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वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर निबंध (Globalization Essay in Hindi)

ग्लोबलाइजेशन

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यापार, सेवाओं या तकनीकों का पूरे संसार में वृद्धि, विकास और विस्तार किया जाता है। यह विभिन्न व्यापारों या व्यवसायों का पूरे संसार के विश्व बाजार में विस्तार करना है। विश्व भर में आर्थिक अन्तर्निहिता के लिए बहुत बड़े स्तर पर अन्तर राष्ट्रीय निवेश की आवश्यकता है, जिससे बहुत बड़े बहुराष्ट्रीय कारोबार का विकास किया जा सके। इसके लिए वैश्विक बाजार में व्यवसायों के परस्पर समर्पक और आन्तरिक आत्मनिर्भरता को भी बढ़ाना होगा।

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Long and Short Essay on Globalization in Hindi, Vaishvikaran par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द).

ग्लोबलाइजेशन पूरे विश्वभर में किसी वस्तु को फैलाने से संबंधित है। हालांकि, आमतौर पर यह उत्पादों, व्यापार, तकनीकी, दर्शन, व्यवसाय, कारोबार, कम्पनी आदि का वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) करना है। यह देश-सीमा या समय-सीमा के बिना बाजार में एक सफल आन्तरिक सम्पर्क का निर्माण करता है।

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन का सबसे सामान्य और स्पष्ट उदाहरण पूरे विश्वभर में मैक-डोनल्स होटलों का विस्तार है। यह पूरे विश्व भर के बाजारों में अपनी प्रभावी रणनीति के कारण बहुत सफल हैं, क्योंकि ये प्रत्येक देश में अपने विवरण (मैन्यू) में उस देश के लोगों की पसंद के अनुसार वस्तुओं को शामिल करता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीयकरण भी कहा जा सकता है, जो वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन और स्थानीयकरण का मिश्रण है।

ग्लोबलाइजेशन मानवता के लिए लाभप्रद है या हानिकारक

यह सुनिश्चित करना बहुत ही कठिन है कि, वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन मानवता के लिए लाभप्रद है या हानिकारक। यह आज भी बड़े असमंजस का विषय है। फिर भी, इस बात को नजरअंदाज करना बहुत ही कठिन है कि, वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) ने पूरे विश्वभर में लोगों के लिए महान अवसरों का निर्माण किया है। इसने समाज में लोगों की जीवन-शैली और स्तर में बड़े स्तर पर बदलाव किया है। यह विकासशील देशों या राष्ट्रों के लिए विकसित होने के बहुत से अवसरों को प्रदान करता है, जो ऐसे देशों के लिए बहुत आवश्यक है।

एक कम्पनी या कारोबार के लिए अपनी सफलता को आसान बनाने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि, अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उत्पादों या सेवाओं के विक्रय के वैश्विकरण को बहुत अधिक प्रभावी बनाया जाए। उत्पादन वैश्विकरण के अन्तर्गत, एक कारखाने या कम्पनी द्वारा बहुत से देशों में स्थानीय रुप से कारखाने स्थापित किए जाते हैं और उनमें कम कीमत पर उसी देश के स्थानीय लोगों से कार्य कराया जाता है, ताकि अपने घरेलू देश की तुलना में ज्यादा लाभ प्राप्त किया जा सके।

यदि हम इसे सकारात्मक के नजरिये से देखें तो, इसने क्षेत्रीय विविधता का उन्मूलन किया है और पूरे विश्वभर में एक जानी पहचानी संस्कृति को स्थापित किया है। इसे संचार तकनीकी द्वारा सहयोग दिया जाता है और विभिन्न देशों के व्यवसायों, कम्पनियों, सरकार और लोगों के बीच में पारस्परिक वार्तालाप और सम्पर्क को दिखाता है। वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) सकारात्मक और नकारात्मक रुप से परम्परा, संस्कृति, राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक विकास, जीवन शैली, समृद्धि आदि को प्रभावित करता है।

निबंध 2 (400 शब्द)

पिछले कुछ दशकों में, वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन बहुत तेजी से हुआ है, जिसके परिणामस्वरुप, पूरे विश्वभर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पारस्परिकता में तकनीकी, दूर संचार, यातायात आदि के क्षेत्र में काफी तेजी से वृद्धि हुई है। यह मानव जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ढ़ंगों से प्रभावित किया है। इसके नकारात्मक प्रभावों को समय-समय पर सुधारने की आवश्यकता है। वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को बहुत से सकारात्मक तरीकों से प्रभावित किया है। विज्ञान और तकनीकियों की अविश्वसनीय उन्नति ने व्यवसाय या व्यापार को सभी सुरक्षित सीमाओं तक आसानी से विस्तार करने की आश्चर्यजनक अवसरों को प्रदान किया है।

ग्लोबलाइजेशन के कारण हुयी वृद्धि

वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के कारण, कम्पनियों या कारखानों में बड़े स्तर पर आर्थिक वृद्धि हुई है। वे पहले से भी अधिक उत्पादक हो गई हैं और इस प्रकार, अधिक प्रतियोगी संसार का निर्माण कर रही है। उत्पादों, सेवाओं आदि की गुणवत्ता में प्रतियोगिता बढ़ती जा रही है।

विकसित देशों की सफल कम्पनियाँ विदेशों में अपनी कम्पनियों की शाखाओं को स्थापित कर रही हैं, जिससे उन्हें सस्ते श्रम और कम मजदूरी के माध्यम से स्थानीयकरण का लाभ मिले। इस तरह की व्यावसायिक गतिविधियाँ विकसित देशों या गरीब देशों के लोगों को रोजगार मिलता है। इस प्रकार, उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता है।

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव

वैश्विकरण एक व्यवसाय और कारोबार को बहुत तरीके से प्रभावित करता है। वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के पूरे विश्व के बाजार पर पड़ने वाले प्रभावों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है; बाजार वैश्विकरण या उत्पादन वैश्विकरण। बाजार वैश्विकरण के अन्तर्गत, दूसरे देशों के बाजारों में अपने उत्पादों या सेवाओं को कम कीमत पर बेचा जाता है वहीं दूसरी ओर, उन उत्पादों को घरेलू बाजार में अधिक कीमत पर बेचा जाता है।

पिछले कुछ दशकों में, वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन ने तकनीकी उन्नति का रुप ले लिया है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यात्रा, संचार और व्यापार आसान हो गया है। एक तरफ, जहाँ ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) ने लोगों की तकनीकी तक पहुँच को आसान बना दिया है वहीं दूसरी तरफ, इसने प्रतियोगिता में वृद्धि करके सफलता के अवसरों में कमी का कार्य भी किया है।

ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) के सकारात्मक आयामों के साथ ही इसके नकारात्मक प्रभावों को भी भूलने योग्य नहीं है। एक देश से दूसरे देश के बीच में यातायात के साधनों द्वारा घातक बीमारियों और छूत की बीमारियों को होने का जोखिम बढ़ गया है। मानव जीवन पर वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के बुरे प्रभावों को रोकने के लिए, सभी देशों की सरकारों का वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए।

Essay on Globalization in Hindi

निबंध 3 (500 शब्द)

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पूरे संसार में विज्ञान, तकनीकियों, व्यवसाय आदि का यातायात, संचार और व्यापार के साधनों के माध्यम से फैलाने की प्रक्रिया है। वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) लगभग सभी देशों को बहुत से तरीकों से जैसे; सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनौवैज्ञानिक रुप से भी प्रभावित करता है। वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन वो प्रकार है, जो व्यापार, व्यवससाय और तकनीकियों के क्षेत्र में देशों की तेज और निरंतर पारस्परिकता और अन्तर्निहिता का संकेत करता है। ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) का प्रभाव परम्परा, वातावरण, संस्कृति, सुरक्षा, जीवन-शैली और विचारों में देखा जा सकता है। ऐसे बहुत से तत्व हैं, जो वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) को पूरे विश्वभर में प्रभावित और त्वरित (बहुत तेज) करते हैं।

ग्लोबलाइजेशन ने इस पूरे विश्व में बहुत से परिवर्तन किए हैं, जहाँ लोग अपने देश से दूसरे देशों में अच्छे अवसरों की तलाश में जा रहे हैं। व्यापार या व्यवसाय के वैश्विकरण के लिए, कम्पनी या कारोबार को अपनी व्यापारिक रणनीति में बदलाव लाने की आवश्यकता होती है। उन्हें अपनी व्यापारिक रणनीति को एक देश को ध्यान में न रखते हुए इस तरह का बनाना होता है, जिससे कि वे बहुत से देशों में कार्य करने में सक्षम हों।

ग्लोबलाइजेशन में तेजी का कारण

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन में तेजी का कारण लोगों की माँग, मुक्त व्यापार गतिविधियाँ, विश्वभर में बाजारों को स्वीकृति, नई तकनीकियों का समावेश, विज्ञान के क्षेत्र में नई तकनीकियों का समावेश, विज्ञान में शोध आदि है। वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन वातावरण पर बहुत से नकारात्मक प्रभाव डालता है और बहुत से पर्यावरणीय मुद्दों की उत्पत्ति करता है; जैसे- जल प्रदूषण, वनोल्मूलन, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल संसाधनों का प्रदूषित होना, मौसमों का बदलना, जैव विविधता को हानि आदि। सभी बढ़ते हुए पर्यावरणीय मुद्दों को अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के द्वारा तत्कालिक आधार पर सुलझाने की आवश्यकता है, अन्यथा वे भविष्य में पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व खत्म कर सकते हैं।

पर्यावरण पर प्रभाव

पर्यावरणीय हानि को रोकने के लिए, पर्यावरणीय तकनीकियों का वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन और बड़े स्तर पर लोगों के बीच पर्यावरणीय जागरुकता फैलाने की आवश्यकता है। वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के नकारात्मक प्रभावों का सामना करने के लिए, कम्पनियों या कारखानों को हरियाली को विकसित करने वाली तकनीकी को अपनाने की आवश्यकता है, जो वर्तमान पर्यावरणीय स्थिति को बदल सके। फिर भी, ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) ने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए बहुत से साधनों में सुधार करने (पर्यारण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव कम करके, जैसे- मिश्रित (हाईब्रिड) कारों का प्रयोग जो कम तेल का उपयोग करती हैं) और शिक्षा को बढ़ावा देकर सकारात्मक रुप से बहुत अधिक मदद की है।

एप्पल के ब्रांड ने वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और सकारात्मक प्रभावों को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण के अनुरुप उत्पादों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा है। हमेशा बढ़ती जनसंख्या की माँग बड़े स्तर पर वनोल्मूलन की ओर ले जा रही हैं जो सबसे बड़ा पर्यावरणीय मुद्दा है। अभी तक, लगभग आधा से भी अधिक लाभदायक जंगल या वन बीते वर्षों में काटे जा चुके हैं। इसलिए, वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के नकारात्मक प्रभावों को नियंत्रण में लाने के लिए ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) का निर्माण करने की आवश्यकता है।

निबंध 4 (600 शब्द)

वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए व्यवसाय को बढ़ाने, तकनीकी वृद्धि, अर्थव्यवस्था में सुधार करने आदि का तरीका है। इस तरह से, निर्माणकर्ता या उत्पादक अपने उत्पादों या वस्तुओं को पूरे विश्व में बिना किसी बाधा के बेच सकते हैं। यह व्यवसायी या व्यापारी को बड़े स्तर पर लाभ प्रदान करता है, क्योंकि उन्हें ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) के माध्यम से गरीब देशों में आसानी से कम कीमत पर मजदूर मिल जाते है। यह कम्पनियों को बड़े स्तर वैश्विक बाजार में अवसर प्रदान करता है। यह किसी भी देश को भागीदारी, मिश्रित कारखानों की स्थापना, समता अंशों में निवेश, उत्पादों या किसी भी देश की सेवाओं का विक्रय आदि करने की सुविधा प्रदान करता है।

ग्लोबलाइजेशन या वैश्विकरण कैसे काम करता है

वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) पूरे विश्व के बाजार को एक बाजार मानने में मदद करता है। व्यापारी व्यवसाय के क्षेत्र को संसार को एक वैश्विक गाँव मानकर बढ़ाते हैं। 1990 के दशक से पहले, भारत में कुछ निश्चित उत्पादों का आयात करने पर रोक थी, जिनका निर्माण पहले से ही भारत में किया जाता था; जैसे- कृषि उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुएं, खाद्य वस्तुएं आदि। यद्यपि, 1990 के दशक में धनी देशों का विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष पर गरीब और विकासशील देशों में अपने व्यवसाय को फैलाने के लिए दबाव था। भारत में उदारीकरण और वैश्विकरण की शुरुआत 1991 में संघीय वित्त मंत्री (मनमोहन सिंह) द्वारा की गयी थी।

बहुत सालों के बाद, वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के कारण भारतीय बाजार में मुख्य क्रान्ति आई, जब बहुत से बहुराष्ट्रीय ब्रांड़ों ने, जैसे – पेप्सीको, के.एफ.सी, मैक-डोनल्ड, आई.बी.एम, नोकिया आदि ने भारत में सस्ती कीमत पर विभिन्न विस्तृत गुणवत्ता के उत्पादों की बिक्री की। सभी नेतृत्वकर्ता ब्रांडों ने वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन की वास्तविक क्रान्ति को प्रदर्शित किया, जिसके परिणामस्वरुप यहाँ आद्यौगिकीकरण और अर्थव्यवस्था में चौकाने वाली वृद्धि हुई। बाजार में गला काट प्रतियोगिता के कारण गुणवत्ता वाले उत्पादों की कीमत कम हो गई।

भारतीय बाजार में व्यवसायों के वैश्विकरण, ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण ने गुणवत्तापूर्ण विदेशी उत्पादों की बाढ़ सी आ गई हालांकि, इसने स्थानीय भारतीय बाजार को बहुत अधिक प्रभावित किया। इसके परिणामस्वरुप गरीब और अनपढ़ भारतीय कामगारों की नौकरी चली गई। ग्लोबलाइजेशन (वैश्विकरण) सभी उपभोक्ताओं के लिए बहुत अधिक लाभदायक है हालांकि, छोटे स्तर के भारतीय उत्पादकों के लिए बहुत ही हानिकारक है।

वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) के सकारात्मक प्रभाव

  • वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन ने भारतीय विद्यार्थियों और शिक्षा के क्षेत्र को इंटरनेट के माध्यम से विदेशी विश्वविद्यालयों को भारतीय विश्वविद्यालयों से जोड़ा है, जिसके कारण शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रान्ति आई है।
  • वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है, इसके कारण सामान्य दवाईयाँ, स्वास्थ्य को नियमित करने वाली विद्युत मशीन आदि से उपलब्ध हो जाती है।
  • ग्लोबलाइजेशन या वैश्विकरण ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के बीजों की किस्मों को लाकर उत्पादन को बड़े स्तर पर प्रभावित किया। यद्यपि, यह महँगे बीजों और कृषि तकनीकियों के कारण गरीब भारतीय किसानों के लिए अच्छा नहीं है।
  • यह रोजगार क्षेत्र में भी व्यापार, जैसे; लघु उद्योग, हाथ के कारखाने, कॉरपेट, ज्वैलरी और काँच के व्यवसाय आदि को बढ़ाने के माध्यम से, बड़े स्तर पर क्रान्ति लाया है।

वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) वहन करने योग्य कीमत पर गुणवत्ता पूर्ण विभिन्न उत्पादों लाने और विकसित देशों के साथ ही बड़ी जनसंख्या को रोजगार प्रदान किया है। यद्यपि, इसने प्रतियोगिता, अपराध, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, आतंकवाद आदि को बढ़ाया है। इसलिए, यह खुशियों के साथ कुछ दुखों को भी लाता है।

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Essay on Globalization in Hindi: जानिए वैश्वीकरण पर हिंदी में निबंध

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  • Updated on  
  • फरवरी 19, 2024

Essay on Globalization in Hindi

वैश्वीकरण उस दुनिया को आकार दे रहा है जिसमें वे रहते हैं इसलिए छात्रों को वैश्वीकरण के बारे में जानना चाहिए क्योंकि यह और यह उनके भविष्य को प्रभावित करेगा। वैश्वीकरण हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करता है। हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले उत्पादों से लेकर हमारे पास उपलब्ध नौकरियों तक। वैश्वीकरण के बारे में सीखकर, छात्र अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। वे यह भी जान सकते हैं की विभिन्न देश और संस्कृतियाँ आपस में कैसे जुड़ी हुई हैं। वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और कूटनीति जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा किए हैं। जो छात्र वैश्वीकरण को समझते हैं वे इन क्षेत्रों में करियर बनाने और वैश्वीकृत कार्यबल को नेविगेट करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार होते हैं। इसलिए छात्रों को वैश्वीकरण पर निबंध तैयार करने को दिया जाता है। Essay on Globalization in Hindi के बारे में जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

वैश्वीकरण के बारे में, वैश्वीकरण पर 100 शब्दों में निबंध – essay on globalization in hindi, वैश्वीकरण पर 200 शब्दों में निबंध , वैश्वीकरण किस प्रकार से अस्तित्व में आया , वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला प्रभाव, वैश्वीकरण से होने वाले लाभ, वैश्वीकरण पर 10 लाइन्स.

वैश्वीकरण का मतलब है दुनिया समय के साथ आपस में अधिक जुड़ रही है। यह ऐसा है जैसे पूरा ग्रह एक बड़ा पड़ोस बनता जा रहा है। लोग, व्यवसाय और देश पुरातन काल से ही एक-दूसरे के साथ वस्तुओं, विचारों और संस्कृति का व्यापार कर रहे हैं। वैश्वीकरण दुनिया में लंबे समय से मौजूद है लेकिन तेज़ परिवहन, बेहतर संचार और इंटरनेट के कारण यह ओर भी मजबूत और आसान हो गया है। वैश्वीकरण का अर्थ है कि किस प्रकार से पृथ्वी पर हर चीज़ और हर व्यक्ति एक साथ अधिक जुड़ा हुआ है।

Essay on Globalization in Hindi वैश्वीकरण पर 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

वैश्वीकरण, देशों और संस्कृतियों के बीच बढ़ते संबंध ने हमारी दुनिया को बदल दिया है। यह दुनिया को एक छोटी जगह बनाने जैसा है, जहां लोग, सामान और विचार स्वतंत्र रूप से आ-जा सकते हैं। टेक्नोलॉजी और व्यापार के माध्यम से, देश पहले से कहीं अधिक उत्पादों और ज्ञान का आदान-प्रदान करते हैं। वैश्वीकरण लोगों के लिए लाभ और चुनौतियाँ दोनों लेकर आया है। इसने रोजगार के अवसर पैदा किए हैं और जीवन स्तर में सुधार किया है, लेकिन यह असमानता और पर्यावरणीय क्षति जैसी चिंताओं को भी जन्म देता है। वैश्वीकरण को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे जीवन, अर्थव्यवस्था और समाज को आकार देता है। वैश्वीकरण के बारे में सीखकर, हम इस परस्पर जुड़ी दुनिया को बेहतर ढंग से नेविगेट कर सकते हैं और इसकी जटिलताओं को दूर करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं और सभी के लिए अधिक समृद्ध और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

Essay on Globalization in Hindi वैश्वीकरण पर 200 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

वैश्वीकरण के कारण लोग किसी भी देश की वस्तु किसी अन्य देश में प्राप्त कर सकते हैं यह दुनिया भर में चीजों को फैलाने की प्रक्रिया है। चाहे वह व्यक्ति, उत्पाद, व्यवसाय तकनीक या फिर विचार हों। वैश्वीकरण एक अंतर्संबंधित बाज़ार है जो समय क्षेत्र या राष्ट्रीय सीमाओं की कोई सीमा नहीं जानता है। वैश्वीकरण का एक प्रमुख उदाहरण दुनिया भर में मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां उपस्थिति है या फिर प्रत्येक व्यक्ति के पास आईफोन का पाया जाना। पूरी दुनिया का भारतीय अभिवादन नमस्ते को समझना भी वैश्वीकरण का एक उदाहरण है। वैश्वीकरण एक अवधारणा है जिसे अंतर्राष्ट्रीयकरण के रूप में जाना जाता है।

वैश्वीकरण का प्रभाव लोगों में एक बहस का विषय है। हालाँकि यह लोगों और राष्ट्रों को बढ़ने और विकास करने के लिए कई अवसर प्रदान करता है। लेकिन वैश्वीकरण चुनौतियाँ भी पैदा करता है। वैश्वीकरण की चुनौतियों में एक चिंता का विषय क्षेत्रीय विविधता का संभावित नुकसान है। क्योंकि वैश्वीकरण एक समरूप विश्व संस्कृति को जन्म दे सकता है। 

वैश्वीकरण ने परंपरा, संस्कृति, राजनीति, आर्थिक विकास, जीवन शैली और समृद्धि में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए हैं। वैश्वीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर समाज को गहराई से प्रभावित हुआ है। वैश्वीकरण ने विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित किया है।

वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण इसने व्यवसायों के संचालन और लोगों के बातचीत करने के तरीके में क्रांति ला दी है। यह वृद्धि और विकास के अवसर प्रस्तुत करता है, यह सांस्कृतिक पहचान, आर्थिक असमानता और पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में भी सवाल उठाता है जिसका समाधान किया जाना चाहिए।

वैश्वीकरण पर 500 शब्दों में निबंध 

Essay on Globalization in Hindi वैश्वीकरण पर 500 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

वैश्वीकरण आधुनिक दुनिया की एक परिभाषित विशेषता बन गया है। अपने सरलतम रूप में, वैश्वीकरण का तात्पर्य दुनिया भर के देशों और समाजों की एक दूसरे पर बढ़ती परस्पर निर्भरता से है। वैश्वीकरण में राष्ट्रों के बीच आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी आदान-प्रदान सहित विभिन्न पहलू शामिल हैं। 

वैश्वीकरण परिवहन, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण ओर भी अधिक सुविधाजनक हो गया है। जिसने सीमाओं के पार व्यापार, निवेश और संचार में बाधाओं को कम कर दिया है। 

वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, सामान, सेवाएँ, विचार और लोग अब पहले से कहीं अधिक स्वतंत्र रूप से और तेजी से दुनिया भर में घूम सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के खुलने और पारंपरिक बाधाओं के टूटने से राष्ट्रों के परस्पर कार्य करने, अर्थव्यवस्थाओं के कार्य करने और संस्कृतियों के विकसित होने के तरीके में बदलाव आया है।  हालाँकि, वैश्वीकरण के प्रभाव जटिल और बहुआयामी हैं, जो व्यक्तियों, समुदायों और राष्ट्रों के लिए अवसरों और चुनौतियों दोनों को समान रूप से आकार देते हैं। 

वैश्वीकरण तब होता है जब लोग और व्यवसाय दूर-दराज के स्थानों पर चीजें खरीदते और बेचते हैं। यह लंबे समय से हो रहा है, यहां तक कि हजारों साल पहले भी मध्य एशिया, चीन और यूरोप को जोड़ने वाला सिल्क रोड था। अभी हाल ही में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, कई देशों ने मुक्त-बाज़ार प्रणाली को अपनाना शुरू कर दिया, जिसका अर्थ है कि उन्होंने व्यापार में बाधाओं को कम कर दिया और व्यवसायों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालन करना आसान बना दिया।  इससे दुनिया भर में व्यापार और निवेश के लिए बहुत सारे नए अवसर पैदा हुए।  सरकारों ने वस्तुओं, सेवाओं और निवेश में व्यापार को बढ़ाने करने के लिए भी समझौते किए।  

वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, कंपनियों ने नए देशों में कारखाने स्थापित किए और अपने उत्पादों को विश्व स्तर पर बेचने के लिए विदेशी व्यवसायों के साथ साझेदारी की है। वैश्वीकरण के व्यवसाय चीजें बनाने और बेचने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ करते हैं।

शहरों के बड़े होने और दुनिया के अधिक आपस में जुड़ने के बाद, भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बदलाव आया है। वैश्वीकरण सरकार के नियम और योजनाएँ वास्तव में लाभकारी सिद्ध हो रही है। देश में निवेश का बढ़ना, लोगों की बचत कर बढ़ना और नौकरियों के लिए अधिक अवसर उपलब्ध होने जैसे कई लाभ सामने आ रहे हैं। इन कारणों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था अधिक मजबूत हो रही है।

वैश्वीकरण ने भारतीय समाज को अन्य संस्कृतियों के साथ घुलने-मिलने के लिए प्रेरित किया और इसने देश में कई चीजें बदल दीं – राजनीति, संस्कृति, पैसा और लोगों के रहने और काम करने के तरीके। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था का हिस्सा कैसे बनी। यह वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रभावित करता है कि देश की अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना अच्छा प्रदर्शन करती है।

वैश्वीकरण के कारण, देश अब दुनिया भर से श्रमिकों को ढूंढ सकते हैं। यदि किसी विकासशील देश के पास पर्याप्त कुशल श्रमिक नहीं हैं, तो वे अन्य स्थानों से श्रमिकों को ला सकते हैं। इसके अलावा, अमीर देश साधारण नौकरियां गरीब देशों में भेज सकते हैं जहां रहने की लागत कम है, जिससे चीजों की कीमतें कम रखने में मदद मिलती है।

वैश्वीकरण को अपनाने से भारत में लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है। लोग पहले से कई अधिक चीजें खरीद रहे हैं, खासकर विदेशी कंपनियों से।

वैश्वीकरण से लोगों नए शहरों  में रहने के लिए रहने के लिए तैयार हो हैं। व्यवसायों को बढ़ने में मदद मिल रही है। व्यापार मुख्य रूप से आपकी ज़रूरत की चीज़ें दूसरे देशों से प्राप्त करने के लिए होता है। वैश्वीकरण बिना, हमारे पास स्मार्टफ़ोन जैसे कई अत्यधिक आधुनिक उपकरण नही होते।

वैश्वीकरण ने देशों के बातचीत, व्यापार और विकास के तरीके में क्रांति ला दी है। इसने लोगों के काम करने के लिए नए अवसर खोले हैं, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक कार्यबल अधिक परस्पर जुड़ा हुआ है। इसके अलावा, वैश्वीकरण ने जीवन स्तर को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, खासकर भारत जैसे देशों में, जहां आर्थिक विकास और उपभोक्ता व्यवहार विदेशी निवेश और व्यापार से सकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। इसके अतिरिक्त, दुनिया भर के संसाधनों तक पहुंच ने नवाचार और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया है।

वैश्वीकरण असमानता और संस्कृति के समरूप होने जैसी चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। इन पर प्रभावी नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से निपटना चाहिए। कुल मिलाकर, वैश्वीकरण की अपनी जटिलताएँ हैं, विश्व अर्थव्यवस्था और समाज पर इसके प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है, जो राष्ट्रों और व्यक्तियों के भविष्य को समान रूप से आकार देता है।

वैश्वीकरण पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • वैश्वीकरण दुनिया भर के देशों और समाजों के बीच परस्पर जुड़ाव बढ़ाने की प्रक्रिया है।
  • वैश्वीकरण में राष्ट्रीय सीमाओं के पार वस्तुओं, सेवाओं, विचारों और संस्कृतियों का आदान-प्रदान शामिल है।
  • प्रौद्योगिकी, संचार और परिवहन में प्रगति ने वैश्वीकरण को गति दी है।
  • बहुराष्ट्रीय निगम वैश्विक आर्थिक एकीकरण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • वैश्वीकरण के दोनों लाभ हैं, जैसे जीवन स्तर में सुधार, और आर्थिक असमानता सहित चुनौतियाँ।
  • वैश्वीकरण के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विविधता को बढ़ाया जाता है, लेकिन सांस्कृतिक समरूपीकरण के बारे में चिंताएँ बनी रहती हैं।
  • प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय मुद्दे वैश्वीकरण के कारण और भी गंभीर हो गए हैं।
  • वैश्वीकरण दुनिया भर में पूंजी, श्रम और सूचना के आवागमन को सुविधाजनक बनाता है।
  • मीडिया और उपभोक्ता उत्पादों सहित पश्चिमी संस्कृति का प्रसार वैश्वीकरण का एक प्रमुख पहलू है।
  • अपनी जटिलताओं के बावजूद, वैश्वीकरण आधुनिक दुनिया को आकार दे रहा है और बहस और अध्ययन का विषय बना हुआ है।

वैश्वीकरण का तात्पर्य व्यापार, संचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से दुनिया भर के देशों और समाजों की बढ़ती परस्पर निर्भरता से है।

वैश्वीकरण के कारण नौकरियों की आउटसोर्सिंग अमीर देशों से कम श्रम लागत वाले विकासशील देशों में हो सकती है।  इसके अतिरिक्त, यह कुशल श्रमिकों के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रोजगार पाने के अवसर पैदा कर सकता है।

वैश्वीकरण से आर्थिक विकास में वृद्धि, वस्तुओं और सेवाओं की व्यापक श्रृंखला तक पहुंच, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और तकनीकी प्रगति हो सकती है।

वैश्वीकरण की चुनौतियों में आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक एकरूपता, पर्यावरणीय गिरावट और राष्ट्रीय संप्रभुता की संभावित हानि जैसे विषय शामिल है।

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Essay on Globalization in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य कोर्स और सिलेबस से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Home » वैश्वीकरण क्या है? – कारण, प्रभाव, विशेषताएं और उद्देश्य

वैश्वीकरण क्या है – कारण, प्रभाव, विशेषताएं और उद्देश्य.

वैश्वीकरण क्या हैं (globalization kya hai) – दोस्तो जैसे की आर्टिकल के टाइटल (vaishvikaran kya hai vaishvikaran se aap kya samajhte hain) से स्पष्ट है की हम आपको इस ब्लॉग पोस्ट में वैश्वीकरण के बारे में काफी विस्तार से जानकारी देने जा रहे है वो भी हिंदी भाषा में। वैश्वीकरण का अर्थ (vaishvikaran kise kahate hain) , कारण, प्रभाव विशेषता और उद्देश्य के साथ में वैश्वीकरण के कारण और प्रभाव हम आपको वैश्वीकरण से जुड़ी और भी कई सारी जानकारियां देगे जैसे की आर्थिक वैश्वीकरण क्या है ( vaishvikaran kya hai ) और भारत में वैश्वीकरण और उसके महत्व ऐसे ही कई सवालों के जवाब जो आपको पता होने चाहिए क्योंकि यहां वैसे तो आपके जर्नल नॉलेज के लिए जरूरी है इसके अलावा अगर आप स्टूडेंड हो तो आपको इस आर्टिकल को काफी ध्यान पूर्वक पड़ना चाहिए क्योंकि वैश्वीकरण (vaishvikaran kya hai) एक एसा टॉपिक है जो कई एग्जाम्स में पूछा जाता है और वैश्वीकरण के कारण और प्रभाव देश की इकोनॉमी के लिए काफी महत्त्वपूर्ण होता है इसलिए आपको वैश्वीकरण के बारे में विस्तार से जानकारी रखनी चाहिए।

वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण, एक ऐसी ताकत है जिसने आधुनिक दुनिया को एक नए सवाल के साथ पेश किया है – कैसे हम सभी दुनियाभर के लोग, संसाधन, और विचारों को एक ही साथ जोड़ सकते हैं? इसका मतलब है कि आजकल की दुनिया में, हर कोने कोने से आने वाले प्राधिकृति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, वाणिज्यिकता, और सांस्कृतिक धरोहर के साथ जुड़ी हुई है। यह वैश्वीकरण का महत्वपूर्ण पहलू है – अपने सीमाओं को पार करके हम सभी एक साथ आए हैं, विश्व के साथी देशों के साथ साझा करते हैं, और विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक माध्यमों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ बात करते हैं।

वैश्वीकरण क्या है कक्षा 10? या globalization फॉर 12th class इसके अलावा भी वैश्वीकरण यूपीएससी से लेकर हर कोपेडिशन गवर्मेंट सर्विस exam में पूछा जाता रहा है वैश्वीकरण का टॉपिक आपको अपने स्कूल से ही टैक्स बुक में मिल जायेगा और धीरे धीरे इसका विस्तार पूर्वक अध्ययन आपके लिए करना बहुत ही जरूरी होता जाता है। उसी के सॉल्यूशन के लिए हम इस आर्टिकल को लिख रहे है जिससे आपको वैश्वीकरण (globalization) विस्तार के साथ और आसन भाषा में आसानी से समझ आ सके ताकी आपको इसके अलावा और कभी कही वैश्वीकरण के बारे में और जानकारी न डूंडनी पड़े।

इस लेख में, हम वैश्वीकरण (globalization kya hai) की महत्वपूर्ण पहलुओं को गहराई से समझेंगे – इसके कारण, प्रभाव, विशेषता, और उद्देश्यों को। हम देखेंगे कि वैश्वीकरण के क्या-क्या फायदे और चुनौतियां हैं, और कैसे यह हमारे आधुनिक दुनिया को परिवर्तित कर रहा है। यहाँ, हम वैश्वीकरण (vaishvikaran) की महत्वपूर्ण विशेषताओं को और समझेंगे जो हमारे समाजों, आर्थिक प्रणालियों, और राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, और इसके उद्देश्यों के पीछे की विचारधारा को जानेंगे।

वैश्वीकरण क्या हैं – What Is globalization in Hindi

वैश्वीकरण का अर्थ वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं, वैश्वीकरण किसे कहते हैं, वैश्वीकरण की परिभाषा, वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं, वैश्वीकरण के कारण, वैश्वीकरण के उद्देश्य, वैश्वीकरण के प्रभाव, वैश्वीकरण का सिद्धांत, वैश्वीकरण की विशेषता (ग्लोबलाइजेशन की विशेषता), वैश्वीकरण से क्या हानियां हैं, सांस्कृतिक वैश्वीकरण क्या है, उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण में अंतर, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत कब हुई, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत किसने की, भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत कैसे हुई.

  • भारत और वैश्वीकरण क्या है?

वैश्वीकरण क्या है -निष्कर्ष

(vaishvikaran kya hai)

वैश्वीकरण यानि globalization एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया भर में विभिन्न देशों और संसाधनों के बीच व्यापार, वित्तीय संचालन, सांस्कृतिक विनिमय, तकनीकी सहयोग, और जनसंचरण के माध्यम से विश्व के लोगों और देशों के बीच संबंध बढ़ते हैं। यह प्रक्रिया व्यापार, सांस्कृतिक मिश्रण, और विभिन्न क्षेत्रों में ग्रामीणता को कम कर सकती है लेकिन और अधिक सांसाधनों और विकेन्द्रीकरण का आधान देती है। वैश्वीकरण के कई पहलू होते हैं और यह विश्व के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंधों की गहरी समझ को आगे बढ़ा सकता है।

यानि हम ग्लोबलाइजेशन को आसन तरीके से समझने की कोशिश करे तो वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों में व्यापार, संचालन, तकनीकी सहयोग, सांस्कृतिक विनिमय, और संचरण के माध्यम से दुनिया भर में लोगों और देशों के बीच संबंध बढ़ते हैं।

वैश्वीकरण को हमरौर प्रैक्टिकली और उदाहरण देकर समझे तो हम यहां देख सकते है।

मोबाइल फ़ोन : आपके पास जो मोबाइल फ़ोन है, उसमें कई विभिन्न देशों से आये हुए पार्ट्स होते हैं, जैसे कि उसका डिज़ाइन एक देश में होता है, उसका चिप दूसरे देश से आया हो सकता है, और उसका सॉफ़्टवेयर या एप्लिकेशन विश्व भर से डेवेलप किया जाता है। इससे यह साबित होता है कि मोबाइल फ़ोन एक प्रकार के वैश्वीकरण का प्रतीक हो सकता है।

  • उदारीकरण क्या है?
  • Typing Kaise Sikhe
  • बाइनरी नंबर सिस्टम क्या हैं?

(meaning of globalization in Hindi)

वैश्वीकरण (Globalization) का शाब्दिक अर्थ होता है “दुनिया भर में फैलाव” या “दुनियावाद”। इस शब्द का उपयोग किसी गति या प्रक्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंध और योग्यताएं बढ़ती हैं। वैश्वीकरण (Globalization) का अर्थ होता है कि दुनियां भर में हम जुड़ सकें लोगो से व्यापार संचालन आदि की अनुमति हो साथ ही बहार की कंपनिया आकार हमारे देश में व्यापार कर सके और हमारे देश के लोग या कंपनी दूसरे देश में अपने पैर जमा सके। वैश्वीकरण के कारण दुनिया अधिक आपसी आधार पर काम करती है और व्यापार, संचालन, और विचारों का विस्तार होता है।

वैश्वीकरण को “ग्लोबलीजेशन” भी कहा जाता है, और इसका मतलब होता है कि विभिन्न देशों के बीच व्यापार, औद्योगिकीकरण, और सांख्यिकीय सहयोग की प्रक्रिया को। वैश्वीकरण के तहत दुनिया भर में वस्त्र, सामग्री, सेवाएं, और जानकारी का आदान-प्रदान होता है, जिससे विभिन्न देशों के लोगों को और बेहतर उत्पादों और सेवाओं का उपयोग करने का मौका मिलता है। यह आर्थिक सहयोग और वित्तीय प्रवृत्तियों को भी प्रभावित करता है और दुनिया भर में व्यापार की वृद्धि को प्रोत्साहित करता है। 

(Definition Of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण को उन प्रक्रियाओं का नाम दिया जाता है जिसमें विभिन्न देशों और उनके अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार, आर्थिक सहयोग, और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में एक गहरा संवाद और अंतरराष्ट्रीय एकीकरण का निर्माण होता है। इसका मुख्य उद्देश्य वस्त्र, सामग्री, सेवाएं, और जानकारी का अंतरराष्ट्रीय विनिमय बढ़ाना है ताकि विश्व भर के लोग इससे लाभ उठा सकें।

वैश्वीकरण के साथ ही अर्थव्यवस्थाओं में और भी कई परिवर्तन होते हैं, जैसे कि नौकरियों की विनिमय, तकनीकी अद्यतनता, और आर्थिक निवेश का प्रवृत्तिकरण। इसके साथ ही यह आर्थिक और राजनीतिक प्रदर्शन को भी प्रभावित कर सकता है, और कुछ लोग इसे अधिकांश के हित के खिलाफ देखते हैं, क्योंकि यह असमान सामाजिक और आर्थिक सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित कर सकता है। ये थी वैश्वीकरण की परिभाषा।

(What do you understand by globalization in Hindi)

मैं वैश्वीकरण को एक प्रक्रिया समझता हूँ जिसमें विभिन्न देशों के बीच आर्थिक, सांख्यिकीय, और सांस्कृतिक अदलाब को कम किया जाता है। इसका परिणामस्वरूप, विश्व एक साथ आए हुए है, जिससे अधिक संवाद, व्यापार, और जानकारी का आदान-प्रदान हो सकता है। यह विकास और सहयोग के अवसरों को बढ़ावा देने का एक माध्यम भी हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही आर्थिक परिपरिणाम और सामाजिक चुनौतियाँ भी हो सकती हैं। (vaishvikaran se aap kya samajhte hain)

(Reason Of Globalization in Hindi)

vaishvikaran ke karan: वैश्वीकरण का आगमन कई कारणों से हुआ और इसकी आवश्यकता भी अनेक कारणों से पैदा हुई। नीचे मुख्य कारणों की समझ देता हूँ:

  • तकनीकी प्रगति: तकनीकी और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में तेजी से प्रगति और विकेन्द्रीकरण ने वैश्वीकरण को संभव बनाया। इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसी तकनीकों के आगमन ने विश्व के लोगों को जोड़ दिया और विश्वासूत्रत: संचार को बढ़ा दिया।
  • व्यापार का विस्तार: वैश्वीकरण ने व्यापार को ग्लोबल स्तर पर विस्तारित किया है। विभिन्न देशों के बीच वस्त्र, खाद्य, ग्राहक इलेक्ट्रॉनिक्स, और सेवाओं की व्यापारिक मात्रा बढ़ गई है, जिससे अधिक विकल्प और उपभोग्य दरें होती हैं।
  • सांस्कृतिक विनिमय: वैश्वीकरण के कारण सांस्कृतिक विनिमय भी होता है। विभिन्न देशों की भाषा, खाना, मोड़, और कला का परिचय अधिक लोगों को होता है, जिससे समृद्धि और विविधता को प्रमोट किया जाता है।
  • अर्थव्यवस्था में सुधार: वैश्वीकरण के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों के लोगों को और बड़ी वित्तीय अवसरों तक पहुंचने का मौका मिलता है, जो रोजगार और आर्थिक सुधार में मदद करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्वीकरण ने दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। विभिन्न देश साझा समस्याओं का समाधान ढ़ूंढने के लिए मिलकर काम करते हैं, जैसे कि जीवसंरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, और ग्लोबल स्वास्थ्य मुद्दे।

इन सभी vaishvikaran ke karan कारणों के संघटन से वैश्वीकरण आवश्यक हो गया था और हमारे आधुनिक दुनिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। (vaishvikaran kya hai)

(Objectives of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण के मुख्य उद्देश्य थे:

संक्षेप में कहें तो, वैश्वीकरण के उद्देश्य थे कि दुनिया एक साथ आए, विभिन्न देशों के बीच सहयोग बढ़े, सांस्कृतिक और व्यापारिक विनिमय हो, और सभी को अधिक समृद्धि और समृद्धि के अवसर मिलें।

(Effect of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण ने भारत के अर्थव्यवस्था, समाज, और राजनीति पर कई प्रभाव डाले हैं। यहां कुछ मुख्य प्रभावों का उल्लेख है:

  • वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव (Economic Growth): वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। यह व्यापार के माध्यम से नए बाजार खोलने और विदेशी निवेशकों को भारत आने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे आर्थिक वृद्धि हुई है और रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
  • वित्तीय बाजार (Financial Markets): वैश्वीकरण ने भारतीय वित्तीय बाजार को भी प्रभावित किया है। यह स्थिरता और वित्तीय सुरक्षा को बढ़ावा दिया है, जिससे निवेशकों को भारत में आत्मविश्वास हुआ है।
  • सांस्कृतिक विनिमय (Cultural Exchange): वैश्वीकरण ने विभिन्न देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक विनिमय को बढ़ावा दिया है। यहां विदेशी भाषाओं का अध्ययन, विदेशी खाद्य पदार्थों का स्वादन, और अन्य सांस्कृतिक आयामों के प्रति रुझान में वृद्धि हुई है।
  • विद्या और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार (Advancements in Education and Technology): वैश्वीकरण ने शिक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुधार को भी प्रोत्साहित किया है। भारत ने विद्यार्थियों के लिए अधिक अधिक अंतरराष्ट्रीय अवसर पैदा किए है, और नई तकनीकियों का अध्ययन और उनका उपयोग बढ़ा है।
  • राजनीतिक सहयोग (Political Cooperation): वैश्वीकरण ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका दिलाई है। यह भारत को दुनिया की राजनीतिक और सुरक्षा मामलों में अधिक बड़ी भूमिका देने में मदद करता है।

इन प्रभावों के माध्यम से, वैश्वीकरण ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(theory of globalization in Hindi)

वैश्वीकरण का सिद्धांत यह है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में व्यापार, संचालन, सांस्कृतिक विनिमय, तकनीकी सहयोग, और संचरण के माध्यम से व्यक्तियों, समृद्धि, और सामाजिक संबंधों में बदलाव होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, वैश्वीकरण दुनिया को एक साथ जोड़ता है और विभिन्न देशों के बीच सहयोग और संबंधों को बढ़ावा देता है।

यानि असल में कहे तो इसका मुख्य सिद्धांत विश्व को जोड़ना ही है जिससे हर रूप में विश्व एक साथ जुड़ सके और मानव जाति की तरक्की हो सके व्यापार बढ़ाया जा सके और सभी लोगो तक सुविधाएं पहुचाई जा सके ग्लोबलाइजेशन का यही मुख्य सिद्धांत है।

(vaishvikaran ke labh)

वैश्वीकरण की कुछ मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • सार्वभौमिकता (Global Nature): वैश्वीकरण एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो दुनिया के सभी क्षेत्रों में होती है। इसमें विभिन्न देशों के बीच संबंध शामिल होते हैं।
  • संचार की सुविधा (Communication Facilitation): वैश्वीकरण के साथ साथ तकनीकी सुधारों ने संचार को बेहद सरल और तेजी से बना दिया है। इंटरनेट, स्मार्टफोन, और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की मदद से लोग विश्व भर में आसानी से जुड़ सकते हैं।
  • व्यापार का वृद्धि (Expansion of Trade): वैश्वीकरण ने व्यापार को वृद्धि कराया है। यह विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, और पूंजी के निवेश को बढ़ावा देता है और नए बाजार खोलता है।
  • सांस्कृतिक विनिमय (Cultural Exchange): वैश्वीकरण के कारण विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक विनिमय होता है। लोग अन्य देशों की भाषा, खाद्य, कला, और विचारों के साथ अधिक जानकार और समझदार बनते हैं।
  • राजनीतिक सहयोग (Political Cooperation): वैश्वीकरण ने दुनिया के देशों के बीच राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। विभिन्न देश साझा समस्याओं का समाधान ढ़ूंढने के लिए मिलकर काम करते हैं, जैसे कि जीवसंरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, और ग्लोबल स्वास्थ्य मुद्दे।
  • अर्थव्यवस्था में सुधार (Economic Development): वैश्वीकरण के माध्यम से अर्थव्यवस्था में सुधार होता है। यह नौकरियों के अवसर पैदा करता है और विकास के लिए और अधिक संभावनाओं को खोलता है।
  • ग्लोबल गवर्नेंस (Global Governance): वैश्वीकरण ने ग्लोबल स्तर पर संगठनों और समझौतों को प्रोत्साहित किया है, जो विश्व की समस्याओं का समाधान करने में मदद करते हैं।

इन विशेषताओं के साथ, वैश्वीकरण दुनिया के साथीकरण और संबंधों की गहराईयों में वृद्धि को प्रमोट करता है, और दुनिया के लोगों के बीच अधिक समरसता और सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाता है।

(Disadvantage Of Globalization in Hindi)

वैश्वीकरण के साथ हानियां भी होती हैं, और इसका सही प्रबंधन और सुरक्षा न करने पर यह कुछ चुनौतियां पैदा कर सकता है:

  • आर्थिक असमानता: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, धनी और गरीब वर्गों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ सकती है। विशेष रूप से अधिक विकसित देशों में यह समस्या हो सकती है
  • अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग: वैश्वीकरण के कारण अपर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग हो सकता है, जिसका पर्याप्त संरक्षण नहीं हो पाता है, जो पर्यावरण और जीवन में क्षति पहुंचा सकता है.
  • सांस्कृतिक होमोजेनाइटी: वैश्वीकरण के कारण कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं और पहचानों की होमोजेनाइटी हो सकती है, जिसका नुकसान सांस्कृतिक विविधता को किया जा सकता है.
  • उत्पादन की अधिकतमीकरण: वैश्वीकरण के कारण, कुछ क्षेत्रों में उत्पादन की अधिकतमीकरण हो सकता है, जिससे छोटे उत्पादकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • मानवाधिकार समस्याएं: कुछ व्यवसायों में मानवाधिकार का उल्लंघन भी हो सकता है, जैसे कि श्रमिकों के प्रति न्यायपूर्ण वेतन और कार्यालय में उचित शर्तें नहीं मिलना।

यह जरूरी है कि वैश्वीकरण के प्रभावों को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाए और सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए नीतियों का निरीक्षण किया जाए, ताकि इसके लाभ समाज के अधिकांश के लिए पहुंच सकें।

(cultural globalization in Hindi)

सांस्कृतिक वैश्वीकरण एक प्रकार का वैश्विकीकरण है जिसमें सांस्कृतिक मान्यताएँ, विचार, और कला विनिमय की प्रक्रिया होती है। इसमें विभिन्न देशों और संगठनों के बीच सांस्कृतिक रूपों, विचारों, और आदिकारों के आदान-प्रदान का मामूला होता है। सांस्कृतिक वैश्वीकरण का उद्देश्य विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को प्रमोट करना और विश्व में सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देना होता है।

इसका उदाहरण हो सकता है संगीत, शिल्पकला, गहनों, वस्त्र, खाद्य पदार्थों, और अन्य सांस्कृतिक घटकों की विनिमय की प्रक्रिया, जिससे विश्व भर में विविधता का समर्थन किया जाता है। सांस्कृतिक वैश्वीकरण के माध्यम से विभिन्न समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण और प्रचार किया जा सकता है, और यह विभिन्न समुदायों और लोगों के बीच समरसता और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ावा देता है।

भारत में वैश्वीकरण

(globalization in India)

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत और महत्वपूर्ण परिवर्तन 1990 के दशक में हुई थी। इसके पीछे का मुख्य कारण भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और नेतृत्व के परिवर्तन थे।

1991 में भारत सरकार ने विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ एक विशेष आर्थिक सुधार की घोषणा की, जिसका परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में बदलाव हुआ। इसमें विदेशी निवेश की प्रमोटियों, औद्योगिकीकरण, और व्यापार की बढ़ती लिबरलीकरण शामिल थे।

इस समय के बाद, भारत ने विदेशी निवेशकों को अधिक आकर्षित किया, व्यापार के नियमों में सुधार किया, और अपने औद्योगिक सेक्टर को खोला। यह समय भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत थी, और इसका प्रभाव विशेषतः उद्योग, व्यापार, और बैंकिंग सेक्टर में दिखाई दिया।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई थीं उस वक्त मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री थे उन्होने कई विदेशी इकोनॉमी नीतियों को उस वक्त में लागू किया भारत की इकोनॉमी को बड़ाने के लिए।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 के आस-पास हुई थी, और इसका प्रमुख कारण भारत की आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन था। निम्नलिखित है कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं और कारक जिनके कारण भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत हुई:

  • आर्थिक संकट (Economic Crisis): 1980s के अंत में और 1990 के प्रारंभ में, भारत की अर्थव्यवस्था में गंभीर संकट थे। बड़े रुझानों और अर्थशास्त्रीय मूल्यों के कारण, भारतीय सरकार के पास विदेशी मुद्रा की कमी थी।
  • विश्व बैंक से सहायता (Assistance from World Bank): 1991 में, भारत ने विश्व बैंक की सहायता मांगी और विश्व बैंक से आर्थिक सहायता प्राप्त की। इसके बदले में, विश्व बैंक ने व्यापारिक और आर्थिक नीतियों में सुधार करने की सलाह दी।
  • नीतिक्रमण (Economic Reforms): 1991 के बाद, भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ावा देने और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए।
  • लिबरलीकरण (Liberalization): भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों में लिबरलीकरण के तहत व्यापार, विदेशी निवेश, और विदेशी मुद्रा के प्रवाह को सुधारा।
  • औद्योगिकीकरण (Industrialization): इसके परिणामस्वरूप, औद्योगिक सेक्टर में सुधार हुआ और विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश बढ़ा।

इन कारकों के संयोजन से, भारत में 1990s के प्रारंभ में वैश्वीकरण की शुरुआत हुई और इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया।

भारत और वैश्वीकरण क्या है ?

भारत और वैश्वीकरण के बीच एक गहरा संबंध है। वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के देश और संगठन एक-दूसरे के साथ और वैश्विक स्तर पर आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, और तकनीकी संबंध बनाते हैं। यह प्रक्रिया व्यापार, निवेश, विदेशी मुद्रा, प्रौद्योगिकी, संगठन, और सांस्कृतिक विनिमय के माध्यम से होती है।

भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है जो वैश्वीकरण के गहरे संरचन में शामिल है

वैश्वीकरण की मुख्य विशेषताएं शामिल होती हैं: व्यापार, औद्योगिकीकरण, सांख्यिकीय सहयोग, अंतरराष्ट्रीय विनिमय, और अंतरराष्ट्रीय संवाद।

वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव में व्यापार की वृद्धि, औद्योगिकीकरण, और ग्लोबल आर्थिक सहयोग शामिल होते हैं। इससे आर्थिक विकास और उत्पादों की बेहतर उपयोगिता बढ़ती है, लेकिन यह आर्थिक असमानता को भी बढ़ा सकता है।

वैश्वीकरण के मुख्य प्रकार होते हैं: वस्त्र और उपभोक्ता वस्त्र का वैश्विक व्यापार, सेवाओं का वैश्विक आर्थिक संचयन, और जानकारी और तकनीक का अंतरराष्ट्रीय विनिमय।

सबसे सच्ची परिभाषा है: “वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है जिसमें विश्व भर के देशों के बीच व्यापार, सांख्यिकीय सहयोग, और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक संबंध बढ़ते हैं।”

वैश्वीकरण के दो दुष्परिणाम हो सकते हैं: अर्थव्यवस्थाओं की असमान विकास और सामाजिक विभाजन।

वैश्वीकरण को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें विश्व भर के देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध विकसित होते हैं।

कक्षा 10 के छात्रों के लिए, वैश्वीकरण एक प्रकार का सामाजिक और आर्थिक प्रवृत्ति को समझाने वाला अधिगमिक विषय हो सकता है, जिसमें वैश्वीकरण की प्रक्रिया और प्रभावों का अध्ययन होता है।

भारत में वैश्वीकरण की शुरुआत आजादी के बाद, खासकर 1990s के बाद हुई, जब भारत ने आर्थिक नियमों में सुधार किया और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया।

वैश्वीकरण को “ग्लोबलीजेशन” भी कहा जाता है।

वैश्वीकरण के जनक कहे जाने वाले व्यक्ति दोनाल्ड ट्रंप, डेविड कैमरन, और जॉसेफ स्टिगलित्ज जैसे अनेक विचारकों और राजनीतिज्ञों के माध्यम से जाने जाते हैं।

भारत का वैश्वीकरण में मुख्य स्थान है, क्योंकि यह एक बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्था है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस आर्टिकल में हमने वैश्वीकरण क्या हैं (globalization kya hai) को अच्छे से समझा इसके कई पहलू का विस्तृत रुप से वर्णन किया जैसे की वैश्वीकरण के प्रभाव, भारत में वैश्वीकरण एवं इसके लाभ हानि विशेषताएं, सिद्धांत और अर्थ के साथ साथ और भी कई सारे छोटे मोटे vaishvikaran से जुड़े सवालों का उत्तर जाना और हमने इन्हे आसन भाषा के साथ किताबी भाषा में भी समझा ताकि आप इसको अपनी परीक्षा या प्रैक्टिकल में भी लिख सके। यह लेख एक सुव्यवस्थित लेख था vaishvikaran (globalization) के बारे में जिसमे हमने आपको एक ही लेख में इससे जुड़ी तमाम जानकारी उपलब्ध कराई।

इस लेख को लिखने का असल मकसद यही था की आपको वैश्वीकरण के बारे में पूरी सुव्यवस्थित जानकारी एक ही जगह पर मिल जाए और आपको इसके अलावा अब कही इस टॉपिक को सर्च न करना पड़े। और हमने इस आर्टिकल को कुछ ऐसे ही तैयार किया है की सभी टॉपिक कवर होने के साथ साथ भाषा भी इसी रहे की किसी को भी वैश्वीकरण क्या है आसानी से समझ आ सके और हमने इसमें वैश्वीकरण उदारीकरण और निजीकरण में अन्तर भी समझाया। अगर आपका इस आर्टिकल से जुड़ा कोई सुझाव या सवाल हो तो आप हमे कॉमेंट के जरिए जरूर बताएं।

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1 thought on “वैश्वीकरण क्या है? – कारण, प्रभाव, विशेषताएं और उद्देश्य”

I don’t even know how I ended up here, but I thought this post was great.

I don’t know who you are but definitely you’re going to a famous blogger if you aren’t already 😉 Cheers!

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वैश्वीकरण पर निबंध (Globalization Essay In Hindi)

वैश्वीकरण पर निबंध (Globalization Essay In Hindi Language)

आज   हम वैश्वीकरण पर निबंध (Essay On Globalization In Hindi) लिखेंगे। वैश्वीकरण पर लिखा यह निबंध बच्चो (kids) और class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है।

वैश्वीकरण पर लिखा हुआ यह निबंध (Essay On Globalization In Hindi) आप अपने स्कूल या फिर कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल कर सकते है। आपको हमारे इस वेबसाइट पर और भी कही विषयो पर हिंदी में निबंध मिलेंगे , जिन्हे आप पढ़ सकते है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ होता है, किसी व्यापार को पूरी दुनिया तक फैलाना। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ केवल इतना ही नहीं रह गया है। अब वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के बीच उत्पादों, व्यापार, तकनीकी, दर्शन, व्यवसाय, कारोबार, कम्पनी आदि के उपर भी लागू होता है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन एक बहुत ही अहम प्रक्रिया है। यह पूरी दुनिया को जोड़ती है। इससे आर्थिक मजबूती देखने को मिलती है। यह देश दुनिया के बाजारों का एक सफल आंतरिक संपर्क का निर्माण करता है।

आज के समय में हम मैकडॉनल्ड (McDonalds) से काफी भलीभांति परिचित होंगे। यह एक वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का ही उदाहरण है। आज के समय में मैकडॉनल्ड्स पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है और कई देशों में मैकडॉनल्स अपना व्यापार करता है।

पिछले दशकों में पूरी दुनिया में बहुत तेजी से ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण हुआ है। पूरे विश्व भर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पारस्परिकता में तकनीकी, दूर संचार, यातायात आदि के क्षेत्र में काफी तेजी से वृद्धि होना, ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण का ही परिणाम है।

ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण के प्रभाव

पिछले कुछ दर्शकों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बिल्कुल नई दिशा दे दी है। ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण ने न केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार बल्कि राष्ट्रीय बाजार को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। हालांकि हमें कई रूप में ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण प्रकृति के लिए लाभदयक साबित नहीं हुआ। जिसके नकारात्मक परिणाम हमें भुगतने पड़ रहे हैं।

हमने पिछले कुछ वर्षों में इस बात पर गौर किया कि, हमारे बीच ऑनलाइन शॉपिंग का चलन बढ़ गया है। अब हम देश विदेश से अपने लिए किसी भी चीज को आसानी से मंगवा सकते हैं।

यह वैश्वीकरण का ही प्रतीक है। पहले ऐसा करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। अक्सर अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं का व्यापार केवल प्रधानमंत्री तथा मंत्रियों का कार्य माना जाता था। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में काफी छूट मिल गई है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में तेजी से वृद्धि हो रही है।

हालांकि ग्लोबलाइजेशन और वैश्वीकरण की प्रक्रिया में प्रकृति को काफी नुकसान हुआ है। इन नुकसान की भरपाई करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियां पर्यावरण के प्रति कई बड़े कदम उठा रही हैं और बड़े स्तर पर पर्यावरण जागरूकता फैलाने की कोशिश की जा रही है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण ही विकसित देशों की कंपनियां अपना व्यापार पूरी दुनिया में फैलाने में सफल हुई है। वैश्वीकरण के कारण कई देशों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।

सभी लोग ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उत्पादक होने की कोशिश करते हैं। यह हमें एक प्रतियोगी संसार की ओर ले जा रहा है। यह एक ऐसे बाजार का निर्माण करता है, जहां पर बहुत ज्यादा प्रतियोगिता होती है और ग्राहक का ध्यान सबसे पहले रखा जाता है।

ग्लोबलाइजेशन या वैश्वीकरण के फायदे

वैश्वीकरण के कारण हमें काफी सारी सेवाओं का लाभ हुआ है। इसका सबसे बड़ा उदाहण शिक्षा क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण ही भारतीय छात्र इंटरनेट से परिचित हुए। इंटरनेट के कारण भारत में एक नई क्रांति आई है।

इंटरनेट के माध्यम से ही भारतीय छात्र अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय से जुड़ने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इससे भारतीय छात्रों को बहुत लाभ हुआ है। इतना ही नहीं वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के चलते हमें स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वृद्धि देखने को मिलती है।

वैश्वीकरण में ग्लोबलाइजेशन के चलते ही हमें कई मशीनें अपने देश में उपलब्ध कराई जाती हैं। स्वास्थ्य को नियमित करने वाली विद्युत मशीन आदि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण हम तक पहुंचाई जाती हैं।

यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन ने कृषि क्षेत्र में भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। ग्लोबलाइजेशन के कारण कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के बीजों की किस्मों को लाकर, उत्पादन बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। इसी प्रकार से रोजगार के क्षेत्र में भी वैश्वीकरण और ग्लोबलाइजेशन ने अपनी अहम भूमिका निभाई है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का पर्यावरण पर प्रभाव

किसी सिक्के के दो पहलू की तरह वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के भी दो प्रभाव हमें देखने को मिलते हैं। एक है इसका सकारात्मक प्रभाव और दूसरा है इसका नकारात्मक प्रभाव। वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन की सकारात्मकता को हम कई क्षेत्रों में महसूस कर सकते हैं।

लेकिन यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन ने पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित किया है। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय कंपनियां अपना अंतरिक मुनाफा बढ़ाने के लिए पर्यावरण को हानि पहुंचाते जा रही हैं। दुनिया भर में प्रदूषण कंट्रोल में नहीं है। विश्व भर की कई औद्योगिक राजधानियां प्रदूषण की समस्या का सामना कर रही हैं।

प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों में भी इजाफा देखा गया है। छोटे-छोटे बच्चे भी आम प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। विश्व भर के सामान्य तापमान में भी वृद्धि आई है। धरती का तापमान लगातार गर्म होता जा रहा है।

हवा के साथ साथ पानी भी प्रदूषित होता जा रहा है। हालांकि कई वैश्विक कंपनियों ने इसके दुष्प्रभाव को कम करने की पूरी कोशिश की है। कंपनियां इसके नकारात्मक प्रभाव से निपटने के लिए अलग-अलग तरह के प्रयास कर रही हैं। कंपनियों को हरियाली सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए और ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे कि पर्यावरण को कुछ नुकसान ना हो।

यह बिल्कुल सच है कि वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के कारण है हम एक नई किस्म की दुनिया से अवगत हुए हैं। आज के समय में सब कुछ काफी आसान हो गया है। दुनिया में हर चीज आज हमारे पास मौजूद होती है। यह सब वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के बदौलत ही संभव हो पाया है।

वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन कई मायनों में हमारे लिए लाभदायक साबित हुआ है। लेकिन इसके दुष्प्रभावों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इसके दुष्प्रभावों को कम कर सके।

बड़े स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूक करने वाले कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित किए जाते रहते हैं। लेकिन तब भी किसी ऐसी तकनीक को विकसित करने की जरूरत है, जिससे कि वैश्वीकरण और पर्यावरण दोनों ही सुरक्षित रहे।

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तो यह था वैश्वीकरण पर निबंध , आशा करता हूं कि वैश्वीकरण पर हिंदी में लिखा निबंध (Hindi Essay On Globalization) आपको पसंद आया होगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा है , तो इस लेख को सभी के साथ शेयर करे।

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वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर निबंध – Essay on Globalization in Hindi

Essay on Globalization in Hindi: वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन से तात्पर्य लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच एकीकरण से है। अधिकांश उल्लेखनीय, यह एकीकरण वैश्विक स्तर पर होता है। इसके अलावा, यह पूरी दुनिया में कारोबार के विस्तार की प्रक्रिया है। ग्लोबलाइजेशन में, कई व्यवसाय विश्व स्तर पर विस्तारित होते हैं और एक अंतर्राष्ट्रीय छवि ग्रहण करते हैं। नतीजतन, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को विकसित करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता है।

कैसे ग्लोबलाइजेशन अस्तित्व में आया?

सबसे पहले, सभ्यता शुरू होने के बाद से लोग माल का व्यापार करते रहे हैं। पहली शताब्दी ईसा पूर्व में चीन से यूरोप तक माल का परिवहन होता था । सिल्क रोड के साथ माल परिवहन हुआ। सिल्क रोड मार्ग की दूरी बहुत लंबी थी। यह ग्लोबलाइजेशन के इतिहास में एक उल्लेखनीय विकास था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पहली बार माल महाद्वीपों में बेचा गया था।

Essay on Globalization in Hindi

1 ई.पू. के बाद से ग्लोबलाइजेशन धीरे-धीरे बढ़ता रहा। 7 वीं शताब्दी ईस्वी में एक और महत्वपूर्ण विकास हुआ। यह वह समय था जब इस्लाम धर्म का प्रसार हुआ। सबसे उल्लेखनीय, अरब व्यापारियों ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से विस्तार किया । 9 वीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर मुस्लिम व्यापारियों का वर्चस्व था। इसके अलावा, इस समय व्यापार का ध्यान मसाला था।

15 वीं शताब्दी में एज ऑफ डिस्कवरी में ट्रू ग्लोबल ट्रेड शुरू हुआ। पूर्वी और पश्चिमी महाद्वीप यूरोपीय व्यापारियों द्वारा जुड़े हुए थे। इस काल में अमेरिका की खोज थी। नतीजतन, वैश्विक व्यापार यूरोप से अमेरिका तक पहुंच गया।

19 वीं शताब्दी से, पूरी दुनिया में ग्रेट ब्रिटेन का वर्चस्व था। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से प्रसार हुआ। अंग्रेजों ने शक्तिशाली जहाज और ट्रेनें विकसित कीं। नतीजतन, परिवहन की गति बहुत बढ़ गई। वस्तुओं के उत्पादन की दर में भी काफी वृद्धि हुई। संचार भी तेज हो गया जो वैश्विक व्यापार के लिए बेहतर था ।

अंत में, २० वें और २१ वें हिस्से में ग्लोबलाइजेशन ने अपना अंतिम रूप ले लिया। इन सबसे ऊपर, प्रौद्योगिकी और इंटरनेट का विकास हुआ। यह ग्लोबलाइजेशन के लिए एक बड़ी सहायता थी। इसलिए, ई-कॉमर्स वैश्वीकरण में एक बड़ी भूमिका निभाता है।

ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव

सबसे पहले, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) एक महान दर से बढ़ता है। यह निश्चित रूप से ग्लोबलाइजेशन का बहुत बड़ा योगदान है। एफडीआई के कारण औद्योगिक विकास होता है। इसके अलावा, वैश्विक कंपनियों की वृद्धि है। साथ ही, कई तीसरी दुनिया के देशों को भी एफडीआई से फायदा होगा।

तकनीकी नवाचार ग्लोबलाइजेशन का एक और उल्लेखनीय योगदान है। सबसे उल्लेखनीय, ग्लोबलाइजेशन में प्रौद्योगिकी विकास पर बहुत जोर दिया गया है। इसके अलावा, ग्लोबलाइजेशन के कारण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भी है। तकनीक से निश्चित रूप से आम लोगों को फायदा होगा।

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ग्लोबलाइजेशन के कारण उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि निर्माता उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को बनाने की कोशिश करते हैं। यह तीव्र प्रतिस्पर्धा के दबाव के कारण है। यदि उत्पाद अवर है, तो लोग आसानी से दूसरे उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पाद पर स्विच कर सकते हैं।

इसे योग करने के लिए, ग्लोबलाइजेशन वर्तमान में एक बहुत ही दृश्यमान घटना है। सबसे उल्लेखनीय, यह लगातार बढ़ रहा है। इन सबसे ऊपर, यह व्यापार के लिए एक महान आशीर्वाद है।  ऐसा इसलिए है क्योंकि यह इसके लिए बहुत सारे आर्थिक और सामाजिक लाभ लाता है।

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वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi

वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi, Its Facts and Effects

वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi, Its Facts and Effects

वैश्वीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश, सूचना प्रौद्योगिकी और संस्कृतियों के वैश्विक एकीकरण का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्वीकरण  दुनिया भर में लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है। परिवहन और संचार प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण वैश्वीकरण बढ़ गया है।

बढ़ती वैश्विक बातचीत के साथ अंतरराष्ट्रीय व्यापार , विचारों और  संस्कृति की वृद्धि हुई है । हालांकि, विवाद और कूटनीति वैश्वीकरण के इतिहास के बड़े हिस्से रहे है।

Table of Content

वैश्वीकरण से जुड़े मुख्य तथ्य Facts about Globalization

प्रौद्योगिकी: संचार की गति को कई गुना कम कर दिया है। हाल ही की दुनिया में सोशल मीडिया ने दूरी को महत्वहीन बना दिया है। भारत में प्रौद्योगिकी के एकीकरण ने उन नौकरियों को बदल दिया है, इसके परिणामस्वरूप, लोगों के लिए अधिक नौकरी के अवसर पैदा किए गए हैं।

तेज़ परिवहन:  बेहतर परिवहन ने वैश्विक यात्रा को आसान बनाया है। उदाहरण के लिए, हवाई यात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे दुनिया भर में लोगों और सामानों की अधिक गतिशीलता बढ़ रही है।

पूंजी की बेहतर गतिशीलता: पिछले कुछ दशकों में पूंजी बाधाओं में सामान्य कमी आई है, जिससे विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के बीच पूंजी प्रवाह आसान हो गया है। इसने फर्मों की वित्त प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि की है।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय: विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में चल रहे बहुराष्ट्रीय निगमों ने सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रसार किया है। दुनिया भर से एमएनसी स्रोत संसाधन अपने उत्पादों को वैश्विक बाजारों में बेचते हैं जिससे अधिक स्थानीय बातचीत होती है।

वैश्वीकरण और भारत Globalization and India

विकसित देश व्यापार को उदार बनाने के लिए विकासशील देशों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और व्यापार नीतियों में अधिक लचीलापन की अनुमति देते हैं ताकि वे अपने घरेलू बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को समान अवसर प्रदान कर सकें। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक ने उन्हें इस प्रयास में मदद की।

लिबरलाइजेशन ने निश्चित समय सीमा में इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर उत्पाद शुल्क में कटौती के माध्यम से भारत जैसे विकासशील देशों की बंजर भूमि पर अपना पैर पकड़ना शुरू कर दिया है। भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों रहे हैं।

भारत में वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभाव Effect of Globalization in India

आर्थिक प्रभाव-

  • नौकरियों की बड़ी संख्या: विदेशी कंपनियों के आगमन और अर्थव्यवस्था में वृद्धि ने नौकरी निर्माण का नेतृत्व किया है।
  • उपभोक्ताओं के लिए अधिक विकल्प: वैश्वीकरण द्वारा उत्पादों के बाजार में तेजी आई है। हमारे पास अब सामान चुनने में कई विकल्प हैं।
  • उच्च आय: उच्च भुगतान नौकरियों में काम करने वाले शहरों में, लोग सामानों पर खर्च करने के लिए अधिक आय रखते हैं। परिणामस्वरूप मांस, अंडे, दालें, कार्बनिक भोजन जैसे उत्पादों की मांग में वृद्धि हुई है। इसने प्रोटीन मुद्रास्फीति को भी जन्म दिया है।

प्रोटीन खाद्य मुद्रास्फीति भारत में खाद्य मुद्रास्फीति के लिए एक बड़ा हिस्सा योगदान देता है। यह अंडे, दूध और मांस के रूप में दालों और पशु प्रोटीन की बढ़ती कीमतों से स्पष्ट है। जीवन स्तर और बढ़ती आमदनी के स्तर में सुधार के साथ, लोगों की खाद्य आदतों में परिवर्तन होता है।

लोग अधिक प्रोटीन गहन खाद्य पदार्थ लेने की ओर जाते हैं। बढ़ती आबादी के साथ आहार पैटर्न में यह बदलाव प्रोटीन समृद्ध भोजन की जबरदस्त मांग में परिणाम देता है, जो आपूर्ति पक्ष पूरा नहीं कर सका। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण मांग आपूर्ति में कमी आई।

  • कृषि क्षेत्र: वैश्वीकरण का कृषि पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके विपरीत, इसके कुछ हानिकारक प्रभाव हैं क्योंकि सरकार हमेशा अनाज, चीनी इत्यादि आयात करने के इच्छुक है। जब भी इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होती है,सरकार कभी किसानों को अधिक भुगतान करने का विचार नहीं करती है।  दूसरी तरफ, सब्सिडी घट रही है इसलिए उत्पादन की लागत बढ़ रही है। उर्वरकों का उत्पादन करने वाले खेतों को भी आयात के कारण पीड़ित होना पड़ता है। जीएम फसलों, हर्बीसाइड प्रतिरोधी फसलों आदि की शुरूआत जैसे खतरे भी हैं।
  • बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत:  वैश्वीकरण ने बीमारियों की बढ़ती संवेदनशीलता को भी जन्म दिया है। चाहे यह पक्षी-फ्लू विषाणु या इबोला है, बीमारियों ने वैश्विक मोड़ लिया है, जो दूर-दूर तक फैल रहा है। इस तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में अधिक निवेश होता है।

भारतीय समाज पर सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव Effect of Globalization on Indian Society and Cultural

परमाणु परिवार उभर रहे हैं।  तलाक की दर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। नमस्कार और नमस्ते के बावजूद लोगों को बधाई देने के लिए ‘हाय’, ‘हैलो’ का इस्तेमाल किया जाता है। वैलेंटाइन्स दिवस जैसे अमेरिकी त्यौहार पूरे भारत में फैल रहे हैं।

  • शिक्षा तक पहुंच: वैश्वीकरण ने वेब पर जानकारी के विस्फोट में सहायता की है जिसने लोगों के बीच अधिक जागरूकता में मदद की है।
  • शहरों की वृद्धि: यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत की 50% से अधिक आबादी शहरों में रहेगी। सेवा क्षेत्र और शहर केंद्रित नौकरी निर्माण के उछाल से ग्रामीणों के शहरी प्रवास में वृद्धि हुई है।
  • भारतीय व्यंजन: हमारे व्यंजन दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। ऐतिहासिक रूप से, भारतीय मसालों और जड़ी बूटियों का व्यापार सबसे रहता है। और हमारे यहाँ पिज्जा, बर्गर और अन्य पश्चिमी खाद्य पदार्थ काफी लोकप्रिय हो गए हैं।
  • वस्त्र:   महिलाओं के लिए पारंपरिक भारतीय कपड़े साड़ी, सूट इत्यादि हैं और पुरुषों के लिए पारंपरिक कपड़े धोती, कुर्ता हैं। हिंदू विवाहित महिलाओं ने लाल बिंदी और सिंधुर को भी सजाया, लेकिन अब, यह एक बाध्यता नहीं है।भारतीय लड़कियों के बीच जींस, टी-शर्ट, मिनी स्कर्ट पहनना आम हो गया है।
  • भारतीय प्रदर्शन कला:  भारत के संगीत में धार्मिक , लोक और शास्त्रीय संगीत की किस्में शामिल हैं। भारतीय नृत्य के भी विविध लोक और शास्त्रीय रूप हैं। भरतनाट्यम, कथक, कथकली, मोहिनीट्टम, कुचीपुडी, ओडिसी भारत में लोकप्रिय नृत्य रूप हैं। संक्षेप में कलारिपयट्टू या कालारी को दुनिया की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट माना जाता है।  लेकिन हाल ही में, पश्चिमी संगीत भी हमारे देश में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। पश्चिमी संगीत के साथ भारतीय संगीत को फ्यूज करना संगीतकारों के बीच प्रोत्साहित किया जाता है। अधिक भारतीय नृत्य कार्यक्रम विश्व स्तर पर आयोजित किए जाते हैं।  भरतनाट्यम सीखने वालों की संख्या बढ़ रही है। भारतीय युवाओं के बीच जैज़, हिप हॉप, साल्सा, बैले जैसे पश्चिमी नृत्य रूप आम हो गए हैं।
  • वृद्धावस्था भेद्यता : परमाणु परिवारों के उदय ने सामाजिक सुरक्षा को कम कर दिया है जो संयुक्त परिवार प्रदान करता है। इसने बुढ़ापे में व्यक्तियों की अधिक आर्थिक, स्वास्थ्य और भावनात्मक भेद्यता को जन्म दिया है।
  • व्यापक मीडिया: दुनिया भर से समाचार, संगीत, फिल्में, वीडियो तक अधिक पहुंच है। विदेशी मीडिया घरों ने भारत में अपनी उपस्थिति में वृद्धि की है। भारत हॉलीवुड फिल्मों के वैश्विक लॉन्च का हिस्सा है। यह हमारे समाज पर एक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव है।

निष्कर्ष Conclusion

हम यह नहीं कह सकते कि वैश्वीकरण का प्रभाव पूरी तरह से सकारात्मक या पूरी तरह से नकारात्मक रहा है।  ऊपर वर्णित प्रत्येक प्रभाव को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, यह चिंता का मुद्दा तब बन जाता है, जब भारतीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का खराब प्रभाव देखा जाता है।

प्रत्येक शिक्षित भारतीय मानता हैं कि भारत में, भूतकाल या वर्तमान में, बाहर से कुछ भी स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वह उचित प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त और अनुशंसित न हो। भारत की समृद्ध संस्कृति और विविधता को संरक्षित रखने के लिए हर पहलू की पर्याप्त जांच की जानी चाहिए। आशा करते हैं आपको “वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi” यह आर्टिकल पसंद आया होगा।

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वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण पर निबंध

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By विकास सिंह

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विषय-सूचि

वैश्वीकरण निबंध, globalisation essay in hindi (100 शब्द)

वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण सामान्यतः अपने व्यवसाय के सेवा क्षेत्र को दुसरे देशों तक बढ़ाना है। यदि कोई व्यवसाय अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाता है और किसी दुसरे राष्ट्र में स्थापित करता है तो इसके लिए बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय निवेश चाहिए होता है। हालंकि इससे बहिउट फायदे होते हैं। इससे एक व्यवसाय के ग्राहकों में काफी बढ़ोतरी होती है और इसके साथ ही यदि यह किसी ऐसे देश में जाता है जहां उत्पादन लागत कम है तो व्यवसाय को खर्च कम करने में मदद मिलती है।

पिछले दशक में वैश्वीकरण बहुत तेज हो गया है और भारत देश में हज़ारों विदेशी कंपनियां आ गयी है। इससे भारत के व्यवसायों में प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है और इसके साथ ही भारत में ग्राहकों के पास विकल्पों की संख्या बढ़ गयी है। एक तरफ जहां इसने ग्राहकों के विकल्प बहद दिए हैं वहीँ दूसरी तरफ इसने व्यवसायों की प्रतिस्पर्धा बढा दी है।

वैश्वीकरण निबंध, essay on globalisation in hindi language (150 शब्द)

globalisation

आज के युग में व्यवसाय तेजी से बढ़ रहे हैं और ये केवल एक देश में सीमित न होकर कई देशों तक अपनी पहुँच बना रहे हैं। व्यवसाय का एक देश से अधिक देशों में अपनी उपस्थिति बनाना ही वैश्विकरणर कहलाता है। वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण सामान्यतः अपने व्यवसाय के सेवा क्षेत्र को दुसरे देशों तक बढ़ाना है। यदि कोई व्यवसाय अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाता है और किसी दुसरे राष्ट्र में स्थापित करता है तो इसके लिए बहुत बड़ा अंतर्राष्ट्रीय निवेश चाहिए होता है। हालंकि इससे बहुत फायदे होते हैं।

वैश्वीकरण एक व्यवसाय या कंपनी पर कई तरह से असर करता है। सबसे अहम् होता है की इससे एक व्यवसाय के अधिक ग्राहक बनते हैं क्योंकि यह अपने देश के साथ साथ दुसरे देशों में भी पाने उत्पाद पहुंचा सकता है। इसके साथ ही यदि चीन जैसे देशो में यदि कोई व्यवसाय को स्थापित करता है तो वहां के सस्ते श्रमिक दर का फायदा मिलता है और इससे उत्पादन लागत में कमी आती है। अतः वैश्वीकरण व्यवसाय के लिए लाभकारी है।

वैश्वीकरण निबंध, globalisation essay in hindi (200 शब्द)

globalisation

जब हम किसी वस्तु को पूरे विश्व तक पहुंचाते हैं तो उसे उस वस्तु का वैश्वीकरण कहते हैं। इसे हम समय क्षेत्र और राष्ट्रीय क्षेत्र से मुक्त एक स्वतंत्र और परस्पर बाज़ार का निर्माण करना भी कह सकते हैं। यदि उदाहरण के रूप में देखें तो डोमिनोस पिज़्ज़ा का आज दुनिया के अधिकतर देशों में होना वैश्वीकरण का जीता जागता उदारहण है। इसने एक देश से शुरुआत की थी और अब यह कितने ही देशों में है। यह केवल इसकी स्ट्रेटेजी की वजह से ही हो पाया है। एक व्यवसाय को इतने बड़े स्तर पर विकसित होने के लिए बेहतर रणनीति की सख्त ज़रुरत होती है।

हालांकि यह निर्धारित करना की वैश्वीकरण एक दश के लिए लाभकारी है या हानिकारक, यह थोडा मुश्किल है। यदि हम लाभ देखें तो इससे व्यवसाय को नए नए अवसर मिलते हैं और इसके साथ ही एक देश के ग्राहकों के पास ज्यादा विकल्प हो जाते हैं। इसके साथ ही यदि इसके एक देश पर नुक्सान देखा जाए तो हम देखते हैं की एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय का एक देश में आने की वजह से उस देश के व्यवसायों की प्रतिस्पर्धा बढती है जिससे उनके राजस्व पर प्रभाव पड़ता है। अतः इस प्रकार वैश्वीकरण देश के लिए लाभप्रद और हानिकारक है।

वैश्वीकरण निबन्ध, globalization essay in hindi (250 शब्द)

globalisation

पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण बहुत तेजी से हुआ है जिसके परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकियों, दूरसंचार, परिवहन, आदि में उन्नति के माध्यम से दुनिया भर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकीकरण हुआ है।

हालांकि इसने मानव जीवन को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरीकों से प्रभावित किया है; इसके नकारात्मक प्रभावों को इसके अनुसार संबोधित करने की आवश्यकता है। वैश्वीकरण ने कई सकारात्मक तरीकों से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में बहुत योगदान दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकियों में अविश्वसनीय उन्नति ने व्यवसायों को प्रादेशिक सीमाओं के बाहर भी आसानी से फैलने का अद्भुत अवसर दिया है।

वैश्वीकरण के कारण ही, कंपनियों की भारी आर्थिक वृद्धि हुई है। वे अधिक दक्ष रहे हैं और इस तरह उन्होंने अधिक प्रतिस्पर्धी दुनिया को जन्म दिया है। उत्पादों, सेवाओं आदि की गुणवत्ता में में प्रतिस्पर्धा की वजह से विकास हुआ है।  विकसित देशों की सफल कंपनियां अपने घरेलू देशों की तुलना में कम लागत वाले श्रम के माध्यम से स्थानीय स्तर पर लाभ लेने के लिए अपनी विदेशी शाखाएं स्थापित कर रही हैं। इस प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियाँ विकासशील या गरीब देशों के लोगों को रोजगार दे रही हैं और इस प्रकार आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।

वैश्वीकरण के सकारात्मक पहलुओं के साथ, नकारात्मक पहलू भी भूलने योग्य नहीं हैं। एक देश से दूसरे देश में परिवहन के माध्यम से महामारी संबंधी बीमारियों का खतरा रहा है। हालांकि, मानव जीवन पर इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वैश्वीकरण पर सभी देशों की सरकार का उचित नियंत्रण रहा है।

भूमंडलीकरण पर निबन्ध, globalization essay in hindi (300 शब्द)

globalisation

वैश्वीकरण परिवहन, संचार और व्यापार के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवसाय आदि के प्रसार की एक प्रक्रिया है। वैश्वीकरण ने दुनिया भर में लगभग सभी देशों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी प्रभावित किया है। वैश्वीकरण एक शब्द है जोकी तेजी से व्यापार और प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में देशों के एकीकरण और अन्योन्याश्रय को जारी रखने का संकेत देता है। वैश्वीकरण का प्रभाव परंपरा, पर्यावरण, संस्कृति, सुरक्षा, जीवन शैली और विचारों पर देखा गया है। दुनिया भर में वैश्वीकरण के रुझानों को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं।

वैश्वीकरण में तेजी का कारण लोगों की मांग, मुक्त-व्यापार गतिविधियों, दुनिया भर में बाजारों की स्वीकृति, उभरती हुई नई प्रौद्योगिकियां, विज्ञान में नए शोध आदि हैं, क्योंकि वैश्वीकरण का पर्यावरण पर भारी नकारात्मक प्रभाव है और विभिन्न पर्यावरण को जन्म दिया है।

जल प्रदूषण, वनों की कटाई, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जल संसाधनों के प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, आदि जैसे सभी बढ़ते पर्यावरणीय मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय प्रयासों द्वारा तत्काल आधार पर हल करने की आवश्यकता है अन्यथा वे भविष्य में एक दिन पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को समाप्त कर सकते हैं।

एप्पल कंपनी ने भी भूमंडलीकरण के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और सकारात्मक प्रभावों को बढाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का निर्माण करने का लक्ष्य रखा है।

लगातार बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती माँगों के कारण वनों की कटाई जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं और इससे पर्यावरण का स्तर गिर रहा है। पिछले वर्षों में लगभग आधे उपयोगी वन काट दिए गए हैं। इसलिए इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वैश्वीकरण को नियंत्रण में लाने की आवश्यकता है।

वैश्वीकरण पर निबन्ध, essay on globalisation in hindi (400 शब्द)

globalisation

प्रस्तावना :

वैश्वीकरण अंतर्राष्ट्रीय व्यवसायों के लिए व्यवसायों को खोलने, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी विकास, अर्थव्यवस्था आदि में सुधार करने का एक तरीका है। यह उत्पादों या वस्तुओं के निर्माताओं और उत्पादकों के लिए अपने उत्पादों को वैश्विक स्तर पर बिना किसी प्रतिबंध के बेचने का तरीका है।

यह व्यवसायियों को भारी लाभ प्रदान करता है क्योंकि उन्हें वैश्वीकरण के माध्यम से गरीब देशों में आसानी से कम लागत का श्रम मिलता है। यह दुनिया भर के बाजार से निपटने के लिए कंपनियों को एक बड़ा अवसर प्रदान करता है। यह किसी भी देश को किसी भी देश में व्यवसाय, स्थापित करने या विलय करने, इक्विटी शेयरों में निवेश, उत्पादों या सेवाओं की बिक्री की सुविधा प्रदान करता है।

वैश्वीकरण क्या है ?

वैश्वीकरण पूरी दुनिया को एकल बाजार के रूप में विकसित करता है। व्यापारी दुनिया को एक वैश्विक गांव के रूप में केंद्रित करके अपने क्षेत्रों का विस्तार कर रहे हैं।

1990 के दशक से पहले, कुछ उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध था, जो भारत में पहले से ही निर्मित हो रहे थे जैसे कि कृषि उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान, खाद्य पदार्थ, प्रसाधन आदि, हालांकि, 1990 के दशक के दौरान विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक पर अमीर देशों का दबाव था। (विकास वित्तपोषण गतिविधियों में लगे हुए), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अन्य देशों को गरीब और विकासशील देशों में व्यापार और बाजार खोलकर अपने व्यापार को फैलाने की अनुमति देता है। भारत में वैश्वीकरण और उदारीकरण की प्रक्रिया 1991 में केंद्रीय वित्त मंत्री (मनमोहन सिंह) के अधीन शुरू हुई थी।

कई वर्षों के बाद, वैश्वीकरण ने भारतीय बाजार में बड़ी क्रांति ला दी जब बहुराष्ट्रीय ब्रांड जैसे पेप्सिको, केएफसी, मैक  डोनाल्ड, बूमर च्यूइंग गम, आईबीएम, नोकिया, एरिक्सन, ऐवा आदि आदि भारत में आए और सस्ते दामों पर कई तरह के गुणवत्तापूर्ण उत्पाद देने लगे। सभी प्रमुख ब्रांडों ने औद्योगिक क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में जबरदस्त वृद्धि के रूप में यहां वैश्वीकरण की वास्तविक क्रांति को दिखाया। बाजार में चल रही गला काट प्रतियोगिता के कारण गुणवत्ता वाले उत्पादों की कीमतें कम हो रही हैं।

भारतीय बाजार में व्यवसायों का वैश्वीकरण और उदारीकरण, गुणवत्ता वाले विदेशी उत्पादों की भरमार कर रहा है, लेकिन यह साथ में स्थानीय भारतीय उद्योगों को काफी हद तक प्रभावित भी कर रहा है, जिससे गरीब और अशिक्षित श्रमिकों की नौकरी छूट गई है।

वैश्वीकरण का असर :

  • वैश्वीकरण ने भारतीय छात्रों और शिक्षा क्षेत्रों को काफी हद तक प्रभावित किया है, जो अध्ययन की किताबें और इंटरनेट पर भारी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ विदेशी विश्वविद्यालयों के सहयोग ने शिक्षा उद्योग में एक बड़ा बदलाव लाया है।
  • सामान्य दवाओं, स्वास्थ्य निगरानी इलेक्ट्रॉनिक मशीनों, आदि के वैश्वीकरण से स्वास्थ्य क्षेत्र भी बहुत प्रभावित होते हैं। कृषि क्षेत्र में व्यापार के वैश्वीकरण ने रोग प्रतिरोधक संपत्ति वाले विभिन्न गुणवत्ता वाले बीजों को लाया है। हालांकि यह महंगे बीज और कृषि प्रौद्योगिकियों के कारण गरीब भारतीय किसानों के लिए अच्छा नहीं है।
  • इसने कुटीर, हथकरघा, कालीन, कारीगरों और नक्काशी, सिरेमिक, आभूषण और कांच के बने पदार्थ आदि के कारोबार के प्रसार से रोजगार क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला दी है।

निष्कर्ष :

वैश्वीकरण ने विकासशील देशों के साथ-साथ बड़ी आबादी को रोजगार के लिए सस्ती कीमत वाले उत्पादों और समग्र आर्थिक लाभों की विविधता ला दी है। हालाँकि, इसने प्रतिस्पर्धा, अपराध, राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों, आतंकवाद आदि को जन्म दिया है, इसलिए, यह सकारात्मक के साथ साथ नकारात्मक असर भी लेकर आया है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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वैश्वीकरण का अर्थ,कारण,इतिहास, आयाम | Meaning, Causes, History, Dimensions of Globalization in Hindi

वैश्वीकरण क्या है ( what is globalization).

वैश्वीकरण एक प्रक्रिया (Process) है, जबकि वैश्विकृत विश्व (Globalized World) लक्ष्य है, जिसे हासिल किया जाना है। साधारणत: यह एक आर्थिक संकल्पना है परंतु इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक, प्रोद्योगिकी आयाम भी हैं। वैश्वीकरण आखिरकार क्या है? इसके प्रमुख घटक क्या है? इसके लिए वैश्वीकरण की कोई सार्वभौमिक एवं निश्चित परिभाषा नहीं है। सामान्य अर्थों में वैश्वीकरण से तात्पर्य भौगोलिक सीमाओं का न होना तथा भौगोलिक दूरियों की समाप्ति को माना जा सकता है। अर्थात् अलग-अलग राष्ट्रों (देशों) एवं व्यक्तियों से संबंधित विचारों, तकनीकों, संस्कृतियों तथा अर्थव्यवस्थाओं के बीच घटती दूरियां तथा अदान-प्रदान है।

वैश्वीकरण के कारण (Reasons Behind Globalization)

  दुनिया के राष्ट्रों और लोगों के बीच कम होते इस फासले के कई कारण है, जैसे कि :-

  • विज्ञान एवं तकनीक का विकास
  • देशो के बीच आपसी निर्भरता
  • घटनाओं का विश्वव्यापी प्रभाव
  • बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं नये बाजारों की तलाश
  • उत्पादन, औद्योगिक संरचना एवं प्रबंधन का लचीलापन
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एवं वाणिज्यिक संस्थाए (विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व व्यापार संगठन)

वैश्वीकरण का इतिहास (History of Globalization)

वैश्वीकरण की उत्पत्ति को लेकर कुछ विद्वानों का मत है कि वैश्वीकरण बीसवीं शताब्दी की देन है, किंतु हमें यह भी बात ध्यान रखनी चाहिए कि वैश्वीकरण अलादीन के चिराग के जिन की तरह अचानक से बीसवीं शताब्दी में उत्पन्न नहीं हुआ। बल्कि इसका स्वरूप तो प्राचीन काल से ही विकसित होता चला आ रहा है। इतिहासकार, साधु-महात्मा तथा राजा तब धन, शक्ति और ज्ञान की तलाश में नए-नए मार्गों की तलाश करते हुए दूर-दराज की यात्राएं करते थे। उदाहरण स्वरूप रेशम मार्ग जो चीन से लेकर यूरोप तक फैला हुआ था, जो दुनिया के एक बड़े भू-भाग को आपस में जोड़ता था और आर्थिक रूप से लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा था।

मध्यकाल में भी चंगेज खान तथा तैमूर लंग के साम्राज्य ने विश्व के एक बड़े भू-भाग को जोड़ा जिसे आधुनिक वैश्वीकरण का अल्पविकसित रूप माना जा सकता है। परंतु वास्तविक वैश्वीकरण की शुरुआत आधुनिक काल में विशेषकर औद्योगिकरण के बाद शुरू हुई। जिसने विश्व को समेटकर एक वैश्विक गांव (Global Village) का रूप देने की कोशिश की।

कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व वैश्वीकरण का नेतृत्व ब्रिटेन ने किया और दूसरे विश्व युद्ध के बाद उसका नेतृत्व अमेरिका ने किया। वैश्वीकरण शब्द का प्रचलन बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों यानी 1980 एवं 1990 के दशक में जब शीत युद्ध का अंत और सोवियत संघ के बिखराव के बाद आम हो गया। इस प्रक्रिया में पूरे विश्व को एक वैश्विक गांव की संज्ञा दी जाती है। वैश्वीकरण के संदर्भ में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्वीकरण के चार अंग होते हैं…

अर्थशास्त्रियो के मतानुसार वैश्वीकरण के 4 अंग होते है…

  • व्यापार-अवरोधों को कम करना जिससे उत्पादों एवं वस्तुओ का विभिन्न राष्ट्रों के बीच बिना बाधा के आदान-प्रदान हो सके।
  • ऐसी स्थिति का निर्माण करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच पूंजी/धन का स्वतंत्र प्रवाह हो सके।
  • ऐसा वातारण कायम करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच तकनीक का मुक्त प्रवाह हो सके, और;
  • ऐसा वातारण कायम करना, जिसमे विभिन्न राष्ट्रों के बीच श्रम का निर्बाध प्रवाह हो सके।

इस प्रकार वैश्वीकरण के चार अंग होते हैं, किंतु विकसित राष्ट्र अमेरिका एवं फ्रांस जैसे यूरोपीय राष्ट्र वैश्वीकरण की परिभाषा पहले तीन अंगों तक ही सीमित कर देते हैं और अपने-अपने राष्ट्रों में विकासशील और अविकसित राष्ट्रों से आने वाले श्रमिकों पर कठोर वीजा नीति के माध्यम से कड़ा प्रतिबंध लगाते हैं। इस कारण से वैश्वीकरण की खूब आलोचनाएं भी होती है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि विश्व स्तर पर आया खुलापन, आपसी मेल-जोल और परस्पर निर्भरता के विस्तार को ही वैश्वीकरण कहा जा सकता है।

वैश्वीकरण के आयाम ( Dimensions of Globalization)

वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं प्रौद्योगिकी आयाम है। इसके विभिन्न आयामों पर विश्लेषण निम्नलिखित है:-

1. आर्थिक आयाम ( Economic Dimensions)

वैश्वीकरण का सबसे महत्वपूर्ण आयाम आर्थिक आयाम है। इसमें बाजार, निवेश, उत्पादन एवं पूंजी का प्रवाह आते हैं। विश्व के लगभग तमाम विकासशील और अविकसित राष्ट्रों के पास निवेश के लिए पूंजी का अभाव था। इस निवेश की कमी को पूरा करने के लिए इन राष्ट्रों में विदेशी पूंजी यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की चाहत लगातार बढ़ती जा रही थी, ताकि वे अपने राष्ट्र का विकास कर सकें। ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने पूरे विश्व को विश्व व्यापार के दायरे में घसीट लिया। वैश्वीकरण के आर्थिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

सकारात्मक प्रभाव

वैश्वीकरण के कारण दुनिया के राष्ट्रों के बीच व्यापार काफी बढ़ा है, जिस कारण वैश्वीकरण में शामिल इन राष्ट्रों के बीच आपसी निर्भरता भी काफी बढ़ी है। अलग-अलग राष्ट्रों की जनता, व्यापार और सरकार के बीच जुड़ाव बढ़ता जा रहा है। इस खुलेपन के कारण दुनिया के ज्यादातर आबादी की खुशहाली बढी है। इस कारण से वैश्वीकरण के समर्थक इसको दुनिया के लिए वरदान मानते हैं।

आज वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में बढ़ोतरी हुई है। पहले अलग-अलग राष्ट्र अपने यहां दूसरे राष्ट्रों से होने वाले आयात पर प्रतिबंध और भारी भरकम टैक्स लगाते थे, लेकिन अब यह प्रतिबंध कम हो गए हैं। जिसका लाभ यह हुआ है कि अमीर राष्ट्रों के निवेशक अपना पैसा गरीब राष्ट्रों में लगा सकते हैं, खासकर विकासशील और अविकसित राष्ट्रों में जहां मुनाफा अधिक होगा। इस निवेश से इन पिछड़े राष्ट्रों में ढांचागत संरचनात्मक विकास, तकनीक और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। जिससे राष्ट्र विशेष की जनता का जीवन स्तर भी ऊपर उठता है।

वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया में विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठन ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की परिस्थितियां थी, लेकिन आज सभी राष्ट्र व्यापारिक एवं श्रम कानूनों से बंधे हुए हैं। जिसका उल्लंघन करने पर विश्व समुदाय द्वारा उस राष्ट्र विशेष पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

नकारात्मक प्रभाव

वैश्वीकरण पूंजीवादी व्यवस्था मुक्त व्यापार एवं खुला बाजार पर आधारित है। मुक्त व्यापार एवं खुला बाजार की नीति ने जहां व्यापार के लिए रास्ते खोले वहीं उसी रास्ते से अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस जैसे विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने विकासशील राष्ट्रों में अपने पांव जमा लिए, जहां नुकसान की भरपाई के लिए मुख्य रूप से राष्ट्र जिम्मेदार होता है, जबकि फायदा बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ले उड़ती है। उदाहरण स्वरूप आप भारत में घटी भोपाल गैस त्रासदी की घटना को देख सकते हैं।

वैश्वीकरण के कारण जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां राष्ट्र में आती हैं, वहीं छोटी-छोटी देसी कंपनियां एवं स्थानीय स्तर पर होने वाले लघु एवं कुटीर उद्योग धीरे-धीरे तकनीक और गुणवत्ता की रेस में पिछड़ते हुए समाप्त होते जा रहे हैं। वैश्वीकरण की प्रक्रिया में उत्पादन बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा बड़े स्तर पर किया जा रहा है। जिस काम को जहां पहले कई-कई लोग मिलकर करते थे, आज यह मशीनें उन कामों को आसानी से कम समय एवं लागत पर करने में सक्षम है। जिसके कारण विकासशील राष्ट्रों में एक बड़ी जनसंख्या के सामने बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हुए हैं। इसीलिए गरीब राष्ट्रों की अधिकांश जनता असंगठित क्षेत्रों में काम करने के लिए विवश है। जहां पर उत्पादकता एवं जीवन स्तर भी काफी निम्न है। यहां रोजगार से जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि वैश्वीकरण मुख्यतः वस्तु , पूंजी, तकनीक और श्रम के स्वतंत्र प्रभाव पर आधारित है । लेकिन विकसित राष्ट्र वैश्वीकरण के चौथे अंग श्रम का स्वतंत्र प्रवाह की नीति को अनदेखा कर दूसरे राष्ट्रों से रोजगार की तलाश में आने वाले प्रवासियों के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाते हैं और अपनी कठोर वीजा नीति के माध्यम से इन पर नियंत्रण रखते हैं।

2. राजनीतिक आयाम ( Political Dimensions)

वैश्वीकरण के कारण राष्ट्र द्वारा किए जाने वाले कार्यों में व्यापक बदलाव आया है। वैश्वीकरण की इस अंधी दौड़ में शामिल सरकारों को यह तय करने का अधिकार कम कर दिया है कि अपने राष्ट्रवासियों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। इस परिस्थिति ने राष्ट्रों के अंदर एक अजीब से हालात पैदा कर दिए हैं। सरकारें वैश्वीकरण के आगे घुटने टेकते नजर आ रही है। प्रत्येक राष्ट्र में कुर्सी पर बैठे लोगों की जनता द्वारा कड़ी आलोचना की जाती है परंतु फिर भी सरकार बदलने के बाद भी मौजूदा हालातों में कोई खास परिवर्तन होता नहीं दिख रहा है। वैश्वीकरण के राजनितिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

वैश्वीकरण के समर्थकों का मानना है कि वैश्वीकरण के कारण राष्ट्र पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हुए हैं। तकनीक के विकास एवं सूचना तथा विचारों की तीव्र गतिशीलता ने राष्ट्रों की क्षमता में बढ़ोतरी की है और वह अपने जरूरी कामों उदाहरण स्वरूप कानून व्यवस्था बनाए रखना, बाहरी आक्रमणों से राष्ट्र की सुरक्षा करने जैसे कार्यो को पहले से अधिक अब ज्यादा अच्छे और बेहतर तरीके से कर पा रहे हैं। आज उत्पादन वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है। विश्व के तमाम राष्ट्र परस्पर निर्भर है। ऐसे में कोई भी राष्ट्र अपना आर्थिक नुकसान करके युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहता। तमाम राष्ट्र अपने कूटनीतिक संबंधों द्वारा अपने आपसी विवादों को हल करना चाहते हैं। साथ ही साथ इस आर्थिक जुड़ाव के कारण वैश्विक समस्याओं जैसे आतंकवाद और अभी देखे तो कारोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए साझा कार्रवाई को प्रोत्साहित किया है।

वैश्वीकरण के आलोचकों का मानना है कि इसके कारण राष्ट्रों के कार्य करने की क्षमता में कमी आई है। अब विभिन्न राष्ट्रों की संप्रभुता यानी निर्णय करने की शक्ति कमजोर हुई है। पूरे विश्व में कल्याणकारी राष्ट्र की जन-कल्याण नीतियां प्रभावित हुई है। अब न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राष्ट्र की धारणा को विस्तार मिल रहा है। आज के समय में राष्ट्र कुछ महत्त्वपूर्ण कार्यों तक ही अपने आपको सीमित रख रहे हैं। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के इस दौर में राष्ट्रों ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया है। जिसमें उनको अहस्तक्षेप की नीति अपनानी पड़ती है। जिसके कारण गरीब और कमजोर वर्गों के लिए किए जाने वाले सुधार कार्य प्रभावित हुए हैं।

आज के दौर में लगभग सभी राष्ट्र अपनी विदेश नीति को अपनी इच्छा अनुसार तय नहीं कर पा रहे हैं। जिसका प्रमुख कारण इन राष्ट्रों की घटती शक्ति को माना जा रहा है। पूरे विश्व में विकसित राष्ट्रों की बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने पैर पसार चुकी हैं। यह तमाम बहुराष्ट्रीय कंपनियां विकासशील राष्ट्रों में सरकारों को प्रभावित कर राष्ट्र की नीतियों को अपने फायदे के लिए परिवर्तित करवा रहीं हैं। जिस कारणवश सरकारों की स्वयं निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित हुई है।

3. सांस्कृतिक आयाम ( Cultural Dimensions)

वैश्वीकरण के इस तूफान ने दुनिया के हर हिस्से, समाज एवं समुदाय को प्रभावित किया है। संस्कृतियों का फैलाव अब केवल कला या संगीत के जरिए नहीं, बल्कि विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठनों के नेटवर्किंग के जरिए हो रहा है। वैश्वीकरण के सांस्कृतिक आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया में लोगों का एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र में आवागमन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उदाहरण स्वरूप भारतीय लोग थाईलैंड, मलेशिया, मॉरिशस, सिंगापुर, वेस्टइंडीज गए और अपने साथ-साथ वहां भारतीय संस्कृति को भी ले गए। जिसे उन्होंने सुरक्षित रखते हुए उसे व्यवहारिक एवं जीवित रखा। सांस्कृतिक वैश्वीकरण में वेशभूषा जैसे जींस, साड़ी, कुर्ता-पजामा इत्यादि एवं खान-पान का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उदाहरण स्वरूप मैकडॉनल्ड का बर्गर आपको दुनिया के किसी भी राष्ट्र की राजधानी में मिल जाएगा। वैश्वीकरण की इस प्रक्रिया को बर्गराजेशन कहा जाता है।

आज वैश्वीकरण के इस दौर में टीवी और इंटरनेट जैसे माध्यमों से विकासशील राष्ट्रों की जनता को विज्ञापनों से इतना प्रभावित कर दिया जाता है कि उनके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता। टीवी और इंटरनेट के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कंपनियां उपभोक्तावाद और पश्चिमी मूल्यों का प्रचार-प्रसार कर रही है।

विकासशील और अविकसित राष्ट्र खासकर अमेरिकी सांस्कृतिक पर प्रभुत्व के शिकार है। सीएनएन जैसे समाचार चैनलों के माध्यम से अमेरिका अपने सांस्कृतिक मूल्यों को विस्तार देने में लगा हुआ है। इसके अलावा पेप्सी, कोका-कोला, रीबोक, एडिडास जैसे उत्पाद; एमटीवी, एचबीओ जैसे मनोरंजन चैनल्स; मिकी माउस, बैटमैन, सुपरमैन जैसे काल्पनिक चरित्र; मैकडॉनल्ड जैसी फास्ट फूड श्रखंलाए; एमवे जैसे उत्पाद अमेरिकी जीवन मूल्यों को विश्व के राष्ट्रों पर थोपने के साधन साबित हुए हैं। इससे विकासशील और अविकसित राष्ट्रों की मौलिक संस्कृति पर पहचान का संकट खड़ा हो गया है।

इसके नकारात्मक पक्षों में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पश्चिमी जीवन मूल्यों ने विकासशील राष्ट्रों की जनता खासकर बच्चे और युवा जल्द से जल्द अमीर बन पाश्चात्य दैनिक जीवन की सभी सुख सुविधाएं हासिल करना चाहते हैं। इस तरह उनको आसानी से गलत रास्ते पर ले जाया जा सकता है और उनका शोषण किया जा सकता है।

4. प्रौद्योगिकी आयाम ( Technology Dimension)

हमने उपरोक्त चर्चा की कि वैश्वीकरण एक ऐसी व्यवस्था है जिसका उदय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में हुए विकास के कारण हुआ एवं जिसका उपयोग व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में हुआ। इस दृष्टिकोण से वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैश्वीकरण के प्रौद्योगिकी आयाम को हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों ने दुनिया को वास्तव में एक वैश्विक ग्राम बना दिया है। संचार व्यवस्था में आई क्रांति ने विश्वव्यापी संपर्क को काफी तेज कर दिया है। टेलीफोन, मोबाइल, इंटरनेट सिस्टम और वेबसाइटों के माध्यम से लोगों, व्यापारियों एवं राजनेताओं में मानो कोई दूरी ही नहीं रह गई। आज हम वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विश्व के किसी भी कौने में होने वाले कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं। इससे हमारे समय और धन दोनों की बचत होती है।

प्रौद्योगिकी के विकास ने राष्ट्रों की क्षमता को भी बढ़ाया है। राष्ट्र अपने अनिवार्य कार्य जैसेकि कानून व्यवस्था बनाए रखना, बाहरी आक्रमण से राष्ट्र की सुरक्षा करने जैसे मामलों को बेहतर और अधिक प्रभावशाली तरीके से कर सकते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का प्रभाव स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी दिखाई देता है। आज घातक से घातक बीमारियों का ईलाज ढूंढ कर मानव को स्वस्थ रखने के उपाय ढूंढ लिए गए हैं। इसका प्रभाव हमें कृषि, परिवहन, शिक्षा के क्षेत्रों में भी हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों के रूप में देखने को मिलता है।

सूचना क्रांति के इस दौर में साइबर क्राइम या सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा होने वाले आर्थिक अपराध चिंता के नए विषय है। अगला विश्वयुद्ध साईबर युद्धों का हो सकता है। दुश्मन राष्ट्र की समूची रक्षा प्रणाली को घर बैठे ध्वस्त किया जा सकता है। इसका एक और महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव यह है कि आतंकवाद के विस्तार में इसकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। सेटेलाइट फोन, इंटरनेट, मोबाइल फोन आदि का इस्तेमाल आतंकवादियों ने आतंक फैलाने के लिए किया है।

शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। आज शिक्षा एक आयामी होता जा रहा है। आज शिक्षण संस्थाएं व्यवसायिक शिक्षा को प्रमुखता दे रही है, जो बाजार के लिए उपयोगी कौशल प्रदान कर सकें। आपने देखा होगा कि आजकल के छात्र बी.ए., एम.ए. करने की जगह 10वीं 12वीं की पढ़ाई करते समय आईआईटी, पॉलिटेक्निक की तैयारी में जुट जाते हैं और वहीं पर एडमिशन लेना चाहते हैं। जबकि सामाजिक विज्ञान से संबंधित विषय जैसे इतिहास, राजनीति विज्ञान जैसे विषयों पर सरकार और जनता उदासीन प्रतीत होती दिख रही है। इसकी एक और आलोचना यह है कि वैश्विकृत विश्व में विज्ञान एवं तकनीकी के विकास की सबसे भारी कीमत हमारे पर्यावरण को चुकानी पड़ी है। ओजोन परत का रिक्तिकरण, ग्लोबल-वॉर्मिंग जैसे परिणाम वैश्वीकरण की ही देन है। विकास की इस अंधी दौड़ में शहरीकरण एवं औद्योगिकरण के नाम पर विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए लाख-लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं। जो कि हमेशा चिंता का विषय रहे हैं। इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव गरीब राष्ट्रों की जनता खासकर किसानों एवं आदिवासियों के जीवन पर पड़ा है।

निष्कर्ष   (Conclusion)

संक्षेप में , उपरोक्त विवरण में हमने जाना कि वैश्वीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके चार आयाम है; आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और प्रौद्योगिकी। इन चारों आयामों के जहां कुछ सकारात्मक प्रभाव एवं परिणाम है, वहीं इनके कुछ नकारात्मक प्रभाव एवं परिणाम भी है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वैश्वीकरण पर उपरोक्त चर्चा से हमें ज्ञात होता है कि वैश्वीकरण का मानव जीवन के समस्त क्षेत्रों में व्यापक बदलाव आया है। एक तरफ शासन व्यवस्था, दूरसंचार, शिक्षा, स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों ने मानव जीवन को सरल और सुविधा युक्त बना दिया है, वहीं दूसरी तरफ गरीब राष्ट्रों एवं खासकर विभिन्न राष्ट्रों के कमज़ोर तबको पर भयानक नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। उनके रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं गुणवत्ता में आई गिरावट देखने को मिलती है।

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

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Essay @ Globalization and Indian Society | Hindi | Economics

globalisation essay hindi

Read this essay in Hindi to learn about the effects of globalization on Indian society.

भारत में वैश्वीकरण को 1990 के दशक में प्रोत्साहन मिला । वर्ष 1991 में भारत में (i) उदारीकरण, (ii) वैश्वीकरण एवं; (iii) निजीकरण की आर्थिक नीति अपनाई । वैश्वीकरण के लिये भारत में आयात शुल्क घटाया तथा निर्यात से पाबन्दी हटाई । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने के लिये बहुत-सी पाबंदियों पर छूट दी ।

विदेशी प्रौद्योगिकी एवं दक्षता (Skill) को पाबंदियों से मुक्त किया । सरकार के लाइसेंस तन्त्र (Licensing System) में उदारीकरण आरम्भ किया । रसायनिक खाद एवं कृषि उत्पादनों से रियायत छूट (Subsidies) को समाप्त किया । गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिये दी जाने वाली धन राशि में भारी कटौती की गई ।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य का निजीकरण (Privatization) किया गया तथा निजी कंपनियों को बैंकों तथा बीमा के मैदान में भारत में अपना कारोबार करने की अनुमति दी ।

वैश्वीकरण का भारत के लोगों मजदूरों परिवारों तथा पूरे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है ।

वैश्वीकरण के भारतीय समाज पर अनुकूल तथा प्रतिकूल प्रभावों को संक्षिप्त में नीचे दिया गया है:

ADVERTISEMENTS:

1. वैश्वीकरण का रोजगार के अवसरों, मजदूरों के परिवारों, कर्मशालाओं के माहौल, आमदनी (आय), सुरक्षा पहचान (Identity), रीति-रिवाजों तथा सांस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है ।

2. सरकारी नौकरियों में रोजगार के अवसरों में कमी आई है तथा निजी क्षेत्र (Private Sector) में रोजगार के अवसर बड़े हैं । यह और बात है कि निजी सेक्टर में मजदूरों और काम करने वालों का शोषण होता है । प्राइवेट कंपनियां मनमाने ढंग से लोगों की नियुक्ति करते हैं और जब चाहते हैं उनको नौकरियों से निकाल देते हैं । (In fact, the private sectors “Hire and fire the workers at will”)

3. प्राइवेट सैक्टरों (Private Sectors) में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं बहुत मंहगी हैं ।

4. निजी सैक्टर में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा (Competition) से बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता हैं क्योंकि नौकरियों से मजदूरों की छटनी होती रहती है । वास्तव में निजी सैक्टर में नौकरी कम सुरक्षित होती है।

5. यन्त्रीकरण, स्वचलीकरण (Automation) तथा नई टेक्नोलॉजी (New Technology) से हुनरमंद कारीगरों, कुशल एवं अकुशल मजदूरों के रोजगार के अवसरों में समय के साथ-साथ कमी होती जाती है । कुशल मजदूरों को भी नई मशीनों पर काम करने के लिये ट्रेनिंग की आवश्यकता पड़ती है ।

6. विदेशी रेशमी कपड़े (चीन तथा कोरिया का रेशम) ने बिहार के भागलपुर नगर के बुनकरों को बेरोजगार कर दिया है । भारत में चीन के रेशम की मांग इसलिये बड़ी हुई है क्योंकि यह सस्ता एवं चमकीला है ।

7. वैश्वीकरण के कारण 24 से 54 वर्ष के स्त्री आयु वर्ग में स्त्रियों को कोमल उद्योगों (Soft Industries) में काफी रोजगार मिले हैं । कोमल उद्योगों में सिले-सिलाये कपडे, जूते, खिलौने, कम्प्यूटर तथा सेमी कण्डकटर उद्योग सम्मिलित हैं । इन कोमल उद्योगों (Soft Industries) में 40 प्रतिशत रोजगार स्त्रियों के पास हैं ।

8. वैश्वीकरण के फलस्वरूप दरिद्रता रेखा (Below Poverty Line) के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है ।

9. किसानों की आय पर वैश्वीकरण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । बहुत-से किसान कर्जे और महंगाई के कारण आत्महत्या करने लगे हैं ।

10. गाँव से भारी संख्या में श्रमिक बड़े नगरों की ओर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं, जिससे नगरों में झुग्गी-झोंपड़ी (Slums) बस्तियों में वृद्धि हो रही है ।

11. अनाज (Cereal) तथा नकदी फसलों (Cash Crops) का अधिक उत्पादन करने के लिये, रसायनिक खाद एवं कीटाणुनाशक दवाईयों का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है तथा मृदा का रासायनिक समीकरण बदल गया है ।

12. मछलियों के निर्यात के लिये सागरों एवं महासागरों से भारी मात्रा में मछली पकड़ी जाती है, जिससे सागरों में मछलियों की संख्या घट रही है ।

13. पेप्सी एवं कोका कोला जैसे मृदु पेय (Soft Drinks) में हानिकारण कीटाणु-नाशक (Insecticides and Pesticides) के तत्व पाये गये हैं । केरल में मृदु पेय की 90 फैक्टरी लगाने से भूगर्त जल में भारी कमी आई है । इन फैक्टरियों से निकलने वाले जहरीला कूडा-करकट (Toxic Wastes) से पर्यावरण का भारी ह्रास हुआ है ।

14. अंग्रेज लोगों की सामान्य भाषा (Linqua-Franca) का अवधारण करती जा रही है । जगह-जगह अंग्रजी माध्यम में स्कूल खोले जा रहे हैं, जिससे राष्ट्र भाषा को हानि पहुंच रही है ।

15. नगरीय तथा ग्रामीण समाजों में सांस्कृतिक प्रदूषण खतरनाक रूप धारण कर रहा है । सामाजिक मूल्य, मान्यताएं एवं परम्पराएं तेजी से बदल रही हैं ।

16. वैश्वीकरण का जीवन शैली, तौर तरीकों (Manners and Etiquettes) के अतिरिक्त, कला, साहित्य, चित्रकला, नाच, गाने तथा मूर्तिकला (Sculpture) पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है ।

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Globalization essay in hindi or (globalisation) वैश्विकरण या पर निबंध.

Read an essay on Globalization in Hindi language for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Know more about Globalization in Hindi. वैश्विकरण पर निबंध

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Globalization Essay In Hindi

वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन पर निबंध

वैश्वीकरण एक अंग्रेजी का शब्द हैं जिसे हिंदी में भूमंडलीकरण भी कहा जाता है। वैश्विकरण, भूमंडलीकरण या ग्लोबलाइजेशन के प्रक्रिया में किसी भी व्यापर, तकनीक और अन्य सेवाओं को पूरे संसार के विश्व बाजार में विस्तार करना है। किसी एक देश का दूसरे देशो के साथ किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, विचार, बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबंधित लेन-देन को वैश्विकरण, भूमंडलीकरण या ग्लोबलाइजेशन कहा जाता है। जिस के तहत किसी भी देश की वास्तु, सेवा, पूंजी अदि बिना किसी रोक टोक के आवाजाही हो।

ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत – जब यूरोपीय देशों में करीब 16 वी शताब्दी में सम्राज्यवाद की शुरुआत हुई, ढीक उसी वक़्त से ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत भी हो गयी थी। इतिहास में अगर इसे अपनाने की बात करे तो लगभग सभी देशो ने इसकी 1950-60 के दशक से शुरुआत की। मुख्य कारन था दूसरा विश्व युद्ध, जिसके बाद सभी देशो के राजनितिज्ञो और अर्थशास्त्रियो ने वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के महत्व को समझा।

ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव – वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन व्यवसाय और कारोबार के ऊपर बहुत प्रभाव डालता है। ग्लोबलाइजेशन से पड़ने वाले इन प्रभावों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है – बाजार वैश्विकरण या उत्पादन वैश्विकरण। बाजार वैश्विकरण के अंदर अपने देश के बने हुए उद्पादो को कम् कीमत पर दूरसे देशो में बेचा जाता है और उत्पादन वैश्विकरण के अंदर उन्ही उद्पादो को अपने ही देश में अधिक कीमत पर बेचा जाता है।

ग्लोबलाइजेशन के लाभ – व्यापार प्रणाली में ग्लोबलाइजेशन ने एक नई जान दाल दी है, जिसके बहुत सरे लाभ है। वैश्विकरण या ग्लोबलाइजेशन के बाद ही विश्व की विभिन्न कंपनियों ने दूसरे देशो में अपनी जगह बनाई। नए उद्धयोगो की स्थापना के वजह से रोज़गार में वृद्धि हुई। ग्लोबलाइजेशन की वजह से कई देशों की जीडीपी, राजकोषीय घाटा, मुद्रास्फीति,निर्यात, साक्षरता और जन्म मृत्यु दर में सुधर देखा गया।

वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है जिसमे विश्व की राजनीति नए सिरे से संचालित होने लगी है। पहले इसे सामान्य लोग सिर्फ आर्थिक रूप से ही देखते थे किन्तु आज इसका राजनीतिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

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वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi

Globalization Essay In Hindi: आज हम वैश्वीकरण पर निबंध आपकों यहाँ बता रहे हैं. ग्लोबलाइजेशन के दौर क्या है, यहाँ कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए 5, 10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में छोटा बड़ा एस्से Globalization In Hindi को हम यहाँ पढेगे.

इस निबंध की मदद से आप समझ पाएगे वैश्वीकरण क्या है इसका इतिहास आदि पर सरल निबंध भाषण लिख पाएगे.

वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi

वैश्वीकरण एक अंग्रेजी का शब्द हैं, जिन्हें हिंदी में भूमंडलीकरण भी कहा जाता हैं. वैश्वीकरण का अर्थ- किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, विचार, बौद्धिक सम्पदा और सिद्धातो का विश्वव्यापी होना.

संसार के सभी देशों का दुसरे देशों के साथ वस्तु सेवा विचार, पूंजी और सिद्धांतो का अप्रतिबंधित लेन-देन. दुसरे शब्दों में ग्लोबलाइजेशन / वैश्वीकरण वह हैं, जिनके तहत कोई वस्तु या विचार अथवा पूंजी की एक देश से दुसरे देश बिना रोकटोक आवाजाही हो.

ग्लोबलाइजेशन / वैश्वीकरण क्या हैं ? –

यह एक ऐसी प्रक्रिया हैं, जिन्हें सामान्यता लोग आर्थिक रूप से ही देखते हैं. यानि पूंजी और वस्तुओ के बेरोक-टोक आवाजाही को ही वैश्वीकरण का नाम देते हैं.

मगर हकीकत में यह एक आर्थिक क्षेत्र तक सिमित न होकर राजनीतिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता हैं.

वैश्वीकरण ऐसी प्रक्रिया का नाम हैं जिसमे संसार के सभी लोग आर्थिक, तकनिकी, सामाजिक और राजनितिक साधनों के समन्वयित विकास हेतु प्रयास कर रहे हैं.

वैश्वीकरण की शुरुआत

लगभग 16 वी शताब्दी से जब यूरोपीय देशों में सम्राज्यवाद की शुरुआत हुई. उसी के साथ ही वैश्वीकरण का आरम्भ हो गया था. यदि इसकी विधिवत शुरुआत के इतिहास पर नजर डाले तो अमूमन अधिकतर देशों में इसे 1950-60 के दशक से अपनाया जाने लगा.

इसका मुख्य कारण दुसरे विश्वयुद्ध के बाद सभी देशों के राजनितिज्ञो और अर्थशास्त्रियो द्वारा परस्पर सहयोग और सांझे हित के महत्व को समझा.

इसी का नतीजा था, कि एक के बाद एक सभी देशों ने धीरे-धीरे वैश्वीकरण को अपनाना शुरू कर दिया. वर्तमान की संचार पद्दति के कारण पूरा संसार एक गाँव के रूप में तब्दील हो चूका हैं.

इस प्रक्रिया को अंजाम तक पहुचाने में विश्व बैंक जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. विश्व बैंक के सहयोग से ही वैश्वीकरण के तहत सभी देशों के मध्य मुक्त व्यापार का प्रदुभाव हो पाया.

वैश्वीकरण के लाभ

इस मुक्त व्यापार प्रणाली के कई प्रत्यक्ष लाभ हैं.वैश्वीकरण के कारण ही विश्व के बाजार तक विभिन्न कंपनियों की पहुच संभव हो पाई. इसी कारण विकसित और विकासशील देशों को अत्यंत आर्थिक लाभ हुआ.

परस्पर व्यापार से विश्व् शांति की दिशा में महत्वपूर्ण मदद मिल सकी हैं. अधिक संख्या में नए उद्धयोगो की स्थापना  रोजगार के नए अवसरों का सर्जन हुए.

लोगो के जीवन स्तर में सुधार के साथ ही क्रय शक्ति को भी बढ़ावा मिला हैं. इस आधार पर कहा जा सकता हैं, वैश्वीकरण से विकास की राह पर विकासशील देशों को अधिक मदद मिली.

यदि वैश्वीकरण से पूर्व विकास शील देशों की सामाजिक और आर्थिक स्थति के बारे सूक्ष्म अवलोकन किया जाए, तो निष्कर्ष के तौर पर इन देशों की जीडीपी, राजकोषीय घाटा, मुद्रास्फीति,निर्यात, साक्षरता और जन्म मृत्यु दर में अच्छे सुधार देखने को मिले हैं.

वैश्वीकरण से नुकसान (हानि)

वैश्वीकरण से अधिकतर राष्ट्रों और वर्गो को निश्चित रूप से फायदा तो मिला. मगर इस उ पभोक्तावादी संस्कृति से भारत जैसे विकासशील देशों पर अत्यधिक बुरा असर पड़ा.

वैश्वीकरण के कारण भारत साहित अन्य देशों में पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला कायम हो गया. दूसरी तरफ शहरी विकास को महत्व देने के कारण गाँवों से लोगो का शहरों की ओर पलायन ओर तेज हो गया. 

भारतीय अर्थव्यस्था का मूल आधार गाँव ही तो हैं, इसके कारण गाँवों की हालत बद से बदतर होती चली गईं. साधारण व्यक्ति के जीवन का निर्वाह करना बेहद मुश्किल हो गया. दूसरी तरफ कम या अल्पविकसित देशों को अधिक नुक्सान उठाना पड़ा. मजदूरों को पहले से कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ी.

यदि इस स्थति में वे अधिक रोजगार पाने की मांग करते तो उन्हें उसी से हाथ धोने का डर सताने लगा. क्युकि उनसे कम कीमत पर भाड़े के मजदूरों द्वारा काम करवा लिया जाता था. भारत में इसका परोक्ष उदहारण बीपीओ उद्योग को देखा जा सकता हैं.

भारत में वैश्वीकरण

विश्व के अधिकतर देशों द्वारा वैश्वीकरण प्रणाली अपनाने के साथ ही कालान्तर में भारत को भी अन्य देशों के लिए रास्ते खोलने पड़े. इसी दौरान 1991 के आर्थिक संकट में भारत को पूंजीपति राष्ट्रों के पास सोना-चांदी गिरवी रखकर लोन लेना पड़ा.

जब भारत ने इस वैश्वीकरण की प्रणाली के लिए अपने द्वार खोल दिए. तो बड़ी विदेशी कम्पनियों के निवेश भारत में किये जाने लगे. भारत में वैश्वीकरण से आयात और निर्यात दोनों में विशेष तौर पर फायदा मिला.

अब तक भारत सूचना और प्रद्योगिकी के साथ ऑटोमोबाइल में भी अन्य देशों के मुकाबले पीछे था इस क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई. अब भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की विश्वभर में मांग बढ़ने लगी. वैश्वीकरण का ही परिणाम हैं, आज विश्व के हर देश में आईटी के क्षेत्र में भारतीय विषेयज्ञो की भरमार हैं.

वैश्वीकरण ने सभी देशों को तीव्र आर्थिक विकास का एक मंच प्रदान किया हैं. हालाँकि इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं. मगर कुल-मिलाकर एक-दुसरे देश के सहयोग के बिना किसी राष्ट्र की प्रगति उसका आर्थिक विकास संभव नही हैं.

यदि सभी देश राष्ट्रिय भावना के साथ-साथ वैश्विक सोहार्द और परस्पर सहयोग की दिशा में काम करे तो न सिर्फ इससे विकासशील देशों को फायदा होगा, बल्कि विकसित राष्ट्र भी वैश्वीकरण से लाभान्वित होंगे.

यदि प्रतिस्पर्धी राष्ट्र के रूप में न देखकर व्यापार में इन्हे सहयोगी समझकर आगे बढ़ा जाए तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार होने के साथ साथ अंतराष्ट्रीय शांति और भाईचारे को बढाने में भी कारगर होगा.

आज संचार और सुचना की क्रांति के कारण आज पूरी दुनियाँ एक गाँव का रूप ले चुकी हैं. यदि सकारात्मक द्रष्टि से देखा जाए तो आर्थिक द्रष्टि से वैश्वीकरण महत्वपूर्ण हैं.

आज की वैश्विक जटिलता की स्थति में कोई भी राष्ट्र अलग रहकर कभी भी पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नही बन सकता हैं. किसी न किसी क्षेत्र में उन्हें पड़ोसी या सहयोगी राष्ट्र पर निर्भर रहना पड़ता हैं. इसकी वजह यह अंतराष्ट्रीय व्यापार और सहयोग को बढ़ावा तेजी से आर्थिक विकास के लिए वैश्वीकरण आवश्यक हैं.

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हम आशा करते है कि हमारे द्वारा वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi  पर लिखा गया निबंध आपको पसंद आया होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

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Globalization of Indian Economy | Hindi | Essay | Economics

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Here is an essay on the ‘Globalization of Indian Economy’ especially written for school and college students in Hindi language.

भारत में भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे गति पकड़ रही है ।

भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया 1991 में शुरू हुई जब नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के खुलेपन के लिए निम्नलिखित क्षेत्रों का उदारीकरण किया गया:

(a) नई व्यापार नीति के अन्तर्गत व्यापार का वैश्वीकरण

ADVERTISEMENTS:

(b) नई औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उद्योग व निवेश का वैश्वीकरण

(c) नई निवेश नीति के अन्तर्गत वित्त का वैश्वीकरण

सक्षेप में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण हेतु निम्नलिखित उपाय किये गये हैं:

1. दुहरे कराधान को यथासम्भव समाप्त किया गया है ।

2. विदेशी ईक्विटी के अन्तर्प्रवाह को अत्यधिक सुगम तथा उदार बना दिया गया है । अब विदेशी निवेशकों को वे समस्त सुविधाएँ मिल रही हैं जो घरेलू निवेशकों को प्राप्त हैं ।

3. रुपये को चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है । अब धीरे-धीरे रुपया पूँजी खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता की ओर बढ़ रहा है ।

4. प्रारम्भिक दौर में आयातों को अत्यधिक उदार बनाया गया और अब तो आयातों पर से सभी प्रकार के मात्रात्मक प्रतिबन्ध उठा लिये गये हैं ।

5. विश्व व्यापार संगठन के प्रति वचनबद्धताओं को पूरा करते हुए सीमा शुल्कों को 300 प्रतिशत, 400 प्रतिशत की उच्चतम दर से घटाते हुए 0-25 प्रतिशत के स्तर पर ले आया गया है ।

6. विदेशी प्रौद्योगिकी करार किये जाने, विदेशी कम्पनियों के ब्राण्ड नामों तथा ट्रेडमार्कों को बिना प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण के ही प्रयुक्त किये जाने की छूट प्रदान कर दी गयी है ।

7. देशी एवं विदेशी कम्पनियों पर निगम कर अब लगभग बराबरी के स्तर पर है ।

भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया गति पकड़ रही है ।

इसके कुछ प्रमुख संकेतक निम्नलिखित हैं:

(i) MNC s बड़ी संख्या में भारत में प्रवेश कर रही हैं ।

(ii) अमरीकी ऋण बाजार में भारतीय निगम सक्रिय हो रहे हैं ।

(iii) लगभग 2,000 भारतीय कम्पनियों ने ISO 9,000 प्रमाण-पत्र प्राप्त किये हैं जो कि उच्च गुणवत्ता की गारण्टी हैं ।

(iv) पिछले कुछ वर्षों में व्यापार और निर्यात गहनता दोनों में भारी वृद्धि हुई है ।

(v) केवल तटकरों में ही कमी नहीं की गयी वरन् अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग (FDI) तथा विदेशी प्रौद्योगिकी के लिए खोल दिया गया ।

(vi) 1994-95 के बजट में भुगतान सन्तुलन के चालू खाते में रुपये को पूर्व परिवर्तनीय कर दिया गया ।

अन्तर्राष्ट्रीय विदेश नीति से सम्बन्धित एक अमरीकी पत्रिका के अनुसार भूमण्डलीकरण (Globalization) के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है ।

ए.टी. कीमी (A. T. Keamy) नाम की पत्रिका द्वारा जिन चुनिन्दा 50 विकसित एवं अल्पविकसित राष्ट्रों को भूमण्डलीकरण के स्तर की जाँच के लिए सर्वेक्षण में शामिल किया है, उनमें भारत का इस मामले में 49वाँ स्थान घोषित किया गया है । भारत से पीछे इस सूची में एकमात्र राष्ट्र ईरान बताया गया है । पत्रिका के सर्वेक्षण में भूमण्डलीकरण में अग्रणी स्थान सिंगापुर का बताया गया है ।

प्रतिकूल प्रभाव ( Adverse Effects):

उपर्यक्त लाभों के होते हुए भी वैश्वीकरण का हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।

जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट हो जायेगा:

(1) भारतीय उद्योग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के स्थान पर उनके सामने हथियार डाल रहे हैं और अपने उद्योगों को उन्हें बेच रहे हैं, जैसे – हल्के पेय थम्सअप, गोल्ड स्पॉट, लिम्का । भारतीय उद्योगपतियों ने Rs. 120 करोड़ में कोकाकोला को बेच दिया है और अब बिसलरी मिनरल वाटर को भी बेचा जा रहा है । यह प्रक्रिया देश के लिए हानिकारक है ।

ऐसा अनुमान है कि अब तक लगभग पाँच लाख लघु इकाइयाँ बन्द हो चुकी हैं जिससे 25 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो गए हैं ।

बजाज ऑटो के अध्यक्ष प्रबन्ध निदेशक राहुल बजाज और आर.पी.जी. इण्टरप्राइजेज के उपाध्यक्ष संजीव गोयनका के अनुसार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से नवीनतम् प्रौद्योगिकी प्रबन्ध कौशल, निर्यात, वृद्धि आदि का जो आकलन किया गया था, वे खरे नहीं उतरे हैं बल्कि इससे कई क्षेत्रों में स्वदेशी उपकरण नष्ट हो गए हैं और उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में विदेशी कम्पनियों ने बिना ज्यादा निवेश के ही बाजा पर सम्पूर्ण कब्जा कर लिया है ।

ऐसा अनुमान है कि उपभोग क्षेत्र में भारतीय कम्पनियों का हिस्सा घटकर 30 प्रतिशत रह गया है । विदेशी कम्पनियों ने रंगीन टेलीविजन, फ्रिज, वाशिंग मशीन और इसी प्रकार के अन्य उत्पादों में अपना हिस्सा 70 फीसदी तक बढ़ा लिया है ।

(2) भारत में कुछ कम्पनियाँ ऐसी हैं जिनका प्रबन्ध नियन्त्रण उनके पास नहीं है, जैसे – कायनेटिक होण्डा (Kinetic Honda), एस.आर.एफ. (S.R.F.) व एल.एम.एल. (L.M.L.) । अब ये नवीनतम तकनीक देने के बहाने प्रबन्ध नियन्त्रण व पूँजी में हिस्सा ले सकते हैं । इस प्रकार कई बहुराष्ट्रीय निगम जो पहले भारत की नीति के कारण यहाँ से चले गए थे ।

जैसे – कोकाकोला (Coca Cola) व आई.बी.एम. (I.B.M.), अब पुनः भारत में आ गये हैं । यहाँ, पहले से भी कई निगम हैं जो कार्यशील हैं, जैसे – ए.बी.बी. (A.B.B.), प्रोक्टर एवं गेम्बर, लिप्टन, मदुरा कोट्स आदि । अब यह पुराने बहुराष्ट्रीय निगम भी पूँजी का प्रतिशत बढ़ाकर प्रबन्ध नियन्त्रण अपने अधिकार में ले सकते हैं ।

(3) अधिकांश नवीन स्वीकृतियाँ जो विदेशियों को दी गयी हैं, उसका 51 प्रतिशत निवेश महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल व दिल्ली राज्यों में उद्योग स्थापित करने के लिए है । इससे क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ावा मिल रहा है जो देशहित में नहीं है ।

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उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति (LPG सुधार की नीति)

भारत सरकार ने 1991 में नए आर्थिक सुधारों की घोषणा की थी जिसे नई आर्थिक नीति (न्यू इकोनामिक पॉलिसी) या आमतौर पर LPG सुधार के नाम से जाना जाता है | यहां “L” का तात्पर्य लिबरलाइजेशन (उदारीकरण); “P” का अर्थ प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) और “G” का अर्थ ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण) से है | इस दिन से भारत में एक नए आर्थिक युग की शुरुआत हुई जिसका मुख्य लक्ष्य आर्थिक समृद्धि को प्राप्त करना एवं देश की अर्थव्यवस्था में बुनियादी सुधार करना था | इन व्यापक सुधारों को 3 माध्यमों से लागू किया गया : उदारीकरण , निजीकरण एवं वैश्वीकरण | ये सुधार 4 चरणों में लागू किये गये और कमोबेश आज तक जारी हैं | यह सुधार अकारण नहीं हुए, इनके पीछे एक पृष्ठभूमि या समय की एक मांग थी जिस पर हम एक दृष्टि डालते हैं | इस लेख में आर्थिक सुधारों के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत चर्चा की गई है | अंग्रेजी माध्यम में इस लेख को पढने के लिए देखें LPG Reforms in India

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Download the e-book now, 1991 के आर्थिक सुधारों की पृष्ठभूमि.

1980 के दशक में अर्थव्यवस्था में अकुशल प्रबंधन तथा राजनैतिक उथल-पुथल के कारण 1990 के दशक में देश में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई । सरकार का व्यय उसके राजस्व से इतना अधिक हो गया कि ऋण के द्वारा व्यय धारण क्षमता से कहीं अधिक हो गया । देश में मुद्रास्फीति चरम पर पहुँच गई । आयात की तीव्र वृद्धि और निर्यात में शिथिलता के कारण व्यापार घाटा अत्यधिक हो गया और सरकार भुगतान संतुलन (Balance of Payment) की समस्या से जूझ रही थी । विदेशी मुद्रा के सुरक्षित भंडार इतने कम हो गए थे कि वे देश की दो सप्ताह की आयात आवश्यकताओं को भी पूरा कर पाने में समर्थ नही थे। अंतर्राष्ट्रीय ऋण की ब्याज चुकाने के लिए भारत सरकार के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं बची थी और सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ा । यह ऐसा समय था जब कोई देश या अतंर्राष्ट्रीय निवेशक भी भारत में निवेश नहीं करना चाहता था। ऐसी संकट की स्थिति में भी सरकार को विकास नीतियों की आवश्यकता थी क्योंकि राजस्व कम होने पर भी बेरोजगारी, गरीबी और जनसंख्या विस्फोट के कारण सरकार को अपने राजस्व से अधिक खर्च करना पड़ा। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था दोहरे संकट में थी क्योंकि सरकार को प्रतिरक्षा और सामाजिक क्षेत्रों पर अपने संसाधनों का एक बड़ा अंश खर्च करना पड़ रहा था और यह स्पष्ट था कि उन क्षेत्रों से किसी शीघ्र प्रतिफल की संभावना नहीं थी। इन सब के अलावे खाड़ी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ गई थीं | ऐसी स्थिति में सरकार ने ‘विश्व बैंक’ (I.B.R.D) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद मांगी । इन संस्थाओं ने भारत को 7 बिलियन डॉलर का ऋण दिया , किंतु उस ऋण को पाने के लिए इन संस्थाओं ने भारत सरकार पर कुछ शर्तें लगाईं; जैसे:

  • भारत सरकार उदारीकरण की नीति अपनाएगी ,अर्थात उद्योगों को विभिन्न प्रकार की रियायतें दी जाएंगी ,
  • निजी क्षेत्र पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाएगा तथा अनेक क्षेत्रों में सरकारी हस्तक्षेप कम किया जाएगा,
  • भारत सरकार अपनी मुद्रा का 22% अवमूल्यन करेगी जिससे निर्यात को बढ़ावा मिले ,
  • आयात शुल्क को 130% से घटा कर 30% किया जाएगा (इस लक्ष्य को भारत ने 2000-01 में प्राप्त किया और वर्तमान में यह स्वैच्छिक रूप से 15% निर्धारित किया गया है),
  • उत्पाद शुल्क में 20% की बढ़ोतरी की जाएगी ,
  • सभी सरकारी खर्चों में 10% की कमी की जाएगी,
  • साथ ही यह भी अपेक्षा की गई कि भारत और अन्य देशों के बीच विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबंध भी हटाए जायेंगे और देश वैश्वीकरण की दिशा में अग्रसर होगा |

भारत ने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ये शर्तें मान लीं और 23 जुलाई 1991 को नई आर्थिक नीति-1991 की घोषणा की गई । तब देश के प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव तथा वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे | इस नई आर्थिक नीति में व्यापक आर्थिक सुधारों को सम्मिलित किया गया। जिसे 2 उपसमूहों में विभाजित किया जा सकता है: स्थायित्वकारी सुधार तथा संरचनात्मक सुधार के उपाय। स्थायित्वकारी सुधार अल्पकालिक होते हैं, जिनका उद्देश्य भुगतान संतुलन में आ गई कुछ त्रुटियों को दूर करना और मुद्रास्फीति का नियंत्रण करना था। सरल शब्दों में, इसका अर्थ पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने और बढ़ती हुई कीमतों पर अंकुश रखने की आवश्यकता थी। जबकि , संरचनात्मक सुधार वे दीर्घकालिक उपाय हैं जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था की सर्वांगीन कुशलता है |

1.उदारीकरण (Liberalisation)

उदारीकरण का अर्थ है बाज़ार को मुक्त करना अथवा उसपर से अनावश्यक सरकारी नियन्त्रण को कम करना | एक समय ऐसा आया जब आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए नियम-कानून ही देश की वृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए। इस दौर को कोटा-परमिट राज के नाम से जाना जाता था जहाँ किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि के लिए औद्योगिक अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) की मांग की जाती थी | यह एक जटिल ,लम्बी और उद्योग -विरुद्ध व्यवस्था थी जो केवल लाल -फीताशाही को बढ़ावा देती थी | उदारीकरण इन्हीं जटिलताओं व प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की नीति थी। वैसे तो औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली, आयात-निर्यात नीति, राजकोषीय और विदेशी निवेश नीतियों में उदारीकरण 1980 के दशक में ही आरंभ हो गए थे किंतु, 1991 की सुधारवादी नीतियाँ कहीं अधिक व्यापक थीं। उदारीकरण नीति के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है:

  • घरेलू उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाना तथा इस माध्यम से आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना ;
  • नियमित आयात और निर्यात के साथ अन्य देशों के साथ विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करना;
  • विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी को बढ़ाना;
  • देश के वैश्विक बाजार सीमाओं का विस्तार करना और देश के कर्ज के बोझ को कम करने का प्रयास करना इत्यादि |

उदारीकरण नीति के तहत कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में किए गए सुधार हैं- औद्योगिक क्षेत्रक, वित्तीय क्षेत्रक, कर-सुधार, विदेशी विनिमय बाज़ार, व्यापार तथा निवेश क्षेत्र |

औद्योगिक क्षेत्र का विनियमीकरण

1991 के सुधारों से पहले देश में कोटा-परमिट राज व्यवस्था थी, जिसमें फर्म स्थापित करने, बंद करने या उत्पादन की मात्रा का निर्धारण करने के लिए किसी न किसी सरकारी अधिकारी की अनुमति प्राप्त करनी होती थी | अनेक उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया था और उनमें निजी उद्यमियों का प्रवेश ही निषिद्ध था | कुछ वस्तुओं का उत्पादन केवल लघु उद्योग ही कर सकते थे और सभी निजी उद्यमियों को कुछ औद्योगिक उत्पादों की कीमतों के निर्धारण तथा वितरण के बारे में भी अनेक नियंत्रणों का पालन करना पड़ता था। 1991 के बाद से आरंभ हुई सुधार नीतियों ने इनमें से अनेक प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया। निम्नलिखित 6 उत्पाद श्रेणियों को छोड़ अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया:-

  • जोखिम भरे रसायनो व औद्योगिक विस्फोटक,
  • इलेक्ट्रोनिकी,

अब सार्वजनिक क्षेत्रक के लिए सुरक्षित उद्योगों में भी केवल कुछ मुख्य गतिविधियाँ,जैसे परमाणु ऊर्जा उत्पादन,रक्षा क्षेत्र और रेल परिवहन इत्यादि ही बचे हैं। लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अधिकांश वस्तुएँ भी अब अनारक्षित श्रेणी में आ गई हैं। अनेक उद्योगों में अब कीमत निर्धारण का कार्य बाज़ार स्वयं करता है जो कि उदारीकरण का लक्ष्य है।

वित्तीय क्षेत्र के सुधार

वित्त के क्षेत्र में व्यावसायिक और निवेश बैंक, स्टॉक एक्सचेंज तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार जैसी वित्तीय संस्थाएँ सम्मिलित हैं। भारत में वित्तीय क्षेत्र के नियमन का दायित्व भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) का है। वित्तीय क्षेत्र की सुधार नीतियों का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी है कि रिजर्व बैंक को इस क्षेत्र का केवल नियंत्रक न बना कर उसे इस क्षेत्र का एक सहायक बनाया जाए । इसका अर्थ है कि वित्तीय क्षेत्रक रिजर्व बैंक से सलाह किए बिना ही कई मामलों में अपने निर्णय लेने में स्वतंत्र हो जाए ।

वित्तीय क्षेत्र की सुधार नीतियों के तहत बैंकों की पूँजी में विदेशी भागीदारी की सीमा 74 प्रतिशत कर दी गई। कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करनेवाले बैंक अब रिज़र्व बैंक की अनुमति के बिना ही नई शाखाएँ खोल सकते हैं तथा पुरानी शाखाओं के जाल को अधिक युक्तिसंगत बना सकते हैं। यद्यपि बैंकों को अब देश-विदेश से और अधिक संसाधन जुटाने की भी अनुमति है पर खाता धारकों और देश के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कुछ नियंत्रक शक्ति अभी भी रिजर्व बैंक के पास ही हैं। विदेशी निवेश संस्थाओं (F.I.I) तथा व्यापारी बैंक, म्युचुअल फंड और पेंशन कोष आदि को भी अब भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश की अनुमति मिल गई है। इस प्रकार वित्तीय समावेशन(financial inclusion) को भी बढ़ावा मिला है |

कर व्यवस्था में सुधार: इन सुधारों का संबंध राजकोषीय नीतियों से है जिसके अंतर्गत सरकार की कराधान पद्धति (taxation) और सार्वजनिक व्यय नीतियां आती है । इस नीति के तहत 1991 के बाद से व्यक्तिगत आय पर लगाए गए करों की दरों में निरंतर कमी की गई है ताकि दरों को कम कर कर -चोरी से होने वाले नुकसान से बचा जा सके । यह तर्क दिया जाता है कि करों की दरें अधिक ऊँची नहीं हों, तो बचतों को बढ़ावा मिलता है और लोग अपेक्षाकृत अधिक ईमानदारी से अपनी आय का विवरण देते हैं। निगम कर की दर में भी कमी की गई ताकि कंपनियों के लिए सकारात्मक वातावरण तैयार किया जा सके ।

विदेशी विनिमय सुधार: विदेशी विनिमय क्षेत्र में सुधार के तहत 1991 में भुगतान संतुलन की समस्या के तत्कालिक निदान के लिए अन्य देशों की और मुद्रा की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया। इससे निर्यात को बढ़ावा मिला और देश में विदेशी मुद्रा के भंडार में वृद्धि हुई। इसके कारण व्यापार संतुलन साम्य भी स्थापित हुआ |

2.निजीकरण (Privatisation)

इसका तात्पर्य है, किसी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के स्वामित्व या प्रबंधन में निजी क्षेत्र को भागीदारी प्रदान करना । निजीकरण के निम्न तरीके होते हैं :

विनिवेश (Disinvestment) :  निजीकरण की सर्व विदित पद्धति आम जनता को सार्वजानिक उपक्रम की इक्विटी बेचना है। इसे ही विनिवेश कहते हैं तथा यह पूर्ण या आंशिक हो सकता है। अर्थात् सरकार एक उपक्रम में अपना संपूर्ण हिस्सा या इसका कुछ प्रतिशत बेच सकती है। यह भी दो माध्यम से किया जा सकता है:1.सीधी बिक्री, और 2.इक्विटी की पेशकश । किंतु इसमें चुनौती यह है कि कई बार विदेशी निवेशक बिक्री के लिए पेशकश किए गए उपक्रमों के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलने के कारण इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाते हैं । इसके अलावा यह प्रक्रिया खर्चीली और लम्बी हो सकती है क्योंकि इसमें प्रत्येक सरकारी परिसम्पत्ति को अलग-अलग बेचने के लिए तैयारी करनी पड़ती है तथा यह भी सुनिश्चित करना पड़ता है कि सभी नियमों का पालन किया गया हो ।

प्रत्यावस्थापन (रेस्टिट्यूशन): प्रत्यावस्थापन का अर्थ है सरकारी परिसंपत्तियों को उनके पूर्व निजी स्वामियों को

वापस सौंपना | यह तब किया जाता है यदि सरकार को मूल अधिग्रहण अनौचित्यपूर्ण प्रतीत होता है | यूरोपिय अर्थव्यवस्थाओं के संक्रमण में प्रत्यावस्थापन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है।

प्रबन्धन कर्मचारियों को स्वामित्व का हस्तांतरण करना (Management Employee Buyouts ): इस पद्धति के अन्तर्गत एक उपक्रम के शेयरों को प्रबन्धकों और अन्य कर्मचारियों के समूह को बेच दिया जाता है । इस प्रक्रिया का कार्यान्वयन द्रुत एवं सरल है। दूसरा लाभ यह है कि कर्मचारी और प्रबन्धक जो उस उपक्रम के बारे में सबसे अच्छी तरह से जानते हैं वही इसके स्वामी बन जाते हैं। इससे सम्बन्धित उपक्रम के राजस्व में वृद्धि की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं |

सामूहिक निजीकरण (Mass Privatization) : सामूहिक निजीकरण में सरकार उपक्रमों को एक वाउचर प्रदान करती है | इन वाउचरों का उपयोग उपक्रमों के शेयरों को खरीदने में किया जा सकता है। इस पद्धति को चेक गणराज्य में काफी सफलता मिली। वाउचर निजीकरण से घरेलू पूँजी के अभाव की समस्या से निपटने में सहायता मिलती है और साथ ही साथ इसमें भ्रस्टाचार की गुंजाइश से भी बचा जा सकता है और उन आरोपों से भी बचा जा सकता है जिसमें यह कहा जाता है कि राष्ट्रीय परिसम्पत्तियाँ को औने-पौने दाम पर बेच दिया गया ।

यह अपेक्षा की गई थी कि निजी पूँजी और प्रबंधन क्षमताओं का उपयोग इन सार्वजनिक उद्यमों के निष्पादन को सुधारने में सहायक सिद्ध होगा। सरकार को यह भी आशा थी कि निजीकरण से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(FDI) को भी बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को प्रबंधकीय निर्णयों में स्वायत्तता प्रदान कर उनकी कार्यकुशलता को सुधारने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को ‘महारत्न’, ‘नवरत्न’ और ‘लघुरत्न’ का विशेष दर्जा दिया गया है | निजीकरण के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं :

  • सरकारी उपक्रमों की वित्तीय स्थिति को सुधारना;
  • लोक क्षेत्र की कंपनियों के कार्यभार को कम करना:
  • उत्पादकता एवं आय में वृद्धि ;
  • विनिवेश से धन बढ़ाना;
  • सरकारी संगठनों की कुशलता में वृद्धि ;
  • उपभोक्ता को बेहतर वस्तु और सेवाएं उपलब्ध कराना ;
  • एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करना, तथा
  • भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) को प्रोत्साहित करना ।

3.वैश्वीकरण (Globalisation)

आमतौर पर वैश्वीकरण को किसी एक देश की अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण के रूप में देखा जाता है, किंतु वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक घटना नहीं है | वैश्वीकरण सम्पूर्ण विश्व में व्यक्ति,वस्तुओं,सेवाओं ,मुद्रा ,तकनीक व यहाँ तक की संस्कृति का भी निर्बाध प्रवाह है । यह उन सभी नीतियों का परिणाम है, जिनका उद्देश्य है विश्व को परस्पर निर्भर और अधिक एकीकृत करना। इसके आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक व सांस्कृतिक पहलु होते हैं | साधारण शब्दों में यह समग्र विश्व को एक बनाने या सीमामुक्त विश्व की रचना करने का प्रयास है। यही कारण है की इसे “भू-मंडलीकरण” के नाम से भी जानते हैं | इसके निम्नलिखित आयाम हैं :

आउटसोर्सिंग : यह वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक विशिष्ट परिणाम है जिसकी चर्चा के बिना वैश्वीकरण की चर्चा अधूरी है । वस्तुतः प्रोद्योगिकी ही वह मुख्य कारक है जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को संभव बनाया है | आउटसोर्सिंग में कंपनियाँ किसी बाहरी संस्था (Sorce) से सेवाएँ प्राप्त करती हैं, जिन्हें पहले देश के भीतर ही प्रदान किया जाता था जैसे कि कानूनी सलाह, कंप्यूटर सेवा, विज्ञापन, सुरक्षा आदि, और इन सेवाओं को ज़रूरतमंद संस्था को बेचती हैं । संचार के माध्यमों में आई क्रांति व प्रौद्योगिकी के प्रसार ने अब इन सेवाओं को ही एक विशिष्ट आर्थिक गतिविधि का स्वरूप प्रदान कर दिया है। इसी कारण, विदेशों से इन सेवाओं को प्राप्त करने (जिसे बाह्य प्रापण कहा जाता है) की प्रवृत्ति बहुत सशक्त हो गई है। अनेक विकसित देशों की कंपनियाँ भारत की छोटी-छोटी संस्थाओं से ये सेवाएँ प्राप्त कर रही हैं। आधुनिक संचार साधनों के माध्यमों जैसे, इंटरनेट आदि इन सेवाओं से जुड़ी रचनाओं, ध्वनियों और दृश्यों की जानकारी को तुरंत दूसरे देशों तक प्रसारित कर दिया जाता है। अब तो अधिकांश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ अनेक छोटी बड़ी कंपनियाँ भारत से ये सेवाएँ प्राप्त करने लगी हैं, क्योंकि भारत में इस तरह के कार्य बहुत कम लागत में और उचित रूप से निष्पादित हो जाते हैं। भारत की निम्न मजदूरी दरें तथा कुशल श्रम शक्ति की उपलब्धता ने सुधारोपरांत इसे विश्व स्तरीय आउटसोर्सिंग का एक गंतव्य बना दिया है।

विश्व व्यापार संगठन(WTO) की भूमिका : व्यापार और सीमा शुल्क महासंधि (GATT) की उत्तराधिकारी संस्था विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन इस उद्देश्य से किया गया कि सभी देशों को विश्व व्यापार में समान अवसर सुलभ कराया जा सके | विश्व व्यापार संगठन का ध्येय ऐसी नियम आधारित व्यवस्था की स्थापना है, जिसमें कोई देश अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए मनमाने ढंग से व्यापार के मार्ग में बाधाएँ खड़ी नहीं कर पाए। ऐसा करने से केवल व्यापार विकसित देशों के पक्ष में चला जाता है और अविकसित देशों को नुकसान होता है | साथ ही, इसका ध्येय सेवाओं के सृजन और व्यापार को प्रोत्साहन देना भी है, ताकि विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग हो सके । विश्व व्यापार संगठन की संधियों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार को बढ़ाने हेतु इसमें वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं के विनिमय को भी स्थान दिया गया है। ऐसा सभी सदस्य देशों के प्रशुल्क और अप्रशुल्क अवरोधकों को हटाकर तथा अपने बाज़ारों को सदस्य देशों के लिए खोलकर किया गया है। विश्व व्यापार संगठन के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में भारत विकासशील विश्व के हितों का संरक्षण करते हुए न्यायपूर्ण विश्वस्तरीय व्यापार व्यवस्था के नियमों तथा सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं की रचना में सक्रिय भागीदार रहा है। भारत ने व्यापार के उदारीकरण की अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है। इसके लिए इसने आयात पर से अनेक परिमाणात्मक प्रतिबंध हटाए हैं और प्रशुल्क दरों को भी बहुत कम किया है।

कुछ जानकारों का मानना है कि विश्व व्यापार संगठन में भारत की सदस्यता का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि विश्व व्यापार का अधिकांश भाग तो विकसित देशों के बीच ही होता है। उनका यह भी मानना है कि विकसित देश अपने देशों में जहाँ कृषि सहायिकी दिये जाने को लेकर शिकायत करते हैं, वहीं विकासशील देश अपने बाज़ारों को विकसित देशों के लिए खोले जाने को मजबूर करने को लेकर छला हुआ महसूस करते हैं (WTO के 3 अनुदान वर्गों जिन्हें Blue, Green व Amber box कहा जाता है, से जुड़े विवाद हमेशा चर्चा में रहते हैं )। वे देश विकासशील देशों को अपने बाज़ारों में किसी न किसी बहाने प्रवेश करने से रोकने का प्रयास भी करते हैं और उनकी कोशिश हेमशा यही रहती है की व्यापार को अपने पक्ष में रखा जाए | इस तर्क का आधार यह है कि वैश्वीकरण असमानता को जन्म देता है |

वैश्वीकरण से सम्बद्ध समस्याएँ

वैश्वीकरण को ले कर एक चिंता यह जाहिर की जाती है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य(सरकार) की क्षमता में कमी आती है।वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई है और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य(Minimalist state) ने ले ली है। राज्य अब कुछेक मुख्य कामों तक ही अपने को सीमित रखता है, जैसे कानून और व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना । इस तरह , राज्य ने अपने को पहले के कई ऐसे लोक-कल्याणकारी कार्यों से दूर कर लिया है जिनका लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक-कल्याण होता था। लोक कल्याणकारी राज्य की जगह अब “बाज़ार” आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है और भविष्य में बाज़ार ही सब कुछ तय करेगा |

लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वैश्वीकरण से हमेशा राज्य की ताकत में कमी नहीं आती | वैश्वीकरण की अवधारणा के बाद भी राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व की राजनीति में अब भी विभिन्न देशों के बीच मौजूद पुरानी ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता है जो इनके एकीकरण में बाधक है । कुल मिलकर , राज्य अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं। बल्कि एक तर्क तो यह भी दिया जाता है कि कुछ मामलों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में इजाफा हुआ है। अब राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बल पर वे ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं और उनकी क्षमता बढ़ी है । ई-गवर्नेंस और सुशासन को इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है,जो की इन वैश्विक तकनीकों के कारण ही सम्भव हो सके है |

वैश्वीकरण की आलोचना इसलिए भी की जाती है कि इसे राज्य की संप्रभुता, लोकतंत्र और अधिकांश विकासशील देशों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। अंतराष्ट्रीय संगठन जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका,यूरोप इत्यादि जैसी महाशक्तियां , निर्णयों को अपनाने के लिए दबाव डाल सकते है। इस बिंदु पर , जब 1991 में भारत में उदारीकरण ,निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई थी तब विपक्षी पार्टियों,विशेष कर वाम दलों ने सरकार का विरोध किया था |

वैश्वीकरण को पारिस्थितिक प्रणाली के लिए खतरे के रूप में भी देखा जाने लगा है। अधिकांश विकासशील और विकसित राष्ट्र प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए बहुत कम ध्यान देते हैं। हाल के दशकों में वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) की दर बहुत अधिक रहीं है। इसके परिणामस्वरूप, महासागरों के औसत तापमान में वृद्धि हुई हैं, ग्लेशियरों (Glaciers) में गिरावट आई है ,हिमपात अधिक हुए है और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन तीव्र हुआ है । पिछले 50 वर्षों में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साउड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि हरित गृह गैसों (Green House Gases) का सांद्रण भी तीव्र गति से बढ़ा है । इन सब के पीछे कहीं न कहीं आर्थिक विकास को दोष दिया जाता है |

आर्थिक सुधारों की समीक्षा

1991 के आर्थिक सुधारों के सकारात्मक पहलुओं की यदि बात की जाए तो निश्चित रूप से आर्थिक विकास प्राप्त करना आर्थिक इस का एक प्रमुख उद्देश्य था,और इसमें यह काफी हद तक सफल भी रहा है । आर्थिक संवृद्धि प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि तथा कृषि और औद्योगिक क्षेत्रकों के उत्पादन में भी वृद्धि को प्राप्त करना आवश्यक है। सकल घरेलू उत्‍पाद (G.D.P) की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951–91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के दर से बढ़ी । वहीं 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से भी आगे निकल गयी। 1950 से 1980 के तीन दशकों में सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P) की विकास दर केवल 1.49 प्रतिशत थी। 1980 के दशक में प्रारम्भिक आर्थिक उदारवाद ने प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद की विकास दर को बढ़ाकर प्रतिवर्ष 2.89 प्रतिशत कर दिया। जबकि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दर बढ़कर 4.19 प्रतिशत तक पहुंच गई। 2001 में यह 6.78 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसी प्रकार, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है | उदाहरण के लिए, नियोजन के प्रथम 30 वर्षों की अवधि में प्रति व्यक्ति आय में 1.2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई। हालिया समय में, यह वृद्धि दर कुछ तीव्र हुई है। कृषि में, खाद्यान्नों का उत्पादन प्रथम योजना के आरंभ में 5.1 करोड़ टन से बढ़कर 2011-12 में 25.74 करोड़ टन हो गया है। विशेष रूप से चावल और गेहूं का उत्पादन आशातीत रहा है | सुधारों के दौरान औद्योगिक विकास के संदर्भ में एक प्रमुख उपलब्धि उद्योगों की विविधता रही है। परिवहन् तथा दूरसंचार का विस्तार हुआ है, विजली के उत्पादन और वितरण में वृद्धि तथा इस्पात, एल्यूमीनियम, इंजीनियरिंग माल, रसायन और पैट्रोलियम उत्पादों में यथेष्ठ उन्नति हुई है। नियोजन की अवधि में उपभोक्ता वस्तुओं तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में भी यथेष्ट वृद्धि हुई है। इसके अलावा , नियोजन के कारण दुनिया भर से नई तकनीकें देश में आई ,वैश्विक सामीप्य (connectivity) में बढ़ोतरी हुई और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण आज दुनिया भर के उत्पाद अच्छी गुणवत्ता व कम कीमत पर उपलब्ध हैं | आधारभूत अवसंरचना का सृजन हुआ जिसके कारण शिक्षा -स्वस्थ्य में सुधार,विज्ञान -प्रोद्योगिकी का विकास,एवं व्यापार में विकास हुआ |

किंतु आर्थिक सुधारों की समीक्षा करते समय हमें इसके नकारात्मक पक्ष को भी नहीं भूलना चाहिए | आलोचक मानते हैं कि वैश्वीकरण के कारण संस्कृति ह्रास, पश्चिमीकरण, जीवन शैली में परिवर्तन एवं उपभोक्तावाद की एक संस्कृति विकसित हुई जिसमे आज इनसान वस्तु से अधिक कुछ नहीं रह गया और पूरी दुनिया केवल एक बाज़ार बन के रह गई है | गरीबी,बेरोजगारी,भ्रस्टाचार जैसी समस्याओं को दूर करने में ये सुधार असफल रहे हैं |

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    वैश्वीकरण (Globalization) का शाब्दिक अर्थ होता है "दुनिया भर में फैलाव" या "दुनियावाद"। इस शब्द का उपयोग किसी गति या प्रक्रिया को दर्शाने के लिए किया जाता है जिसमें दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संबंध और योग्यताएं बढ़ती हैं। वैश्वीकरण (Globalization) का अर्थ होता है कि दुनियां भर में हम जुड़ सकें लोगो से व्यापार संचालन आदि की अनुमति हो साथ ही...

  4. वैश्वीकरण पर निबंध

    Hindi Essay Writing - वैश्वीकरण (Globalization) इस लेख में हम वैश्वीकरण पर निबंध लिखेंगे | इस लेख हम वैश्वीकरण क्या है, वैश्वीकरण की विशेषतायें वैश्वीकरण से लाभ, हानि तथा भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव के बारे में जानेगे |. प्रत्येक देश या भू-भाग का एक अपनी संस्कृति या विशिष्टता होती है जो उसको दूसरो से अलग बनाती है।.

  5. वैश्वीकरण पर निबंध (Globalization Essay In Hindi)

    वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ होता है, किसी व्यापार को पूरी दुनिया तक फैलाना। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अर्थ केवल इतना ही नहीं रह गया है। अब वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के बीच उत्पादों, व्यापार, तकनीकी, दर्शन, व्यवसाय, कारोबार, कम्पनी आदि के उपर भी लागू होता है।.

  6. Essay on Globalization in Hindi

    Essay on Globalization in Hindi: वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन से तात्पर्य लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच एकीकरण से है। अधिकांश उल्लेखनीय, यह एकीकरण वैश्विक स्तर पर होता है। इसके अलावा, यह पूरी दुनिया में कारोबार के विस्तार की प्रक्रिया है। ग्लोबलाइजेशन में, कई व्यवसाय विश्व स्तर पर विस्तारित होते हैं और एक अंतर्राष्ट्रीय छवि ग्रहण करते हैं। नतीज...

  7. वैश्वीकरण का विविधीकरण

    यह एडिटोरियल 11/03/2023 को 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' में प्रकाशित "Fragmented Globalisation" लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि वैश्विक आर्थिक विकास और बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों में हाल के बदलावों के बीच वैश्वीकरण किस प्रकार एक नया रूप ग्रहण कर रहा है।. संदर्भ.

  8. वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi

    January 4, 2023 by बिजय कुमार. वैश्वीकरण पर निबंध, तथ्य, प्रभाव Essay on Globalization in Hindi, Its Facts and Effects. वैश्वीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश, सूचना ...

  9. globalisation essay in hindi language: वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण पर निबंध

    वैश्वीकरण निबन्ध, globalization essay in hindi (250 शब्द) पिछले कुछ दशकों में वैश्वीकरण बहुत तेजी से हुआ है जिसके परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकियों, दूरसंचार, परिवहन, आदि में उन्नति के माध्यम से दुनिया भर में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक एकीकरण हुआ है।.

  10. वैश्वीकरण का अर्थ,कारण,इतिहास, आयाम

    वैश्वीकरण क्या है? (What is Globalization?) वैश्वीकरण एक प्रक्रिया (Process) है, जबकि वैश्विकृत विश्व (Globalized World) लक्ष्य है, जिसे हासिल किया जाना है। साधारणत: यह एक आर्थिक संकल्पना है परंतु इसके राजनीतिक, सांस्कृतिक, प्रोद्योगिकी आयाम भी हैं। वैश्वीकरण आखिरकार क्या है? इसके प्रमुख घटक क्या है?

  11. वैश्वीकरण

    भूमंडलीकरण (Globalization) एक प्रक्रिया है जिसमें दुनिया भर में विभिन्न देशों और संस्थाओं के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और तकनीकी संबंधों में समन्वय बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न देशों के बीच व्यापार, निवेश, पर्यटन, प्रौद्योगिकी, सूचना और संचार, शिक्षा, संगठनात्मक विकास और साझा सांस्कृतिक मानचित्र को मजबूत करना...

  12. वैश्वीकरण का अर्थ कारण प्रभाव परिणाम व भारत

    वैश्वीकरण का अर्थ (Meaning of globalization In Hindi) वैश्वीकरण का अर्थ है अंतर्राष्ट्रीय एकीकरण, विश्व व्यापार का खुलना, उन्नत संचार साधनों का विकास, वित्तीय बाजारों का अंतर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनी का महत्व बढ़ना, जनसंख्या का देशांतर गमन, व्यक्तियों, वस्तुओं, पूंजी आकड़ों व विचारों की गतिशीलता का बढ़ना.

  13. वैश्वीकरण की आड़ में संरक्षणवाद

    गौरतलब है कि वैश्वीकरण एवं संरक्षणवाद एक-दूसरे की विपरीत अवधारणाएँ हैं। वैश्वीकरण स्वतंत्र व्यापार पर आधारित होता है, जहाँ पर बिना ...

  14. वैश्वीकरण पर हिंदी निबंध Essay On Globalization In Hindi

    Essay On Globalization In Hindi वैश्वीकरण पूरे विश्व में व्यापार और वाणिज्य को एकीकृत करने की एक प्रक्रिया है। सरकारें, निजी कंपनियां और यहां तक कि लोग अपने

  15. Essay @ Globalization and Indian Society

    Read this essay in Hindi to learn about the effects of globalization on Indian society.

  16. Globalization Essay In Hindi (Globalisation) 500 Words ग्लोबलाइजेशन पर

    Hindi In Hindi | October 30, 2017 | Essay In Hindi | No Comments. Read an essay on Globalization in Hindi language for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Know more about Globalization in Hindi. वैश्विकरण पर निबंध.

  17. Essay on Globalization

    Essay on Globalization | Hindi | Economic Process | Economics. Here is an essay on 'Globalization' for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on 'Globalization' especially written for school and college students in Hindi language.

  18. वैश्वीकरण पर सबसे आसान निबंध

    वैश्वीकरण पर सबसे आसान निबंध | vaishvikaran par nibandh hindi mein | globalization essay in hindi - YouTube. Surendra Study Store. 27.8K subscribers. 1. 3 views 2 minutes ago.

  19. वैश्वीकरण पर निबंध Globalization Essay In Hindi

    वैश्वीकरण का अर्थ- किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, विचार, बौद्धिक सम्पदा और सिद्धातो का विश्वव्यापी होना. संसार के सभी देशों का दुसरे देशों के साथ वस्तु सेवा विचार, पूंजी और सिद्धांतो का अप्रतिबंधित लेन-देन. दुसरे शब्दों में ग्लोबलाइजेशन / वैश्वीकरण वह हैं, जिनके तहत कोई वस्तु या विचार अथवा पूंजी की एक देश से दुसरे देश बिना रोकटोक आवाजाही हो.

  20. Globalization of Indian Economy

    Globalization of Indian Economy | Hindi | Essay | Economics. Article shared by: Here is an essay on the 'Globalization of Indian Economy' especially written for school and college students in Hindi language. भारत में भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया धीरे-धीरे गति पकड़ रही है ।.

  21. essay on Globalisation in hindi

    essay on Globalisation in hindi वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन पर निबंध Globalisation essay in Hindi ...

  22. भाषाः वैश्वीकरण के दौर में हिंदी

    वैश्वीकरण के दौर में हिंदी को और सशक्त बनाने के लिए दूसरी भाषाओं के साथ इसके संबंधों को अनुवाद के माध्यम से मजबूत करना होगा। अनुवाद ...

  23. उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति

    LPG Reforms in Hindi: IAS 2024 परीक्षा के लिए भारत में उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति के बारे में पढ़ें | 1991 के आर्थिक सुधारों की समीक्षा | new economic policy analysis in hindi | nep 1991 |