्स लिया जाएगा या फिर उसे कर से मुक्त किया जाएगा।
  • ब्याज का क्या सिद्धांत रहने वाला है और कितने प्रतिशत ब्याज मिलेगा, यह भी अर्थशास्त्र की ही एक विशेषता या अंग है।
  • न्यूनतम मजदूरी कितनी होगी और उस देश के श्रमिकों को और क्या कुछ सुविधाएँ मिलेंगी यह भी अर्थशास्त्र का ही हिस्सा होता है।
  • उस देश की मुद्रा का मूल्य कितना होगा और अन्य देशों की मुद्रा की तुलना में कितना अंतर होगा यह भी उस देश के अर्थशास्त्र पर ही निर्भर करता है।
  • देश की बैंकिंग नीति क्या होगी और वह किन नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़ेगी, यह भी अर्थशास्त्र का ही एक अंग है।
  • राजकीय कोष कितना रहने वाला है, देश की मौद्रिक नीति क्या होगी इत्यादि सभी अर्थशास्त्र का ही हिस्सा होते हैं।

एक तरह से व्यक्ति, समाज, राज्य व देश से जुड़े वह सभी अंग जो पैसों के प्रबंधन से जुड़े हुए होते हैं, वे सभी ही अर्थशास्त्र का हिस्सा होते हैं। इसी के आधार पर ही सभी तरह के निर्णय लिए जाते हैं और आगे बढ़ा जाता है।

अर्थशास्त्र का महत्व (Arthashastra ka mahatva) 

अब हम बात करने वाले हैं अर्थशास्त्र के महत्व के बारे में और इसके जरिये हम यह जानेंगे कि आखिरकार किसी देश के लिए या व्यक्ति विशेष के लिए अर्थशास्त्र क्यों इतनी जरुरी होती है और इससे उसे क्या कुछ लाभ देखने को मिल सकते (Economic importance in Hindi) हैं। एक तरह से हम सभी के लिए अर्थशास्त्र का क्या कुछ महत्व होता है, इसके बारे में जानने का समय आ गया है।

  • किसी भी देश के स्थायी विकास के लिए अर्थशास्त्र का आंकलन किया जाना और उसके अनुसार नीति निर्देशों का बनाया जाना बहुत ही ज्यादा जरुरी होता है।
  • उस देश के नागरिकों का उत्थान करने के लिए अर्थशास्त्र की जरुरत होती (Economic value in Hindi) है।
  • अर्थशास्त्र का योगदान प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाने और उनके द्वारा खरीदने की क्षमता को विकसित करने में भी होता है।
  • बाजार में वस्तुओं के मूल्य निर्धारण करने में भी अर्थशास्त्र की ही भूमिका प्रमुख होती है।
  • यदि देश पर आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है और अर्थव्यवस्था डगमगा रही (Arthashastra ka mahatva bataiye) है तो उस स्थिति में भी बेहतर अर्थशास्त्र की योजना ही इससे निपटारा दिलवा सकती है।
  • कच्चे माल को सही जगह पर सही समय पर पहुंचाने में भी अर्थशास्त्र की ही भूमिका होती है। तभी तो चीज़ें निर्मित हो पाती है और हम सभी उसका उपभोग कर पाने में सक्षम होते हैं।
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाये रखने में भी अर्थशास्त्र का ही योगदान होता है जिस कारण व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा चीजें कम दाम में उपलब्ध हो जाती है।

इसी तरह से अर्थशास्त्र के एक नहीं बल्कि कई लाभ होते हैं जो उसके महत्व को हमारे सामने रखते हैं। एक तरह से जिस देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होती है तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि वहां अर्थशास्त्र की गहरी समझ रखने वाले लोग उस देश को चला रहे हैं और उसको लेकर नीति निर्देश बना रहे हैं।

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अर्थशास्त्र क्या है – Related FAQs 

प्रश्न: अर्थशास्त्र को आप क्या समझते हैं?

उत्तर: अर्थशास्त्र के बारे में संपूर्ण जानकारी को हमने इस लेख के माध्यम से बताने का प्रयास किया है जिसे आपको पढ़ना चाहिए।

प्रश्न: भारत में अर्थशास्त्र का पिता कौन है?

उत्तर: भारत में अर्थशास्त्र के पिता चाणक्य को माना जाता है।

प्रश्न: अर्थशास्त्र के जनक का क्या नाम है?

उत्तर: अर्थशास्त्र का जनक एडम स्मिथ है।

प्रश्न: अर्थशास्त्र के 2 प्रकार कौन से हैं?

उत्तर: अर्थशास्त्र के 2 प्रकार हैं व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र।

तो इस तरह से इस लेख के माध्यम से आपने अर्थशास्त्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली है। आपने जाना कि अर्थशास्त्र क्या है अर्थशास्त्र के प्रकार क्या हैं अर्थशास्त्र की विशेषता और महत्व क्या है इत्यादि। आशा है कि जो जानकारी लेने आप इस लेख पर आए थे वह आपको मिल गई होगी। यदि अभी भी कोई शंका आपके मन में शेष रह गई है तो आप हम से नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।

लविश बंसल

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सीधे आपके मेल बॉक्स में अपना ई मेल एड्रेस सब्मिट करें, घरेलू हिंसा अधिनियम (protection of women from domestic violence act, 2005) के बारे मेंं खास बातेंं, livelaw news network.

7 Nov 2020 4:15 AM GMT

घरेलू हिंसा अधिनियम (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के बारे मेंं खास बातेंं

भारत में कई घरेलू हिंसा कानून हैं। सबसे शुरुआती कानून दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 था जिसने दहेज देने और प्राप्त करने का कार्य अपराध बना दिया। 1961 के कानून को मजबूत करने के प्रयास में, 1983 और 1986 में दो नई धाराओं, धारा 498A और धारा 304B को भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया। सबसे हालिया कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) 2005 है।

घरेलू हिंसा को वयस्क द्वारा एक रिश्ते में दुरुपयोग की गई शक्ति दूसरे (महिला) को नियंत्रित करने को वर्णित किया जा सकता है। यह हिंसा और दुर्व्यवहार के अन्य रूपों के माध्यम से एक रिश्ते में नियंत्रण और भय की स्थापना करता है। यह हिंसा शारीरिक हमला, मनोवैज्ञानिक शोषण, सामाजिक शोषण, वित्तीय शोषण या यौन हमला का रूप ले सकती है, हालांकि घरेलू हिंसा की परिभाषा अधिनियम की धारा 3 में दिया गया है।

हाल में ही एनसीआरबी द्वारा जारी आकडे को देखे तो 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किए गए, जिसमें 2018 से 7.3% की वृद्धि हुई (3,78,236 मामले)। आईपीसी के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के अधिकांश मामलों को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के तहत दर्ज किया गया (30.9%), और अभी कोरोना वायरस महामारी के दौरान घरेलु हिंसा के मामले में काफी बढोतरी दर्ज की गई है।

महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा सदियों पुरानी घटना है। महिलाओं को हमेशा कमजोर, और शोषित होने की स्थिति में माना जाता था । हिंसा लंबे समय से महिलाओं के साथ होता है और पहले इसको स्वीकार किया जाता था। 2005 में स्थापित, घरेलू हिंसा अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए) से महिलाओं की सुरक्षा, घरेलू रिश्तों में महिलाओं को हिंसा से बचाने के उद्देश्य से सांसद द्वारा बनाया गया एक कानून है।

PWDVA के तहत सबसे महत्वपूर्ण परिभाषाएँ क्या हैं?

घरेलू हिंसा की परिभाषा अच्छी तरह से लिखित और व्यापक और समग्र है। यह मानसिक, साथ ही शारीरिक शोषण को कवर करता है। उत्पीड़न, ज़बरदस्ती, स्वास्थ्य को नुकसान, सुरक्षा । इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित के लिए विशिष्ट परिभाषाएँ हैं:

शारीरिक शोषण: अधिनियम या आचरण के रूप में परिभाषित किया गया है जो इस तरह की प्रकृति है कि शारीरिक दर्द, नुकसान, या जीवन के लिए खतरा, अंग या स्वास्थ्य या पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य या विकास को बिगाड़ने के लिए '। शारीरिक शोषण में मारपीट, आपराधिक धमकी और आपराधिक बल भी शामिल हैं।

कानून इसे "यौन प्रकृति" के आचरण के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी महिला की गरिमा को अपमानित, अपमानित, अपमानित करता है या अन्यथा उल्लंघन करता है। '

मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग:

किसी भी रूप का अपमान / उपहास, जिसमें एक पुरुष बच्चे की अक्षमता के संबंध में, साथ ही बार-बार धमकी भी शामिल है।

आर्थिक दुर्व्यवहार:

पीड़ित और उसके बच्चों के जीवित रहने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों से वंचित, किसी भी संपत्ति के निपटान के लिए, जिसमें पीड़ित के पास ब्याज / हिस्सेदारी और वित्तीय संसाधनों के निषेध / प्रतिबंध / प्रतिबंध शामिल हैं।

उत्तेजित व्यक्ति" की परिभाषा में कोई भी महिला शामिल है जो प्रतिवादी के साथ घरेलू संबंध में है या जो उनके द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार होने का आरोप लगाती है। (पीडब्ल्यूडीवीए की धारा 2 (ए) देखें)

"प्रतिवादी" की परिभाषा में किसी भी वयस्क पुरुष को शामिल किया गया है जो कि पीड़ित महिला के साथ घरेलू संबंध में है या है, और जिसके खिलाफ महिला ने विवाहित महिला के पति या पुरुष साथी से राहत या किसी पुरुष या महिला रिश्तेदार की मांग की है या विवाह की प्रकृति के संबंध में एक महिला बंधी है |

भारतीय दंड संहिता, 1860 महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के संबंध में इसमें कुछ संशोधन लागू करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आपराधिक कानून है। धारा 498 ए क्रूरता के संदर्भ में कुछ चीजों से संबंधित है जो पढ़ा जाता है :-

· कोई भी जानबूझकर आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट या खतरे का कारण बनने की संभावना है; या

· किसी भी संपत्ति या किसी मूल्यवान सुरक्षा के लिए किसी भी गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए उसे या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति को मजबूर करने की दृष्टि से महिलाओं का उत्पीड़न या किसी भी मांग को पूरा करने के लिए उसके या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा उसकी विफलता के कारण है।

"घरेलू संबंध" की परिभाषा किसी भी रिश्ते से है 2 व्यक्ति एक साझा घर में एक साथ रहते हैं और ये लोग हैं:

· आम सहमति से संबंधित (रक्त संबंध)

· शादी से संबंधित।

· विवाह की प्रकृति में एक संबंध (जिसमें लिव-इन संबंध शामिल होंगे)

"बच्चे" की परिभाषा अठारह वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति है, और इसमें पालक, दत्तक या सौतेला बच्चा भी शामिल है।

PWDVA की अन्य प्रासंगिक विशेषताएं क्या हैं?

उपरोक्त परिभाषाओं के अलावा, निम्नलिखित कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें अधिनियम कवर करता है।

पीड़ित संसाधन

अधिनियम के तहत, पीड़ितों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा, परामर्श और आश्रय गृह के साथ-साथ आवश्यक होने पर कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।

परामर्श: धारा 14

परामर्श, जैसा कि मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित है, इसमें शामिल दोनों पक्षों को प्रदान किया जाना चाहिए, या जो भी पार्टी को आदेश दिया गया है, उसकी आवश्यकता होगी।

संरक्षण अधिकारी: धारा 9

अधिनियम के तहत, सरकार द्वारा हर जिले में संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए, जो अधिमानतः महिलाएं होनी चाहिए और योग्य होनी चाहिए। संरक्षण अधिकारी के कर्तव्यों में एक घरेलू घटना की रिपोर्ट दर्ज करना, आश्रय गृह, पीड़ितों के लिए चिकित्सा सुविधा और कानूनी सहायता प्रदान करना, और यह सुनिश्चित करना कि उत्तरदाताओं के खिलाफ जारी किए गए संरक्षण आदेश जारी किए जाते हैं।

संरक्षण के आदेश: धारा 18

पीड़ित की सुरक्षा के लिए सुरक्षा आदेश प्रतिवादी के खिलाफ मुद्दे हो सकते हैं, और इसमें शामिल हैं जब वह हिंसा करता है, सहायता करता है या उसे रोक देता है, किसी भी जगह में प्रवेश करता है, जहां पीड़ित व्यक्ति उसके साथ संवाद करने का प्रयास करता है या पीड़ितों की संपत्ति के किसी भी रूप को प्रतिबंधित करता है। पीड़ित के हित के लोगों के लिए हिंसा।

निवास: धारा 19

मजिस्ट्रेट दोनों पक्षों के निवास स्थान से प्रतिवादी को प्रतिबंधित करने का विकल्प चुन सकता है यदि उन्हें लगता है कि यह पीड़ित की सुरक्षा के लिए है। इसके अतिरिक्त, प्रतिवादी पीड़ित को निवास स्थान से बेदखल नहीं कर सकता है।

मौद्रिक राहत: धारा 20

प्रतिवादी को नुकसान की भरपाई के लिए पीड़ित को राहत प्रदान करना है, जिसमें आय, चिकित्सा व्यय, विनाश, क्षति या हटाने, और पीड़ित और उसके बच्चों के रखरखाव से संपत्ति के नुकसान के कारण होने वाले किसी भी खर्च शामिल हैं।

बच्चों की हिरासत: धारा 21

यदि आवश्यक हो तो प्रतिवादी के अधिकारों का दौरा करने के साथ, बच्चों के हिरासत को आवश्यकतानुसार पीड़ित को प्रदान किया जाना चाहिए।

PWDVA के क्या लाभ हैं?

यह कानून CEDAW (महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन) के बाद एक कानून बनाया गया था

'घरेलू संबंध' की परिभाषा सभी प्रकार की घरेलू व्यवस्था को कवर करने के लिए पर्याप्त है; उदाहरण के लिए, लिव-इन रिलेशनशिप(जब युगल शादी नहीं करते हैं)। इसमें शामिल किए जाने के साथ-साथ ऐसे रिश्ते जो कपटपूर्ण या द्वेषपूर्ण की श्रेणी में आते हैं, एक अग्रणी कदम था। लिव-इन रिलेशनशिप के संबंध में, भरत मठ और ऑर्म्स बनाम विजया रेंगाथन और ओआरएस के मामले में पारित एक विशिष्ट निर्णय में, यह निर्णय लिया गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर पैदा हुआ बच्चा संपत्ति (संपत्ति) का हकदार है। माता-पिता के स्वामित्व वाली संपत्ति, लेकिन पैतृक संपत्ति नहीं)। इसका मतलब है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उसके बच्चे को आर्थिक शोषण का खतरा नहीं हो सकता है। बेशक, हालांकि यह संपत्ति के स्वामित्व और हिंदू विवाह अधिनियम की अधिक प्रासंगिकता है, लेकिन यह जानकर खुशी हो रही है कि जिन बच्चों के विवाह के संबंध नहीं हैं, वे संपत्ति के अधिकार भी प्राप्त कर सकते हैं।

इसके अलावा, अधिनियम में पति या पुरुष पार्टनर के पुरुष और महिला रिश्तेदारों (जो उन स्थितियों में मदद करते हैं, जहां परिवार के सदस्य पत्नी को परेशान करते हैं) द्वारा किए गए घरेलू हिंसा से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त, "बच्चे" की परिभाषा भी पालक, दत्तक और सौतेले बच्चों की समावेशी है।

प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह पीड़ित को मुआवजा दे और वित्तीय संसाधनों को न काटे, और यह पीड़ित को न केवल हिंसा से बचाता है, बल्कि उसके हितों की भी रक्षा करता है। "साझा घर" की परिभाषा यह निर्दिष्ट करती है कि चाहे पीड़ित के पास कानूनी अधिकार / इक्विटी हो या नहीं; यदि उसने प्रतिवादी के साथ घर में निवास किया है, और वह उसके साथ हिंसक रहा है, तो प्रतिवादी अधिनियम के तहत उत्तरदायी है। इसका मतलब यह है कि भले ही उसके पास घर में कानूनी या वित्तीय हिस्सेदारी न हो, प्रतिवादी उसे बेदखल नहीं कर सकता।

संरक्षण के आदेश अधिकांश उदाहरणों में शामिल हैं, जहां प्रतिवादी संभवतः पीड़ित का लाभ उठा सकता था, और फिर से केवल उस परिभाषा तक सीमित नहीं है। अंत में, कानून द्वारा जारी किए गए आदेश पीड़ित को सबूत के रूप में मुफ्त दिए जाने चाहिए।

क्या सुधारा जा सकता है?

अधिनियम के सबसे महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक "स्पष्ट रूप से पीड़ित व्यक्ति" और "प्रतिवादी" की परिभाषाएं हैं; और घरेलू हिंसा के खिलाफ केवल महिलाओं के अधिकार अधिनियम में कैसे शामिल हैं। यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि यह अधिनियम महिलाओं को दिए गए अर्ध-आपराधिक या नागरिक उपचार प्रदान करता है, जिनकी आवश्यकता है एक विशेष सामाजिक संदर्भ है जिसमें भारत में घरेलू हिंसा होती है। न केवल महिलाएं घरेलू हिंसा पीड़ितों का एक उच्च अनुपात बनाती हैं, बल्कि कम राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक निर्णय लेने की शक्ति के साथ मिलकर उन्हें अपमानजनक घरेलू संबंधों से बाहर निकलने के लिए कठिन है।

एक मुद्दा जिसे पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, वह है कतार के रिश्ते। हालांकि एस। खुशबू बनाम के फैसले में अधिनियम में उसी का कोई विशिष्ट विवरण नहीं है। कन्नीमाला और अन्र।, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप केवल विषमलैंगिक संबंधों में प्रमुख उम्र के अविवाहित व्यक्तियों में ही स्वीकार्य है।

जिन कार्यान्वयन में बाधाएं आ रहीं हैं

1) नियमों के वास्तविक कार्यान्वयन के साथ समस्याएं प्रतीत होती हैं। कई जिलों में, संरक्षण अधिकारियों को नियुक्त करने के बजाय, मौजूदा सरकारी अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी जाती है; और उसी (नीचे लिंक देखें) से निपटने के लिए सुसज्जित नहीं हैं। इसलिए वे अधिनियम में निर्दिष्ट अधिकांश कर्तव्यों को पूरा नहीं करते हैं, और इस वजह से पीड़ित अपने लाभ के लिए कानून का पूर्ण उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं। इसी तरह, आश्रय घरों के संबंध में, अधिनियम ने निर्दिष्ट किया कि पर्याप्त रूप से समझा जाना चाहिए। हालांकि, वास्तविक कार्यान्वयन में शोध से पता चला है कि कई जिलों में एक भी आश्रय गृह नहीं है।

2) हालांकि अधिनियम में कुछ दोष हैं, और कार्यान्वयन वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देता है; नीति अपने आप में काफी व्यावहारिक प्रतीत होती है। हां, यह समझना महत्वपूर्ण है कि पुरुषों को भी हिंसा का सामना करना पड़ता है। हां, अधिनियम को बेहतर ढंग से लागू करना और सरकार को इस बात के लिए जवाबदेह रखना जरूरी है कि उन्होंने उसी के संबंध में बेहतर सुधार के उपाय क्यों नहीं किए हैं। हालांकि, यह पहचानना भी महत्वपूर्ण है कि अधिनियम के समय (और अब भी), महिलाओं को न्याय तक पहुंच में आसानी प्रदान करने वाले कानून की शुरुआत करना अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसकी वजह यह है कि दहेज के कारण होने वाली मौतों में महिलाओं के खिलाफ उच्च और घरेलू और यौन हिंसा होती है। इस अधिनियम का उद्देश्य उन महिलाओं को एक सरलीकृत प्रक्रिया प्रदान करना है जो घरेलू हिंसा का सामना करने के लिए नागरिक और अर्ध आपराधिक उपचार तक पहुँच प्राप्त करती हैं, और यह काफी हद तक ऐसा करने में सफल रही है।

भारत जैसे देश में, जिसमें पितृसत्तात्मक समाज है तब ये कानून घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम फलस्वरूप एक सराहनीय कानून है। यह महिलाओं के प्रति हिंसा की व्यापक किस्मों पर विचार और स्वीकार करता है। इस अधिनियम से पहले परिवार के अंदर घरेलू हिंसा की सभी विभिन्न स्थितियों को उन अपराधों के तहत निपटाया जाना था जो पीड़ित के लिंग के संबंध के अलावा आईपीसी में गठित हिंसा के संबंधित कृत्यों के तहत होते थे।

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Bhasha - भाषा की परिभाषा, भेद और विशेषताएं

Amit singh

Hello Friends! Welcome to hindigkonline . यदि आप शुरू से हिंदी व्याकरण सीखना चाहते हैं तो आप सही जगह पर हैं।  यहां आपको एक-एक करके हिंदी व्याकरण के विभिन्न टॉपिक के बारे में बताया गया है। 

Bhasha -  दुनिया में सभी लोग कोई न कोई भाषा बोलते हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि इतने लोगों में से बहुत कम लोग जानते हैं कि यह भाषा क्या है? इसलिए आप इस लेख को पूरा पढ़िए। यहां से आप व्याकरण सीखना शुरू कर सकते हैं और क्रम से आगे बढ़ सकते हैं।  आइए समझते हैं कि भाषा किसे कहते है?

भाषा | Bhasha

भाषा शब्द संस्कृत की 'भाष' धातु से बना है।  इस धातु का अर्थ है वाणी की अभिव्यक्ति।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।  वह समाज के अन्य मनुष्यों के सामने अपने विचार व्यक्त करता है और उनके विचारों को सुनता है और उन विचारों को समझने की कोशिश करता है।  इसके लिए उसे शब्दों का सहारा लेना पड़ता है, उसे शब्दों का निर्माण करना पड़ता है। इसके लिए दुनिया में कई तरह की भाषाएं बोली जाती हैं।

भाषा क्या है ? | Bhasha Kya Hai

इससे स्पष्ट है कि भाषा सामाजिक मनुष्यों के बीच भावनाओं और विचारों के परस्पर आदान-प्रदान का एक सार्थक माध्यम है।

भाषा की परिभाषा | Bhasha Ki Paribhasha In Hindi

शब्दों का वह समूह जिससे हम अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, भाषा कहते है। संसार में अनेक भाषाएं हैं , उदाहरण (bhasha ke udaharan)- हिंदी, उर्दू, फ्रेंच, जर्मन, आदि।

भाषा किसे कहते हैं | Bhasha Kise Kahte Hain

प्राचीन काल से ही भाषा को परिभाषित करने का प्रयास किया जाता रहा है। इसकी कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

(1) 'भाषा ' शब्द संस्कृत के 'भाष' धातु से बना है जिसका अर्थ है बोलना या कहना यानी भाषा वह है जो बोली जाती है।

(2) स्वीट के अनुसार , भाषा ध्वन्यात्मक शब्दों के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति है।

(3) डॉ. मंगल देव शास्त्री - भाषा मनुष्य का प्रयास या पेशा है, जिसमें मनुष्य अपने उच्चारण-उपयोगी शरीर-अंगों से बोले गए वर्णनात्मक या अभिव्यंजक शब्दों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करता है।

(4) ब्लॉक और ट्रेगर- भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतीकों की एक प्रणाली है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता है।

(5) स्त्रुत्वा – भाषा यादृच्छिक भाषा प्रतीकों की एक प्रणाली है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग करते हैं और संबंधित होते हैं।

भाषा के कितने भेद होते हैं (Bhasha Ke Bhed)

1.मौखिक भाषा (maukhik bhasha ki paribhasha)-, 2.लिखित भाषा (likhit bhasha ki paribhasha), 3.सांकेतिक भाषा (sanketik bhasha ki paribhasha)-, भाषा की विशेषताएं (bhasha ki visheshta).

  • भाषा प्रतीकात्मक है।
  • भाषा ध्वनिमय है।
  • भाषा का संबंध मनुष्य से है।
  • भाषा परिवर्तनशील है।
  • भाषा की क्षेत्रीय सीमा होती है।
  • भाषा सरलता एवं प्रौढ़ता की दिशा में सतत गतिशील होती है।
  • समाज के सांस्कृतिक विकास एवं पतन के साथ भाषा के विकास एवं पतन भी जुड़े होते हैं।

भाषा की प्रकृति (Bhasha Ki Prakriti)

  

निष्कर्ष – इस पोस्ट में आपने भाषा, भाषा क्या है, भाषा की परिभाषा, भाषा के भेद, विशेषता तथा प्रकृति पढ़ा।  उम्मीद है आपको यहां दी गई जानकारी पसंद आई होगी।  यदि आपका कोई सवाल है तो मुझे नीचे कमेंट करके बताएं, हम आपको उत्तर जरूर देंगे।

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